परिवार चलाने के लिए एक ही हाथ है काफी, पैरालिसिस के बावजूद आत्मनिर्भर हैं मुरली, बीटेक पानीपुरी वाले से मिली प्रेरणा
सड़क दुर्घटना के बाद पैरालिसिस के शिकार हो चुके मुरली दीवान ने परिस्थितियों का सामना करते हुए किसी के सामने घुटने नहीं टेके। आधे शरीर की विकलांगता के बावजूद आज वे कंपनी गार्डन के सामने पानीपुरी बेचकर अपना परिवार तो चला ही रहे हैं, साथ ही साथ वह ठेले पर आने वाले ग्राहकों के लिए प्रेरणा भी बन गए हैं।
HIGHLIGHTS
- मुरली अपने ठेले में रखता है स्वच्छता का खास ध्यान।
- ठेले पर पहुंचने वाले ग्राहकों को स्वाद करता है आकर्षित।
- दया भाव से पानीपुरी की क्वालिटी देख खाने आते है लोग।
बिलासपुर। बिलासपुर में कंपनी गार्डन के सामने पानीपुरी बेचने वाले मुरली बताते हैं कि जब वे 12वीं कक्षा में थे तब एक सड़क दुर्घटना में उनका दायां हाथ पूरी तरह से सुन्न हो गया था। इसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और बायें हाथ से पानीपुरी का ठेला चलाने का काम शुरू किया।
दायें हाथ में पैरालिसिस के चलते वह अपने बायें हाथ से पानीपुरी बनाते हैं और अपने ग्राहकों को खिलाते हैं। दुकान की साफ-सफाई इतनी कि इनके ठेले पर ग्राहकों की हमेशा भीड़ रहती है। आज वे रोज़ाना 500 से 1000 रुपये तक की कमाई कर लेते हैं और अपने परिवार का खर्च बखूबी उठा रहे हैं।
बीटेक पानीपुरी वाले से मिली प्रेरणा
12वीं पास करने के बाद मुरली ने पढ़ाई के साथ होटल में काम करना शुरू किया। इसी बीच उन्होंने संगीत का शौक पूरा करने के लिए भातखंडे संगीत महाविद्यालय से संगीत में ग्रेजुएशन भी किया। मुरली की जिंदगी में नया मोड़ तब आया जब उन्होंने काम के दौरान एक वीडियो देखा जिसमें बीटेक पास व्यक्ति पानीपुरी बेचने का काम कर रहा था।इस वीडियो से प्रेरणा लेकर मुरली ने वेटर की नौकरी छोड़कर अपना पानीपुरी का ठेला लगाने का निर्णय लिया।
हर दिन तीन किलोमीटर पैदल चल पहुंचते हैं ठेला लगाने
मुरली रोज़ाना इंदु चौक से तीन किलोमीटर पैदल चलकर कंपनी गार्डन तक पहुंचते हैं।वे पानीपुरी का सारा सामान अपनी पत्नी की सहायता से घर से ही तैयार कर थैले में लेकर आते हैं और पड़ोसी के घर में रखा ठेला एक हाथ से खींचकर सड़क किनारे लाते हैं। ठेला लगाने के बाद सबसे पहले अपने ठेले की साफ-सफाई करते हैं। उनका कहना है कि लोग मुझ पर दया भाव के चलते नहीं बल्कि मेरे पानीपुरी की क्वालिटी के लिए खाने आते हैं।