मां-बेटी के रिश्ते को निखारती हैं कुछ बातें…
Mother’s Day 2023: कहते हैं मां बेटी की पहली दोस्त होती है. वो मां ही होती है जिसके कंधे पर सिर रखकर बेटी रो लेती है और मां के ही साथ वह उन यादों को बुनती है जिन्हें किसी और के साथ बांटा नहीं जाता है. वहीं, जैसे-जैसे बेटी (Daughter) बड़ी होती जाती है मां की हमराही बन जाती है. मां अपनी हर छोटी-बड़ी शिकायत बेटी से कहने लगती है. हालांकि, इस खास रिश्ते में भी वक्त की दीवारें आ जाती हैं और जैसे-जैसे बेटी बड़ी होती जाती है मां (Mother) से अनचाही दूरियां बनती चली जाती हैं. अगर आपके और आपकी मम्मी के रिश्ते में आपको कुछ कमी लगने लगी है तो यहां कुछ आम सुझाव दिए जा रहे हैं जिन्हें आजमाकर आप भी अपने मां-बेटी के रिश्ते को मजबूत और एकबार फिर अटूट बना सकती हैं. मां और बेटी दोनों ही इन बातों पर ध्यान दे सकती हैं.
मां-बेटी के रिश्ते को मजबूत बनाने वाली बातें
सुनना शुरू करें
कई बार मां-बेटी साथ बातें करने तो बैठते हैं लेकिन अक्सर ही एकदूसरे को सुनने की कोशिश नहीं करते. खासकर अगर बेटी अपने फोन में ही हर वक्त लगी रहे तो मम्मी खुद को नजरअंदाज भी महसूस करती हैं और अपने मन की पीड़ा भी नहीं कह पातीं. एकसाथ बैठें, फोन या टीवी को साइड करें और एकदूसरे से बातें करें, एकदूसरे को सुनें, एकदूसरे के लिए मौजूद रहें.
रूठे को मनाना सीखें
बड़े होते-होते मां-बेटी दोनों ही लगभग एक सी हो जाती हैं, दोनों को एक सी बातों पर गुस्सा (Anger) आने लगता है, दोनों एक ही तरह से मुंह फुलाकर बैठ जाती हैं. लेकिन, अब दोनों को मनाए कौन? असल में मां-बेटी में से किसी को तो इतना समझदार होना ही पड़ेगा कि वह दूसरे को मना सके. हां, एक ही दूसरे को मनाता रहे यह सही नहीं है. कभी मम्मी बेटी को मना रही हैं तो कभी बेटी को मां को मनाना चाहिए. गलतियां होती रहती हैं लेकिन मन में खटास ज्यादा देर ना ठहर पाए इस बात का ध्यान रखना जरूरी होता है.
रिश्तों के बारे में करें बातें
जब हम किसी से खुलकर अपने मन की बातें कहने लगते हैं तो उससे जुड़ाव महसूस करते हैं. अपने मन की बातें कह देने से मन तो हल्का होता ही है साथ ही जब कोई समझने वाला (Understanding) मिल जाए तो लगता है यह सबसे करीबी, सबसे खास है. मां-बेटी आपस में बहुत सी बातें नहीं कर पातीं, लेकिन अपने मन की इच्छाएं और ख्वाब साझा कर सकती हैं. सामने वाले को भी समझदारी का परिचय देना होगा, कभी-कभी मां या बेटी की तरह नहीं बल्कि दोस्त की तरह सोचना होगा.
माफ करना सीखा
अक्सर ही हम अपनी गलती के लिए माफी तो मांग लेते हैं लेकिन माफ करने का गुण नहीं सीख पाते. माफी मांगने जितना ही माफ करना भी जरूरी होता है. माफ कर देने से कितने ही रिश्ते टूटने से बच जाते हैं, कितना ही वक्त जो एकसाथ हंसते-खेलते गुजर सकता था मनमुटाव लिए और घुटते हुए बीतता है. अगर मां गुस्से में कुछ कह दें या बेटी अपना पारा खो दे तो कोशिश करें कि आप एकदूसरे को माफ कर सकें.