रुद्राक्ष की माला धारण किए संन्यासियों सी सुंदर छवि दिखेगी वनवासी श्रीराम की
छत्तीसगढ् में राम वनगमन पथ के चंदखुरी में लगाने के लिए 51 फीट प्रतिमा ग्वालियर में तैयार हो रही है। यह मूर्ति तैयार होकर छत्तीसगढ् जाएगी। इस विशाल मूर्ति को स्थापित करने के लिए दो मजबूत आधार पत्थरों के दो टुकडों तैयार किया जा रहा है।पहले चंदखुरी में स्थापित मूर्ति उड़ीसा में विल्हा पत्थर पर तैयार की गई थी। उड़ीसा में निर्मित मूर्ति को पसंद नहीं आई थी।
HIGHLIGHTS
- वनवासी श्री राम धनुष के साथ रुद्राक्ष की माला धारण कर संन्यासियों की तरह सुंदर छवि वाले होंगें
- श्रीराम वनगमन पथ के लिए 51 फीट की प्रतिमा तीन माह तैयार हो जाएगी
- मूर्ति को स्थापित करने के लिए पैडस्टल तैयार करने कारीगर इसी माह भेजे जाएंगें
ग्वालियर। छत्तीसगढ़ में चिह्नित राम वनगमन पथ के चंदखुरी में विराजित की जाने वाली 51 फीट ऊंची वनवासी राम की मूर्ति मोतीमहल में स्थित स्टूडियो में मूर्तिकार दीपक विश्वकर्मा द्वारा तैयार की जा रही है। यह मूर्ति तीन माह में तैयार कर छत्तीसगढ़ भेजी जाएगी। इस विशाल मूर्ति को स्थापित करने के लिए मजबूत आधार पत्थरों के दो टुकड़ों पर तैयार किया जाएगा।
इन पत्थरों को इसी माह ग्वालियर से कारीगरों के साथ भेजा जाएगा। इस आधार को मजबूती प्रदान करने में दो माह का समय लगेगा। आधार को उसी स्थान पर तैयार किया जाएगा, जहां मूर्ति विराजित होनी है। इससे पहले चंदखुरी में स्थापित वनवासी श्रीराम की मूर्ति उड़ीसा में विल्हा पत्थर पर तैयार की गई थी। उड़ीसा में निर्मित मूर्ति को पसंद नहीं आने पर बदला जा रहा है। यह मूर्ति उसी का स्थान लेगी।
पड़ावली व मितावली में मिलता है ग्वालियर मिंट पत्थर
मुरैना जिले के पड़ावली व मितावली की खदानों में ग्वालियर मिंट पत्थर मिलता है। इस पत्थर की विशेषता है कि गोल आकार देकर इसे मोल्ड भी किया जा सकता है। इसी पत्थर से ग्वालियर दुर्ग व मोतीमहल को भी बनाया गया है। इस पर उकेरी गई आकृति और की गई नक्काशी हजारों वर्षों तक जैसी की तैसी रहती है। इसी पत्थर पर वनवासी राम की मूर्ति का निर्माण किया जा रहा है। पड़ावली व मितावली की ख्याति विश्वभर में चौसठ योगिनी के पत्थर के मंदिर के लिए हैं। पुराने संसद भवन का निर्माण इसी मंदिर के आकृति पर किया गया था।
वनवासी राम के गले में रुद्राक्ष की माला हू-ब-हू पत्थर पर उकेरी जाएगी
मूर्तिकार दीपक विश्वकर्मा ने बताया कि यह मूर्ति सात से आठ टुकड़ों में तैयार की जा रही है। प्रत्येक टुकड़े का वजन एक से डेढ़ टन होगा। वनवासी राम का चेहरा तैयार हो गया है। टुकड़ों में पैर व धड़ तैयार किए जा रहे हैं। प्रतिदिन 14 से 15 कारीगर कार्य कर रहे हैं। इस मूर्ति की विशेषता श्रीराम के गले में रुद्राक्ष की माला होगी। मूर्ति पर 111 रुद्राक्ष उकेरे जाएंगे, जो कि गले की माला, दोनों हाथों के बाजूबंद, सिर के जूड़े में फूलों की बजाय संन्यासियों की तरह रुद्राक्ष की माला के रूप में नजर आएंगें। रामपथ में लगने वाली यह मूर्ति सबसे ऊंची होगी। इस मूर्ति में वनवासी राम की छवि है, जो कि धनुष धारण किए हैं। सिर पर सुंदर मुकुट के स्थान पर बालों का जूड़ा है, गले और बाजुओं में रुद्राक्ष की माला है।
शिवरीनारायण में सीता रसोई में विराजित वनवासी राम की मूर्ति भी ग्वालियर से गई है
मूर्तिकार ने बताया कि शिवरीनारायण में एक स्थान को माता जानकी के रसोई के रूप में चिह्नित किया गया है। यह विराजित वनवासी राम की प्रतिमा भी यहां से बनकर गई है, जो कि लगभग 25 फीट ऊंची है।