amavasya shrad: आज है विसर्जनी अमावस्या : अगर किसी को अपने पितर की पुण्य तिथि याद नहीं है तो वह सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म कर सकता है

आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या कहते हैं यह अमावस्या इस बार 25 सितंबर यानी आज है। आज पितृ पक्ष का समापन होगा। इसे विसर्जनी अमावस्या भी कहते हैं। आज पितरों का श्राद्ध करके पितृ ऋण को उतारा जा सकता है। अगर किसी को अपने पितर की पुण्य तिथि याद नहीं है तो वह सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर्म कर सकता है। इस पर्व पर तिथि, वार, ग्रह, नक्षत्रों से मिलकर सात शुभ योग बन रहे हैं।

जिससे ये महापर्व बन जाएगा। इस शुभ संयोग में स्नान, दान और श्राद्ध करने से कई गुना शुभ फल मिलेगा। ग्रंथों में कहा गया है कि ऐसा इस दिन पितरों की संतुष्टि के लिए पेड़-पौधे भी लगाने चाहिए। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए अमावस्या को पितृमोक्ष भी कहते हैं। अश्विन महीने की इस अमावस्या पर पूजन करने से पितृ सालभर के लिए तृप्त भी हो जाते हैं।

इस पितृ पर्व पर तिथि, वार और नक्षत्र से मिलकर शुभ, शुक्ल, मित्र, सर्वार्थसिद्धि और अमृतसिद्धि योग हैं। सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य और बुध-शुक्र की युति से लक्ष्मीनारायण योग बनेगा। इन सभी योगों से बन रहे शुभ संयोग में किए गए शुभ कामों और पूजा-पाठ से मिलने वाला पुण्य फल पितरों को मिलता है। ग्रंथों में कहा है कि श्राद्ध शुरू होते ही पितृ मृत्युलोक में अपने वंशजों को देखने के लिए आते हैं और तर्पण ग्रहण करके लौट जाते हैं। इसलिए, इन दिनों में पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन और अन्य तरह के दान किए जाते हैं। जो लोग पितृ पक्ष में श्राद्ध-तर्पण नहीं कर पाएं या जिनको अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि याद न हो, वो लोग इस दिन श्राद्ध करें तो उनके पितर पूरे साल के लिए संतुष्ट हो जाते हैं।

इसलिए इसे सर्वपितृ अमावस्या कहते हैं। पितृ पक्ष की अमावस्या के दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है। इसलिए इसे पितृविसर्जनी अमावस्या भी कहते हैं। सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितर अपने वंशजो के घर हवा के रूप में श्राद्ध लेने आते हैं। उन्हें अन्न-जल नहीं मिलता तो वे दुखी होकर चले जाते हैं। इससे दोष लगता है और शास्त्रों में बताया गया पितृ ऋण बढ़ जाता है। इसलिए सर्व पितृ अमावस्या पर जल, तिल, जौ, कुशा और फूल से उनका श्राद्ध करें। फिर गाय, कुत्ते, कौवे और चीटियों के लिए खाना निकालकर ब्राह्मण भोजन करवाएं। इससे पितृ ऋण उतर जाता है।

पृथ्वी लोक से विदा होते हैं पितर सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है। इस दिन पितृ पृथ्वी लोक से विदा लेते हैं इसलिए इस दिन पितरों का स्मरण करके जल अवश्य देना चाहिए। जिन पितरों की पुण्य तिथि की जानकारी न हो उन सभी पितरों का श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या को करना चाहिए। श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण प्रसन्न होते हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। गाय को घास, कुत्तों और कौओं को रोटी खिलाएं सूरज उगने से पहले नहा लें। इसके बाद पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पूजा-पाठ करें। गाय के घी का दीपक लगाएं। श्रद्धा अनुसार दान का संकल्प लें। इसके बाद गाय को हरी घास खिलाएं, कुत्तों और कौओं को रोटी खिलाएं। अमावस्या पर महामृत्युंजय मंत्र या भगवान शिव के नाम का जाप करें। अमावस्या के दौरान ब्राह्मण भोजन करवा सकते हैं। संभव न हो तो किसी मंदिर में आटा, घी, दक्षिणा, कपड़े या अन्य जरूरी चीजें दान करें।

वेद-पुराण में श्राद्ध अथर्ववेद में कहा है कि जब सूर्य कन्या राशि में हो, तब पितरों को तृप्त करने वाली चीजें देने से स्वर्ग मिलता है। याज्ञवल्क्य और यम स्मृति में बताया है कि इन 16 दिनों में पितरों के लिए विशेष पूजा और दान करना चाहिए। इनके अलावा पुराणों की बात करें तो ब्रह्म, विष्णु, नारद, स्कंद और भविष्य पुराण में श्राद्धपक्ष के दौरान पितरों की पूजा का जिक्र है।

श्राद्ध करने से घर में सुख और शांति ग्रंथों के मुताबिक श्राद्ध करने से पितर तृप्त होते हैं। इससे उनका आशीर्वाद मिलता है। हमारा सौभाग्य और वंश परंपरा बढ़ती है। घर में सुख और शांति रहती है। परिवार में बीमारियां नहीं होती। धर्म-कर्म में रुचि बढ़ती है। परिवार में संतान पुष्ट, आयुष्मान और सौभाग्यशाली होती है। पितरों का पूजन करने वाला दीर्घायु, बड़े परिवार वाला, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य प्राप्त करता है। निर्णयसिंधु और गरुड़ पुराण में महादान की जानकारी निर्णयसिंधु और गरुड़ पुराण में महादान की जानकारी दी गई है। इन ग्रंथों में बताया गया है कि श्राद्ध या मृत्यु के बाद कौन सी चीजों का दान किया जाना चाहिए।

जिससे मृतआत्मा या पितरों का संतुष्टि मिले। इसके लिए इन ग्रंथों में दस तरह के महादान बताए गए हैं। लेकिन इतना न कर पाएं तो आठ तरह की खास चीजों का दान कर के ही अष्ट महादान का भी पुण्य मिल जाता है। दस महादान गोभूतिलहिरण्याज्यं वासो धान्यं गुडानि च । रौप्यं लवणमित्याहुर्दशदानान्यनुक्रमात्॥ – निर्णय सिन्धु ग्रंथ अर्थ – गाय, भूमि, तिल, सोना, घी, वस्त्र, धान्य, गुड़, चांदी और नमक इन दस चीजों का दान दश महादान कहलाता है। यह दान पितरों के निमित्त दिया जाता है। किसी कारण से मृत्यु के वक्त न किया जा सके तो श्राद्ध पक्ष में इन चीजों का दान करने का विधान बताया गया है। अष्ट महादान तिला लोहं हिरण्यं च कार्पासो लवणं तथा। सप्तधान्यं क्षितिर्गावो ह्येकैकं पावनं स्मृतम्॥ – गरुड पुराण अर्थ- तिल, लोहा, सोना, कपास, नमक, सात तरह के धान, भूमि और गाय। इन आठ का दान करना ही अष्ट महादान कहलाता है। इस तरह का महादान मृतात्मा या पितरों को संतुष्टि देने वाला होता है।

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