Pitru Paksha 2024: उज्जैन में 500 साल पुरानी वंशावली में परिवार की दस पीढ़ियों तक का मिल जाता है ब्योरा
Pitru Paksha 2024: उज्जैन में नाम, गोत्र व जन्म स्थान बताते ही पुरोहित आपकों अपनी वंश बेल से परिचित करा देते हैं। श्राद्ध पक्ष में मोक्षदायिनी शिप्रा के रामघाट, सिद्धवट व गया कोठा पर पितृकर्म कराने के लिए देशभर से श्रद्धालु उज्जैन पहुंच रहे हैं।
HIGHLIGHTS
- कम्प्यूटर को भी पीछे छोड़ देता है तीर्थ पुरोहितों का समृद्ध ज्ञान।
- व्यक्ति को पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पूर्वजों की जानकारी मिलती है।
- पितृकर्म कराने के लिए देशभर से श्रद्धालु उज्जैन में पहुंच रहे हैं।
उज्जैन(Pitru Paksha 2024)। अगर कोई व्यक्ति आपको अपनी दस पीढ़ियों के बारे में बता दें तो जरूर हैरानी होगी। क्योंकि खुद आपको भी अपने पूर्वजों के नाम आदि की जानकारी नहीं होगी। वंश परंपरा का यह समृद्ध ज्ञान उज्जैन के तीर्थ पुरोहितों के पास 500 साल पुरानी वंशावली में समाहित है।
तीर्थ पर पुरोहितों की सामाजिक व्यवस्था इतनी स्पष्ट है कि जिन लोगों को अपने पुरोहितों की जानकारी है, वे सरलता से उनके माध्यम से तर्पण व पिंडदान कर रहे हैं। लेकिन जिन लोगों को अपने पुरोहितों की जानकारी नहीं है, उन्हें तीर्थ पर आकर पुरोहितों को अपने नाम, गोत्र व जन्म स्थान की जानकरी देना होती है इसके बाद संबंधित व्यक्ति यजमान को अपने पुरोहित के पास पहुंचा देता है।
दादा, परदादा सभी का नाम बता देते हैं
तीर्थ पुरोहित वंशावली देखते हैं तथा संबंधित व्यक्ति के पिता, दादा, परदादा आदि का नाम बताते हैं, वंश बेल का मिलान होने पर पितृकर्म कराया जाता है। कार्य संपन्न होने के बाद तीर्थ पुरोहित वंशावली में पितृकर्म कराने आने वाले व्यक्ति का ब्योरा दर्ज करते हैं।
इसमें व्यक्ति के पितृकर्म करने आने का दिन, तिथि, पक्षकाल तथा वह किसके साथ तीर्थ पर आया है आदि सारी बातों का उल्लेख रहता है। इससे व्यवस्था से संबंधित कुल के व्यक्ति को पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पूर्वजों की जानकारी मिलती है।
गूगल से नहीं, तीर्थ पुरोहित से पूछो
तीर्थपुरोहित पं.योगेश गुरु नारियल वाला बताते हैं कोई भी जानकारी आप गुगल से प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन अपनी वंश बेल की जानकारी आपको गूगल नहीं बल्कि तीर्थ पुरोहित से ही लेना पड़ेगी। हमारे पूर्वजों ने यह समृद्ध ज्ञान दस्तावेजों में दर्ज कर रखा है, इसे वंशावली कहते हैं।
इसमें यजमान की पीढ़ी दर पीढ़ी के नाम दर्ज है, संबंधित कुल से काई भी व्यक्ति तीर्थ पर आता है, तो उसका नाम उनके पिता, दादा, परदादा के साथ दर्ज कर लिया जाता है। यह परंपरा पांच सौ साल से चली आ रही है।