Chhattisgarh Diary: सरकार शराब चीज ही ऐसी है जो ना छोड़ी जाए, कांग्रेस ने शराबबंदी को बताया गैर जरूरी"/>

Chhattisgarh Diary: सरकार शराब चीज ही ऐसी है जो ना छोड़ी जाए, कांग्रेस ने शराबबंदी को बताया गैर जरूरी

HIGHLIGHTS

  1. शराबबंदी के लिए हाथ में गंगाजल लेकर सौगंध पर सच-झूठ का आरोप प्रत्यारोप जारी है।
  2. 2,000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले को मनगढ़ंत बताते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं यह आंकड़ा पेश कर चुके हैं।
  3. आंकड़े भी धीरे-धीरे पी जाने वाली शराब से तेजी से बढ़ती आमदनी की गवाही देते हैं।
सतीश चंद्र श्रीवास्तव, संपादकीय प्रभारी, रायपुर। Chhattisgarh कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी कुमारी सैलजा ने बीते सप्ताह महासमुंद जिले में शराबबंदी को गैर जरूरी क्या बताया, विपक्षी दल भाजपा के लिए यह मुद्दा एकबार फिर जीवंत हो गया। ईडी पहले ही प्रदेश में दो हजार करोड़ रुपये के शराब घोटाले का हवाला देकर कार्रवाई कर रही है। जांच की आंच सत्ता के गलियारे तक भी पहुंची है। चुनावी मौसम में महिलाओं से भावनात्मक रूप से जुड़े इस मुद्दे को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जुलाई महीने में ही हवा दे चुके हैं। शराबबंदी के लिए हाथ में गंगाजल लेकर सौगंध पर सच-झूठ का आरोप प्रत्यारोप जारी है। इन सबके बीच तथ्यात्मक सत्य यही है कि वर्ष 2017-18 में सरकार ने आबकारी मद से 3,900 करोड़ रुपये की कमाई की थी जो 2022-23 में बढ़कर 6,000 करोड़ रुपये से अधिक हो चुकी है।

स्पष्ट है कि जिस राज्य में शराबबंदी के लिए सरगुजा से लेकर बस्तर तक आंदोलन खड़ा हो गया। राजधानी रायपुर ही नहीं, बिलासपुर, राजनांदगांव और महासमुंद में भी शराब विक्रेताओं को लोगों ने किराये पर दुकानें देनी बंद कर दी थीं, वहां पांच वर्षों में शराब से सरकार को होने वाली आय लगभग डेढ़ गुनी हो गई है। 2,000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले को मनगढ़ंत बताते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं यह आंकड़ा पेश कर चुके हैं। सीएजी और आयकर विभाग की रिपोर्ट के आधार पर ईडी की कार्रवाई को गलत ठहराते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल घोषणा करते रहे हैं कि जब भी शराबबंदी के लिए समाज की तरफ से आम सहमति बन जाएगी, वह प्रदेश में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देंगे।

दूसरी तरफ आबकारी मंत्री कवासी लखमा आदिवासी समाज और संस्कृति का हवाला देकर शराबबंदी का खुलेआम विरोध करते हैं। इधर महिला संगठनों और शराबबंदी के समर्थकों का दावा है कि महिलाओं के साथ अपराध और सड़क दुर्घटनाओं में शराब की अहम भूमिका है। पुरुषों द्वारा नशे की हालत में महिलाओं और बच्चों के साथ मारपीट और हत्या के दिल दहलाने वाले मामले बार-बार सामने आते हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि और आदिवासी समाज में इस चिंताजनक समस्या के विरुद्ध ही आंदोलन खड़ा हुआ था जिसके कारण शराब विक्रेताओं से लोगों ने 300 दुकानें खाली करा ली थीं। तत्कालीन आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल ने नीति में परिवर्तन करते हुए 2017-18 में सरकारी दुकानों से ही शराब की बिक्री की नई व्यवस्था शुरू कराई थी।

पूरे देश में हो शराबबंदी

विभिन्न राज्यों का दौरा करने के बाद विधायक सत्यनारायण शर्मा ने पिछले दिनों दावा किया कि शराबबंदी वाले राज्यों में लोगों के खान-पान और जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन आया है। बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समिति को खुद बताया कि सरकार ने शराब से होने वाली 5,000 करोड़ रुपये की आमदनी की चिंता नहीं करते हुए शराबबंदी की तो जनता का 10,000 करोड़ रुपये का खर्च नियंत्रित हो गया। साथ ही शर्मा पड़ोसी राज्यों से शराब तस्करी का भी हवाला देते हैं। जहरीली शराब से बिहार में मौत की घटनाओं का उल्लेख करते हुए सत्यनारायण शर्मा पूरे देश में एकसाथ शराबबंदी की बात करते हैं। उनके इस अध्ययन दौरे और सुझाव ने सरकार को फिलहाल शराबबंदी के मुद्दे को टालने का आधार दे दिया है।

शराबबंदी बनाम आमदनी

सरकार के सामने दो विकल्प हैं। एक तरफ शराबबंदी है तो दूसरी तरफ आमदनी है। कोरोना काल के बाद तो शराब से आमदनी में रिकार्ड वृद्धि दर्ज हुई। आंकड़े भी धीरे-धीरे पी जाने वाली शराब से तेजी से बढ़ती आमदनी की गवाही देते हैं। वर्ष 2016-17 में राज्य सरकार को शराब से 3,347 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ तो 2017-18 में 3,900 करोड़, 2019-20 में 4,952 करोड़, 2020-21 में 4,636 करोड़, 2021-22 में 5,110 करोड़ और वर्ष 2022-23 में 6,000 करोड़ रुपये। मुख्यमंत्री बघेल स्वयं घोषणा कर चुके हैं कि 2018 से 2023 के बीच के चार वर्ष में शराब से आमदनी डेढ़ गुना बढ़ चुकी है।

शराब विरोधियों का दर्द

प्रदेश में शराबबंदी के समर्थकों का दर्द भी अजीब है। उनका दावा है कि जितनी शराब वैध रूप से बिक रही है, कम से कम उतनी ही अवैध रूप से बिक रही है। भाजपा नेता भी आरोप लगाते हैं कि एक तरफ सरकार न्याय योजना के नाम पर लोगों को पैसे दे रही है और दूसरी तरफ शराब के माध्यम से वसूल ले रही है। इन दावों के अनुसार कहना गलत नहीं होगा कि शराब का गुणा गणित बहुत ही उलझा हुआ है। ईडी की जांच भी इसी में फंसी है जिसने मार्च 2023 में एक साथ कई जगहों पर छापे मारकर 2019 से 2022 के बीच दो हजार करोड़ रुपये के घोटाले का दावा किया। आबकारी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी और शराब वितरण कंपनी सीएसएमसीएल के पूर्व एमडी अरुण पति त्रिपाठी को इसी आरोप में महाराष्ट्र से गिरफ्तार किया गया।

गंगाजल हाथ में लेकर सौगंध

वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में शराबबंदी के लिए राज्यव्यापी आंदोलन के कारण नुकसान का सामना कर चुकी भाजपा शराबबंदी के पक्ष में खड़ी है। इसपर गंगाजल के साथ सौगंध की राजनीति भी चल रही है। पार्टी के नेता जगह-जगह प्रश्न खड़े कर रहे हैं कि कांग्रेस अपने चुनाव घोषणापत्र के वादे को पूरा करने में विफल रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत सभी शीर्ष भाजपा नेता सभाओं में आरोप लगाते हैं कि मुख्यमंत्री बनने से पहले कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में भूपेश बघेल ने गंगा जल हाथ में लेकर सौगंध खाई थी कि सरकार बनने पर शराबबंदी लागू कर देंगे। जवाब में भूपेश बघेल भाजपाइयों पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए दावा करते हैं कि उन्होंने गंगा जल लेकर किसानों का कर्ज माफ करने की सौगंध ली थी। शराबबंदी का वादा किया था परंतु जनता ही तैयार नहीं है। वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा की अध्यक्षता में सरकारी समिति बिहार और गुजरात सहित विभिन्न राज्यों में शराबबंदी का अध्ययन कर चुकी है।

दवा खाओ या दारू पियो

दो दिन पहले ही बीड़ी पीकर नाक से धुआं निकालने का तरीका बताते हुए प्रसारित वीडियो से चर्चा में आए आबकारी मंत्री कवासी लखमा पहले ही शराबबंदी के खिलाफ बगावत कर चुके हैं। उनका दावा है कि बस्तर में 90 प्रतिशत लोग शराब पीते हैं। लोग या तो शराब पीएंगे या दवा खाएंगे। इस संबंध में लखमा ने सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी थी कि वह प्रदेश में किसी भी स्थिति में शराबबंदी लागू नहीं होने देंगे। उनके अनुसार गलत तरीके से शराब पीने पर लोग मरते हैं। वह पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह से पूछते हैं कि क्या कभी अनाज का बोरा उठाया है? फिर कहते हैं कि मजदूर अगर शराब नहीं पीएगा तो बोरा नहीं उठा सकेगा। रमन जैसे लोगों को मजदूरों के दर्द का पता ही नहीं। लखमा ने पहले ही दावा कर दिया था कि दिल्ली या रायपुर की सरकार शराबबंदी नहीं कर सकेगी। बस्तर में देवी-देवता की पूजा में शराब लगती है। इसके बिना पूजा नहीं होती। पंचायतें या ग्राम सभाएं अगर शराबबंदी करना चाहेंगी तो उन्हें आपत्ति नहीं होगी।

मुश्किल है शराबबंदी

प्रदेश में शराबबंदी राजनीतिक और चुनावी मुद्दा तो बन सकता है परंतु आसान नहीं है। 32 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाले प्रदेश में लगभग 62 प्रतिशत क्षेत्र में कोई भी निर्णय पेसा कानून के तहत ही संभव है। पंचायती राज व्यवस्था को अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित करते हुए 1996 में संसद से पारित पेसा कानून ग्राम सभा की उच्च स्तरीय पंचायतों को उनके निचले स्तरीय समकक्षों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों पर नियंत्रण से रोकता है। आदिवासियों की पारंपरिक प्रणाली को मान्यता देने वाले इस कानून से जनजातियों को जल, जंगल और जमीन पर स्वशासन का अधिकार भी प्राप्त हुआ।

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