संतान सुख का आशीर्वाद होता है प्राप्त, श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कब? जानें इस व्रत का महत्व और पूजा विधि

नई दिल्ली . सावन में आने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत। ये व्रत इस साल 8 अगस्त को रखा जाएगा। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान को सुखी जीवन की प्राप्ति होती है। निसंतान दंपतियों को ये व्रत करने की सलाह दी जाती है। इस व्रत को करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होने की मान्यता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार जो निसंतान दंपत्ति इस व्रत को पूरी आस्था और सच्चे मन से रखता है उन्हें संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

व्रत विधि:
-सुबह उठकर स्नान करें और अच्छे वस्त्र धारण कर लें।
-भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष घी का दीपक जलाएं।
-पूजा में तुलसी, तिल और फल जरूर उपयोग करें।
-व्रत के दिन निराहार रहें और शाम के समय पूजा करने के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं।
-इस दिन संभव हो तो विष्णुसहस्रनाम का पाठ जरूर करें। इससे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होने की मान्यता है।
-इस एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व माना जाता है है।
-व्रत के अगले दिन पूजा करके ब्राह्मण को भोजन करवाएं और दान-दक्षिणा दें।
-अंत में स्वयं भोजन करें।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा: द्वापर युग में महिष्मतीपुरी का राजा महीजित बड़ा ही शांति एवं धर्म प्रिय था। लेकिन उसका कोई पुत्र नहीं था। राजा के शुभचिंतकों ने ये बात महामुनि लोमेश को बताई तो उन्होंने बताया कि ये राजा के पूर्व जन्म का फल है जिस कारण उनके कोई संतान नहीं है। महामुनि लोमेश ने बताया एक बार सावन शुक्ल एकादशी के दिन राजा प्यास से व्याकुल होकर एक जलाशय के पास पहुंचे, तो वहां गर्मी से पीड़ित एक प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उसे रोक दिया और स्वयं पानी पीने लगे। राजा का ऐसा करना धर्म के अनुरूप नहीं था। अपने पूर्व जन्म के कुछ पुण्य कर्मों के कारण वे इस जन्म में राजा तो बने, लेकिन उस एक पाप के कारण वो संतान विहीन हैं। महामुनि ने बताया कि यदि राजा के सभी शुभचिंतक श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत करें और उसका पुण्य राजा को दे दें, तो निश्चय ही उन्हें संतान रत्न की प्राप्ति होगी। महामुनि की बात मानकर समस्त प्रजा के साथ-साथ जब राजा ने भी यह व्रत रखा, तो कुछ समय बाद राजा को एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाने लगा।

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