Pitru Paksha 2024: तिल, चावल और जौ से पितरों का श्राद्ध कर पाए पितृ दोष से मुक्ति, देखे कब है मातृ नवमी

सनातन धर्म में पुरखों को देवताओं के समकक्ष माना गया है। इसी के चलते सनातन धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना गया है। शहर में बड़ी संख्या सनातन धर्म को मानने वाली है। ऐसे में शहरवासी अपने आसपास मौजूद तालाब, नदी या अपने घरों में पात्र पर ही अपने पितरो को तर्पण करते है।

HIGHLIGHTS

  1. पितृदोष व मातृदोष से मुक्ति के ये हैं आसान उपाय
  2. पितृ तर्पण कर अपने पुरखों को कर सकते है प्रसन्न
  3. पितरों के प्रसन्न होते ही परिवार में आती है खुशहाली

बिलासपुर। सनातन धर्म के मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो देवलोक जाने की मुक्ति नहीं मिलती। ऐसा माना जाता है कि अगर पूर्वज नाराज हो जाएं, तो घर परिवार की उन्नति रुक जाती है और हर काम में बाधा आने लगती है। पितृ तर्पण कर अपने पुरखों की पूजा करने से वह खुश होते हैं और उनकी कृपा समस्त परिवार पर बनी रहती है। छत्तीसगढ़ देव पंचांगानुसार महालयारंभ 18 सितंबर, भाद्रपद शुक्लपक्ष प्रतिपदा दोपहर 12 बजे के बाद प्रतिपद् श्राद्ध तर्पण किया जाना है।

नवमी श्राद्ध और सर्वपितृ अमावस्या

पितृ पक्ष के दौरान यह दो बेहद महत्वपूर्ण तिथियों में से एक है। मातृ नवमी के दौरान जिन लोगों की मां, दादी, नानी आदि नहीं है, उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है। इस साल नवमी तिथि 25 सितंबर, 2024 को पड़ रही है। वही सर्वपितृ अमावस्या के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है। इस साल यह 2 अक्टूबर को पड़ रही है।

पिंडदान का महत्व

आचार्य गोविन्द दुबे बताते है कि धार्मिक मान्यता अनुसार पितरों का पिंडदान करने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार पितृपक्ष के समय तीन पीढ़ियों के पूर्वज स्वर्ग और पृथ्वी लोक के बीच पितृलोक में रहते हैं। इस समय अगर आप पितरों का श्राद्ध करेंगे तो उन्हें मुक्ति मिल जाति है और वो स्वर्ग लोक चले जाते हैं। इससे घर में पितृ दोष से हो रहे परेशानियां दूर होती है और सुख -शांति का संचार होता है।

15 दिनों के लिए आजाद होते है पितृ

आचार्य गोविन्द दुबे ने बताया कि ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।

 

इन्हे दिया जाता है महत्व

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।

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