खाद्य सुरक्षा आज की सबसे बड़ी चुनौती-Jaishankar
नई दिल्ली : विदेश मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने कहा है कि मौजूदा समय में विश्व की सबसे बड़ी चुनौती खाद्य सुरक्षा होने वाली है और इससे निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर काम करना होगा। डॉ. जयशंकर ने मंगलवार को देर शाम श्रीनगर स्थित शेरे कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्बारा अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए प्रवेश खोले जाने के मौके पर राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा मेला कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए यह बात कही।
विदेश मंत्री ने कहा, मुझे अगर मौजूदा समय की कुछ बड़ी समस्या को चुनना हो तो उनमें अहम है खाद्य सुरक्षा का मामला। यूक्रेन युद्ध ने इस समस्या को और गहरा कर हमारे सामने खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा कि भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष मनाने का जो फैसला किया है वो बहुत अहम है। इसके परिणाम केवल भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए हैं। इस साल जी-20 शिखर सम्मेलन से भी हम इस सन्देश को देना चाहते हैं कि खाद्य सुरक्षा के लिए यह ज़रूरी है कि सभी देश मिलकर प्रयास करें। क्योंकि सदियों से हम मोटे अनाज का उत्पादन करते आए हैं। इसके लिए नए सिरे से प्रयास करने की ज़रूरत है।
कार्यक्रम में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिह, जम्मू और कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे भी शामिल हुए। डॉ. जयशंकर ने अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा मेला पहल के लिए विश्वविद्यालय की सराहना करते हुए कहा कि तीन साल पहले, जम्मू-कश्मीर में परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हुई थी, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि विकास और प्रगति का पूरा लाभ जो शेष भारत ने कई वर्षों तक देखा था, वह जम्मू और कश्मीर के लोगों के लिए अब पूरी तरह से उपलब्ध है, खासकर युवाओं के लिए।
इस लिहाज से जम्मू-कश्मीर के लोगों का राष्ट्रीय मुख्यधारा में होना बेहद महत्वपूर्ण था। ऐसा करने से, वे शेष भारत और अंतरराष्ट्रीय मुख्यधारा से जुड़ेंगे। उन्होंने कहा, मेरे लिए यह केवल एक शिक्षा कार्यक्रम नहीं है, यह सुनिश्चित करने का एक बहुत ही अभिन्न अंग है कि भारत का एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र दुनिया में जो कुछ हो रहा है, उससे जुड़ा है। डॉ. जयशंकर ने कहा कि भारतीय विश्वविद्यालयों को अपने परिसरों में अधिक विदेशी छात्रों को आमंत्रित करने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा,आज, भारत के पास दुनिया के 78 देशों में परियोजनाएं हैं जो या पूरी हो चुकी हैं या पूरी होने वाली हैं।
इसलिए यदि हमारे संबंध इतने व्यापक हैं, निवेश इतने गहरे हैं और नेटवर्किंग इतनी अच्छी है, तो हमें यह देखने की जरूरत है कि भारत में अंतरराष्ट्रीय छात्रों का प्रवाह बड़ा हो। विदेश मंत्री ने कहा, एक वैश्वीकृत दुनिया में, यह नितांत है कि भारत के युवा दुनिया में क्या हो रहा है, इसके बारे में पूरी तरह से जागरूक हों और ऐसा करने का इससे बेहतर तरीका कोई नहीं है कि आपके बीच अंतरराष्ट्रीय छात्र हों। केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री प्रधान ने जम्मू-कश्मीर सरकार को देश के उच्च शिक्षा परिश्य की ताकत और जीवंतता के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर की ज्ञान विरासत को प्रदर्शित करने के लिए बधाई दी।
उन्होंने कहा, ”जम्मू-कश्मीर प्रधानमंत्री श्री मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में विकास की एक नई सुबह देख रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लागू होने से हम अपने शिक्षा क्षेत्र का अंतरराष्ट्रीयकरण कर रहे हैं। शिक्षा मंत्रालय शेरे कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय-कश्मीर के वैश्वीकरण का समर्थन, प्रोत्साहन और सुविधा प्रदान करेगा। उन्होंने सभी विश्वविद्यालयों को भारत को वैश्विक अध्ययन गंतव्य के रूप में स्थापित करने के प्रयासों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिह ने कहा कि प्रधानमंत्री द्बारा लाई गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति क्षमता निर्माण में योग्यता, कौशल और फ्लेक्सी विकल्पों द्बारा संचालित कैरियर और स्टार्ट-अप के अवसरों को खोलने का वादा करती है।
उन्होंने कहा, ”जम्मू कश्मीर में कृषि के नए रास्ते, अरोमा मिशन और पर्पल रेवोल्यूशन की एक समृद्ध विरासत है, जो इसे भारत में कृषि स्टार्टअप आंदोलन का पथप्रदर्शक होने की क्षमता प्रदान करती है। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल श्री मनोज सिन्हा ने जम्मू-कश्मीर के विकास में तेजी लाने और इसे छात्रों, यात्रियों और उद्यमियों के लिए एक पसंदीदा गंतव्य में बदलने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त किया। उपराज्यपाल ने कहा कि इस पहल के साथ जम्मू-कश्मीर ने विदेशी छात्रों के लिए एक समर्पित कार्यक्रम शुरू किया है। हमारा उद्देश्य विभिन्न विषयों में अल्पकालिक और दीर्घकालिक पाठ्यक्रमों के लिए जम्मू-कश्मीर में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को आमंत्रित करना और अंतर्राष्ट्रीय संपर्क को मजबूत करना है।
पिछले तीन वर्षों में, हमने शिक्षा क्षेत्र को मजबूत करने, उद्योगों, कृषि और स्वास्थ्य देखभाल जैसे क्षेत्रों के लिए ज्ञान श्रमिकों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया है।उपराज्यपाल ने कहा कि नवाचार और विकास की प्रक्रिया के लिए ज्ञान लाभांश को धन में बदलने के लिए गंभीर प्रयास किए गए हैं। इस दिशा में इस विश्वविद्यालय की पहल देश के अन्य विश्वविद्यालयों के लिए भी एक उदाहरण स्थापित करेगी। उन्होंने कहा, प्रकृति के स्वर्ग में बसे परिसरों के अलावा, पेशेवर संकाय, उच्च जीवन स्तर, जम्मू-कश्मीर भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स से लेकर कृषि विज्ञान, योग, संस्कृत और अनुसंधान और नवाचार के लिए उद्योगों के साथ इंटरफेस से शुरू होने वाले विभिन्न पाठ्यक्रमों की पेशकश कर रहा है।
उपराज्यपाल ने कहा कि 150 से अधिक उच्च शिक्षा संस्थानों, दो केंद्रीयविश्वविद्यालयों, सात राज्य विश्वविद्यालयों, दो एम्स, आईआईएम, आईआईटी, एनआईटी, एनआईएफटी, आईआईएमसी और दो कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालयों के साथ जम्मू कश्मीर भारत में छात्रों के लिए एक पसंदीदा स्थान के रूप में उभरा है। उन्होंने यह भी कहा कि जीवन के सद्गुणों के प्रति आमूल-चूल परिवर्तन, जिसे मानवता देख रही है, देशों के बीच आदान-प्रदान कार्यक्रमों द्बारा जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने और एक-दूसरे से सीखने और एक-दूसरे को हमारी यात्रा में अधिक से अधिक ऊंचाइयों को प्राप्त करने में सक्षम बनाने का एक अवसर है। आज पूरी दुनिया भारत को प्रशंसा और आशा के साथ देख रही है ।