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MP Congress News: कभी राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु कहे जाते थे दिग्विजय, अब बढ़ गई है दूरियां

HIGHLIGHTS

  1. गृह क्षेत्र की राजगढ़ लोकसभा सीट से मिली दिग्विजय को शिकस्त
  2. अब राजनीतिक पुनर्वास मुश्किल
  3. दिग्विजय सिंह ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले पैदल नर्मदा परिक्रमा की थी।

भोपाल। बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो होगा…मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह पर यह लाइन सटीक बैठती है। वह ऐसे शख्स हैं, जो अपनी धुन में रमे रहकर अक्सर विवादों में बने रहते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक दिग्विजय सिंह को गांधी परिवार खासकर कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का करीबी माना जाता रहा है। वह एक समय महासचिव के नाते उत्तर प्रदेश का प्रभार भी देख चुके हैं और तब से राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु कहलाने लगे थे।

मुख्यमंत्री रहने के दौरान गांधी परिवार की सबसे ज्यादा मदद करने वालों में शामिल रहे दिग्विजय सिंह अब कांग्रेस के लिए बेगाने से हो गए हैं। वर्ष 2023 में कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह और कमल नाथ मध्य प्रदेश में पार्टी की सरकार बनवा लेंगे। पराजय मिली तो कांग्रेस नेतृत्व ने दिग्विजय सिंह को लोकसभा चुनाव लड़वा दिया।
 

जीत जाते तो मुख्यधारा में होती वापसी

संदेश स्पष्ट था कि जीते तो मुख्यधारा में वापसी होगी और हारे तो संन्यास की तैयारी, लेकिन वह जीत नहीं पाए। दिग्विजय सिंह ने यह भी कह दिया है कि अब वह कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे। उनके पास वर्ष 2026 तक राज्यसभा का कार्यकाल बाकी है, लेकिन माना जा रहा है कि अब उनका राजनीतिक पुनर्वास मुश्किल है।

सनातन विरोधी छवि तोड़ने का प्रयास किया लेकिन विफल रहे

सनातन विरोधी नेता की छवि से मुक्ति पाने के लिए ही दिग्विजय सिंह ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले पैदल नर्मदा परिक्रमा की थी। उस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली सफलता की एक वजह इसे भी माना गया। इस लोकसभा चुनाव में पार्टी ने दिग्विजय सिंह को राजगढ़ लोकसभा सीट से 33 वर्ष बाद चुनाव लड़वाया तो भी उन्होंने अपनी सनातन विरोधी छवि तोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने कई बार कहा भी कि उनके राघौगढ़ किले में 300 वर्षों से राघौजी की पूजा होती चली आ रही है। वह प्रतिवर्ष आषाढ़ी एकादशी पर पंढरपुर विट्ठोबा के दर्शन के लिए जाते हैं।

भाजपा दिग्विजय के खिलाफ हमेशा मुखर

मध्य प्रदेश की राजनीति में दिग्विजय सिंह कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के लिए कारगर माने जाते हैं। अब तो कांग्रेस में वह एकमात्र ऐसे नेता बन गए हैं, जिनके खिलाफ हमेशा भाजपा की तल्खी बनी रहती है और पार्टी भी मुखर रहती है। नगरीय निकाय से लेकर विधानसभा या लोकसभा का चुनाव ही क्यों न हो, भाजपा दिग्विजय के कार्यकाल की कथित बदहाली को याद न दिलाए, ऐसा हो नहीं सकता।

चुनाव जीतने से बढ़ती है साख

राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि राजनीति में सभी नेता प्रासंगिकता खत्म होने के बाद भी मुख्यधारा में बने रहना चाहते हैं। यही दिक्कत मध्य प्रदेश के बड़े नेताओं के साथ हो रही है। कमल नाथ ने भी समय के साथ स्वयं को नहीं बदला और दिग्विजय सिंह भी उसी राह पर रहे। लगातार दो-दो लोकसभा चुनाव हार गए। चुनाव जीतने से ही साख बढ़ती है। जयराम रमेश को ही देख लीजिए, वह न चुनाव लड़ते हैं और न जीतने का दावा करते हैं। स्वयं को विद्धान बताकर राहुल गांधी के रणनीतिकार बने हुए हैं। दिग्विजय ने तो अपने गृह क्षेत्र राजगढ़ से चुनाव लड़ा फिर भी हार गए। इससे कांग्रेस को बहुत नुकसान हुआ। जीत के प्रति आत्मविश्वास नहीं था तो चुनाव नहीं लड़ना था।

 

जो भी राजनीतिक अटकलें लगाई जा रही हो, उससे पार्टी को कोई गुरेज नहीं है, पर यह सौ प्रतिशत सच्चाई है कि दिग्विजय सिंह और कमल नाथ पार्टी के उस उच्चतम आदर्श वाले नेता हैं, जिन्होंने कांग्रेस की धरोहर बनकर काम किया है। आगे भी करेंगे। पार्टी स्तर पर उनके सम्मान में कोई भी कमी न आई है और न आएगी। – केके मिश्रा, मीडिया सलाहकार, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष

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