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शनिदेव के कारण हाथी बन गए थे भगवान शिव, पढ़ें यह रोचक पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार शनिदेव की दृष्टि के कारण भगवान शिव को धरती पर हाथी बनकर घूमना पड़ा था।

HIGHLIGHTS

  1. शनिदेव और भोलेनाथ से जुड़ी है पौराणिक कथा
  2. भगवान को हाथी बनकर घूमना पड़ा था
  3. शनिदेव की भोलेनाथ पर थी वक्रदृष्टि

Shani Jayanti 2024 धर्म डेस्क, इंदौर। शनिदेव को न्‍याय का देवता कहा गया है। वे लोगों को उनके कर्म के अनुसार दंड देते हैं और न्‍याय करते हैं। माना जाता है कि वे न्‍याय प्रणाली में सभी को एक समान ही रखते हैं, फिर वह चाहे देवता हो या दानव, वे सभी एक साथ एक समान ही न्याय करते हैं। इसलिए शनिदेव को दंडाधिकारी भी कहा गया है।

शनि देव भगवान सूर्य के पुत्र है और भगवान शिव के शिष्य है। मान्‍यता है कि भगवान शिव के आशीर्वाद के कारण ही उन्हें दंडाधिकारी की उपाधि मिली है। पौराणिक कथा के अनुसार गुरु और शिष्य का संबंध होने के बावजूद शनि देव के कारण भोलेनाथ को हाथी बनना पड़ा था। इस लेख में पढ़ि‍ए भोलेनाथ और शनिदेव से जुड़ी यह रोचक कथा।

 

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क्या है कथा?

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शनिदेव भगवान शिव से भेंट के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे थे। जहां उन्होंने भोलेनाथ से कहा कि वे अगले दिन उनकी राशि में प्रवेश करेंगे। इसके बाद भगवान शिव ने शनिदेव से पूछा कि कितनी देर तक आपकी दृष्टि मुझ पर रहेगी, तो उन्होंने बताया कि उनकी दृष्टि कल सवा पहर तक रहेगी।

धरती पर चले गए थे भगवान शिव

कहा जाता है कि शनिदेव की दृष्टि से बचने के लिए भोलेनाथ धरती पर आ गए और हाथी का रूप धारण कर लिया और इधर-उधर छुपते रहे। जब समय निकल गया तो भगवान शिव पुन: कैलाश पर्वत पर लौट गए। जिसके बाद भगवान शिव ने शनिदेव को बताया कि वे उनकी दृष्टि से बचने में सफल रहे हैं। जिसके बाद शनिदेव ने भोलेनाथ को बताया कि ये उनकी दृष्टि का ही प्रभाव था कि उन्हें हाथी बनकर धरती घूमना पड़ा। इस तरह शनिदेव की दृष्टि के कारण भोलेनाथ को हाथी बनना पड़ा था।

डिसक्लेमर

‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’

 

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