छत्तीसगढ़ में सातवें परिसीमन के बाद बदल जाएगा राजनीतिक भूगोल, जानिए कितनी बढ़ेंगी विधानसभा-लोकसभा की सीटें

HIGHLIGHTS

  1. छह बार के परिसीमन से छत्तीसगढ़ में बदला राजनीतिक ‘भूगोल’
  2. छत्‍तीसगढ़ में 2003 के बाद विधानसभा की 90 सीट है

रायपुर। Chhattisgarh Election 2023: छत्तीसगढ़ की राजनीतिक भूगोल में लगातार बदलाव हो रहा है। आजादी के बाद अब तक हुए छह परिसीमन से यहां राजनीतिक और जातिगत समीकरण बदले हैं। अंग्रेजों के समय छत्तीसगढ़ मध्य प्रांत और बरार प्रांत के नाम जाना जाता रहा है, जो कि 1950 तक अस्तित्व में था। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद देश में पहली बार 1951 में आम चुनाव हुए। तब यहां विधानसभा सीटों की संख्या 61 थी। वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। राज्य में 2003 के बाद 90 विधानसभा सीट हैं। तबसे अब तक सीटों की संख्या बरकरार है मगर परिसीमन के कारण कई विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व खत्म हुआ और नए विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आए हैं।

प्रदेश में परिसीमान एक बार फिर चर्चा में है। लोकसभा और राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पारित होने के बाद प्रदेश की करीब 30 विधानसभा सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो सकती है। जनगणना 2026 में होगी, जिसके बाद परिसीमन हो सकता है। 2002 में संशोधित अनुच्छेद 82 के मुताबिक परिसीमन प्रक्रिया 2026 के बाद हुई पहली जनगणना के आधार पर की जा सकती है।

क्या है परिसीमन?

भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या प्रांत में विधायी निकाय वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करना । सामान्यत: जनगणना के बाद परिसीमन किया जाता है। इसमें लोकसभा- विधानसभा दोनों ही क्षेत्र की सीमा तय होती है।

वर्षवार प्रदेश में विधानसभा सीटें

वर्ष विधानसभा सीटें

1951 61

1957 57

1962 81

1967 83

2003 90

2008 90

परिसीमन में खत्म हुई सीटें- सूरजपुर, पाल, पिलखा, बगीचा, तपकरा, सरिया, जरहागांव, सिपत, पामगढ़, मालखरोदा, रायपुर शहर, मंदिरहसौद, पल्लारी, भटगांव, भानपुरी, केसलूर, मारो, धमधा, खेरथा, चौकी और विरेन्द्र नगर।

अस्तित्व में आई नई सीटें- भरतपुर-सोनहट, भटगांव, प्रतापपुर, रामानुजगंज, कुनकुरी, कोरबा, बेलतरा, जैजैपुर, पामगढ़, बिलागईगढ़, रायपुर पश्चिम, रायपुर उत्तर, रायपुर दक्षिण, दुर्ग ग्रामीण, वैशालीनगर, अहिवारा, नवागढ़, पंडरिया, मोहला-मानपुर, अंतागढ़ और बस्तर।

अस्तित्व में आई 21 सीटों पर इनकी रही सत्ता

पार्टी 2003 2008 2013 2018

भाजपा 12 12 15 03

कांग्रेस 08 08 05 16

बीएसपी 01 01 01 02

परिसीमन के बाद इस तरह बदला स्वरूप

रायपुर का गुढ़ियारी भी रहा विधानसभा क्षेत्र

रायपुर का गुढ़ियारी भी विधानसभा क्षेत्र रहा है। 1951 के परिसीमन में इसका अस्तित्व खत्म हो गया। इसके साथ ही नरगोड़ा, पेंड्रा, पचेड़ा, पांडुका और बोरी डेकर विधानसभा क्षेत्र भी खत्म हो गया। राजनांदगांव पहले नंदगांव और सूरजपुर सुरईपुर के नाम से जाना जाता था।

इनका क्षेत्र बदला पर नाम नहीं

प्रदेश के कुछ विधानसभा सीटों के क्षेत्र में बदलाव हुआ पर नाम अभी भी पुराना है। इनमें कवर्धा, बेमेतरा, दुर्ग, खैरागढ़, डोंगरगढ़, डोगरगांव, बालोद, कांकेर, नारायणपुर, केशकाल, जगदलपुर, चित्रकोट, सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, धमतरी, कुरूद, आरंग, कसडोल, भाटापारा, राजिम, महासमुंद, बसना, सरायपाली, कोटा, तखतपुर, मुंगेली, रामपुर, कटघोरा, बिलासपुर, मस्तुरी, मनेंद्रगढ़, सामरी, सीतापुर, अंबिकापुर, जशपुर, सक्ती, रायगढ़ , सारंगढ़, चंद्रपुर, जांजगीर, पामगढ़ और अकलतरा शामिल है।

बदले जातिगत समीकरण भी

1951 में अविभाजित मध्यप्रदेश के समय 184 सीटें थीं। इनमें 61 सीटें छत्तीसगढ़ की रहीं हैं। अनुसूचित जनजाति के लिए आठ सीट आरक्षित थीं। अनुसूचित जाति के लिए 1957 में आरक्षण मिलना आरंभ हुआ। 1957 में अविभाजित मध्यप्रदेश में 218 सीटों में छत्तीसगढ़ के लिए 57 सीटें थीं। इनमें 22 अनुसूचित जनजाति, 11 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं। 1962 के परिसीमन में प्रदेश में कुल 81 सीट हो गईं। इनमें 22 अनुसूचित जनजाति, 13 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं। 1967 में 28 सीटें अनुसूचित जनजाति, 08 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं। 2003 तक 34 सीटें अनुसूचित जनजाति, 10 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं। अभी 29 सीटें अनुसूचित जनजाति, 10 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है।

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