Indore: ढाई महीने से बाघ बना रहा नई टेरेटरी, 25 से ज्यादा पशुओं का किया शिकार
कपिल नीले, इंदौर रातापानी-खिवनी-उदयनगर से लेकर बड़वाह वनक्षेत्र के बीच घूमने वाला बाघ बीते ढ़ाई महीने से महू-मानपुर के जंगल में भटक रहा है। यहां के जंगल की हरियाली बाघ को इतनी रास आ चुकी है कि वह यहां से बाहर निकल नहीं पा रहा है। महू-मानपुर जंगल में बनी नई टेरेटरी को छोड़कर बाघ वापस अपने पुराने कारिडोर में लौटना चाहता है, लेकिन इंदौर से खंडवा के बीच चल रहे फोरलेन रोड के काम ने उसका रास्ता रोक दिया है।
विकास कार्यों ने जंगल में रहने वाले प्राणियों के जीवन पर असर डाला है। वन्य प्राणियों विशेषज्ञों के मुताबिक निर्माण कार्य से बाघ-तेंदुए को जंगल सुरक्षित नहीं लगता है। यही वजह है कि इन्होंने नई टेरेटरी बनाई है। पर महू-मानपुर में घना जंगल नहीं होने से बाघ को लेकर खतरा बढ़ गया है।
2007 से बाघ की हलचल रातापानी से उदयनगर और बड़वाह के बीच देखी गई है। यहां का जंगल बाघ के लिए अनुकूल है, क्योंकि पर्याप्त मात्र में भोजन-पानी उपलब्ध है। समय-समय पर बाघ कोरिडोर में इनकी मौजदूगी मिली है। मगर इंदौर-खंडवा फोरलेन, विद्युत लाइन, नर्मदा-क्षिप्रा-गंभीर लिंक प्रोजेक्ट सहित अन्य विकास कार्यों के लिए जंगल को काटना पड़ रहा है। जल स्त्रोत खत्म होने लगे है।
बडवाह से आया महू वनक्षेत्र में
उदयनगर से बड़वाह के बीच का जंगल छोड़कर बाघ बड़वाह से महू वनक्षेत्र सीमा में आया है। वन विभाग ने कई जगह पंजों के निशान और विष्ठा मिली है। महू में बड़ी जाम, छोटी जाम और बड़गोंदा का जंगल रास आया है। 100 हैक्टेयर में फैली बड़गोंदा नर्सरी में हरियाली के अलावा तालाब भी मौफजूद है। नर्सरी में जंगली सूअर, सियार, लकड़बग्घा भी है। बीते दस दिनों से बड़गोंदा से बाघ बाहर नहीं आया है। वैसे महू के बड़ी जाम का जंगल पार कर चोरल की सीमा में पहुंचा जा सकता है, लेकिन वहां फोरलेन का काम होने से बाघ का वापसी की राह नहीं मिल रही है।
वापस भेजना होगा बाघ को
महू-मानपुर में बाघ सुरक्षित नहीं है, क्योंकि यहां का जंगल घना नहीं है। बल्कि बसावट होने की वजह से बाघ को खतरा है।शिकारी भी सक्रिय हो चुके है। बेहतर होगा कि वन विभाग बाघ को वापस अपने पुराने कारिडोर उदयनगर से बड़वाह के बीच छोड़ना होगा। पूर्व पीसीसीएफ डा. पीसी दुबे का कहना है कि बाघ को वापस भेजने के लिए रेस्क्यू आपरेशन चलाउ सहारे से बाघ शाजापुर में पहुंच गया था। यहां उस दौरान हाथी पर बैठकर वनकर्मियों ने बाघ को बेहोशकर रेस्क्यू किया। बाद में दोबारा रातापानी वनक्षेत्र में छोड़ दिया था।
सुरक्षित नहीं जंगल
वनप्राणी विशेषज्ञ अभय जैन का कहना है कि वनक्षेत्र में निर्माण कार्य होने से फारेस्ट डिस्टर्ब हो चुका है। विद्युत लाइन से लेकर पाइप लाइन, रेलवे ट्रैक बिछाने के लिए पेड़ों को काटना पड़ता है। एेेसे में जंगल का दायरा घटने लगा है। इस वजह से बाघ अपनी टेरेटरी बदलने लगा है। वे बताते है कि वांचू पाइंट-बड़गोंदा बाघ के लिए सबसे अनुकुल जंगल है। यहां किसी भी प्रकार का कोई निर्माण नहीं होने से बाघ नई टेरेटरी बनाने में लगा है।
ऐसे बनाते हैं टेरेटरी
– पेड़ों को नाखूनों के निशान।
– जगह-जगह पेशाब व विष्ठा करना।
– शिकार करना।
– लगातार जंगल में घूमते रहना।
शिकारियों पर रख रहे नजर
महू-मानपुर में लम्बे समय तक रुके रहने से बाघ ने अपनी नई टेरेटरी बना ली है। इसके चलते शिकारियों पर नजर रखने के लिए ग्रामीणों की मदद ले रहे है। सूचना तंत्र विकसित कर दिया है। वैसे जंगल में बाघ के पंजों के निशान मिल रहे हैं।
नरेंद्र पंडवा, वनमंडलाधिकारी, इंदौर वनमंडल
यहां बाघ आया नजर
– 8 मई को सबसे पहले आर्मी वार कालेज परिसर के कैमरे में नजर आया
– 14 मई को मलेंडी गांव के ज्ञानसिंह ने उसे जंगल की ओर जाते हुए देखा
– 16 मई को मलेंडी गांव में गाय का शिकार किया
– 17 मई को शिकार की जगह पर लगाए गए कैमरे में नजर आया
– 18 मई को दोबारा उसी शिकार के पास कैमरे में ट्रैप हुआ
– 23 मई को फिर गाय का शिकार किया
– 24 मई को फिर वन विभाग के कैमरे में पगडंडी से जाते हुए दिखा
– 6 जून को नंदलाई घाटी में सड़क से जा रहे लोगों ने देखा और वीडियो बनाए
– 9 जून को पीथमपुर के संजय जलाश के पास भरदला गांव के जंगल में नीलगाय का शिकार किया
– 18 जून को मलेंडी गांव के जंगल में बुजुर्ग पर किया हमला
– 23 जून को बड़गोंदा नर्सरी में बाघ के पग चिह्न मिले थे।
– 3 जुलाई को जामनिया में गाय का शिकार किया।
– 6 जुलाई को फिर से लोगों को बड़गोंदा नर्सरी में नजर आया।