बेहद रोचक है भगवान जगन्नाथ से जुड़ी यह परंपरा, रथ में सवार होकर जाते हैं अपनी मौसी के घर
जगन्नाथ पुरी में हर साल रथ यात्रा का आयोजन होता है। पुरी में रथ यात्रा के समय भगवान श्रीकृष्ण, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर जाते हैं। इसके बाद वे गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं, जहां वह कुछ दिनों के लिए विश्राम करते हैं। फिर पुनः अपने घर लौट आते हैं।
HIGHLIGHTS
- भगवान जगन्नाथ को समर्पित है पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर
- विराजित हैं श्री कृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा की भव्य मूर्तियां
- चली आ रही है हर 12 साल में मूर्तियां बदलने की परंपरा
धर्म डेस्क, इंदौर। Jagannath Rath Yatra 2024: हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए विश्व भर से श्रद्धालु पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर पहुंचते हैं। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ यानि श्री कृष्ण को समर्पित माना जाता है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित हैं। श्री जगन्नाथ मंदिर हिंदुओं के चार धामों में से एक है। हर 12 साल में इन मूर्तियों को बदलने की परंपरा है। आइए, जानते हैं कि इस परंपरा का क्या अर्थ है और इस बार जगन्नाथ यात्रा कब से शुरू होगी।
हर 12 साल में बदल दी जाती हैं मूर्तियां
जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियां हर 12 साल में बदल दी जाती हैं। इस परंपरा को “नवकलेवर” कहा जाता है। नवकलेवर का अर्थ है नया शरीर। इसके तहत, जगन्नाथ मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन की पुरानी मूर्तियों को नई मूर्तियों से बदल दिया जाता है। ये मूर्तियां लकड़ी से बनी होती हैं, ऐसे में उनके खराब होने का भय रहता है। यही कारण है कि हर 12 साल में इन मूर्तियों को बदल दिया जाता है।
मूर्ति बदलते समय पूरे शहर की लाइट बंद कर दी जाती हैं और हर तरफ अंधेरा रखा जाता है। मूर्तियां बदलने की प्रक्रिया को गोपनीय रखा जाता है, इसलिए ऐसा किया जाता है। मूर्तियां बदलने के दौरान केवल एक प्रधान पुजारी मौजूद रहता है। पुजारी की आंखों पर भी पट्टी बंधी होती है।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा
श्री जगन्नाथ रथयात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 7 जुलाई 2024 को शुरू होगी और 16 जुलाई 2024 को समाप्त होगी। भव्य जगन्नाथ यात्रा के लिए भगवान श्री कृष्ण, बलराम और देवी सुभद्रा के तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं। जिसमें सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा और पीछे भगवान जगन्नाथ जी का रथ चलता है। भगवान अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं।
डिसक्लेमर
‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’