प्लास्टिक के जहर से मुक्त हुए समोसे-कचौरी, पोहा

हर्षल सिंह राठौड़, इंदौर। स्वच्छता के साथ ही अपने खान-पान के लिए देशभर में प्रसिद्ध इंदौर शहर में पर्यावरण संरक्षण के लिए भी प्रयास तेज कर दिए गए हैं। इसकी पहल खानपान की दुकानों से हो रही है जहां सिंगल यूज प्लास्टिक की थैली में खाद्य सामग्री देना बंद हो गया है। हालांकि कई जगह इसका असर यह हो रहा है कि पोहा, कचौरी, समोसे घर ले जाने वालों को चटनी, ऊसल, दही नहीं मिल पा रहा है। चूंकि बाजार में अभी प्लास्टिक के विकल्प पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए स्वाद के शौकीनों को इनसे समझौता करना पड़ रहा है।

दुकानों पर चटनी-ऊसल की मांग बनी हुई है, जबकि दुकानदारों का कहना है कि सिंगल यूज प्लास्टिक पर लगे प्रतिबंध के बाद इनकी पैकिंग के लिए कंटेनर बाक्स या बायोडिग्रेडेबल थैली का उपयोग करना होगा जो अभी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं और कीमत भी ज्यादा है।

प्लास्टिक के डिब्बे में भी नहीं दे सकते चटनी

खानपान की दुकान के संचालकों का कहना है कि अभी तक जिस तरह के प्लास्टिक के डिब्बे में तरल पदार्थ पैक करके दिए जाते थे वह भी अब नहीं दे सकते, क्योंकि यह डिब्बे भी इसी क्षेणी में आते हैं। जिस गुणवत्ता वाले प्लास्टिक में तरल पदार्थ देने की बात की जा रही है वह वर्तमान में शहर में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा उनकी कीमत भी दोगुनी से ज्यादा है। ऐसे में इसका असर वस्तु की कीमत पर पड़ेगा। अभी तक जिस प्लास्टिक का उपयोग होता था वह करीब 130 रुपये किलो थी, जबकि बायोडिग्रेडेबल थैली की कीमत तीन सौ रुपये किलो से अधिक है। इससे वस्तु की कीमत में भी इजाफा हो सकता है।

सकोरे में देते थे चटनी, घर से लाते थे डिब्बे

विजय चाट हाउस के संचालक जतिन ठाकर बताते हैं कि 1969 में जब दुकान शुरू हुई थी तब चटनी सकोरे में दी जाती थी, लेकिन उसपर भी प्लास्टिक लगाया जाता था। इसमें चटनी ले जाना मुश्किल भरा होता था। वर्तमान में खास तरह की थैली में चटनी दी जा रही है। रवि अल्पाहार के अभिषेक रोडवाल बताते हैं कि जब प्लास्टिक की थैली चलन में नहीं थी तब लोग घर से डिब्बे लेकर आते थे और उसमें चटनी-ऊसल लेकर जाते थे। हमें भी अब विकल्प तलाशना होगा ताकि प्लास्टिक की थैली के उपयोग को पूरी तरह से रोका जा सके।

अतिरिक्त भार होगा उनपर

अपना स्वीट्स के प्रकाश राठौर कहते हैं कि बड़े दुकानदार तो बायोडिग्रेडेबल थैली और कंटेनर का उपयोग कर सकेंगे लेकिन छोटे व्यापारी और जिनके उत्पाद की कीमत पहले से ही कम है, उनके लिए यह अतिरिक्त व्यय होगा। ऐसे में इनके उत्पाद की कीमत भी बढ़ सकती है।

इन पर पड़ रहा प्रभाव

शहर में कचौरी-समौसे भी कई तरह के मिलते हैं। दाल की कचौरी के अलावा भुट्टे, मटर, आलू, प्याज, हींग, निमाड़ी, फलाहारी कचौरी मिलती है तो सादा समोसा, खट्टा-मीठा समोसा, हैदराबादी समोसा, मूंग के भजिए, खोपरा पेटिस, आलू बड़े, खमण, ढोकला भी हरी चटनी और लाल चटनी के साथ दिए जाते हैं। पानी पताशे, दही बड़े, छोले टिकिया भी थैली में पैक करके दी जाती है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button