Ganesh Chaturthi 2024: अंगुलियां गढ़ रहीं मूर्ति का ‘मंगल’ स्वरूप, देश-दुनिया के लोगों को सिखा रहीं हुनर

गणेश चतुर्थी इस साल 7 अक्टूबर को पूरे देशभर में धूम-धाम से मनाई जाएगी। इससे पहले देश और विदेश में बसे सनातनियों को गणेश प्रतिमा बनाने की ऑनलाइन ट्रेनिंग इंदौर की मातृशक्ति दे रही हैं। खासबात यह है कि ये गणपति प्रतिमाएं न सिर्फ प्राकृतिक रूप से बनी होंगी, बल्कि इनमें तुलसी के बीज भी होंगे। ताकि जहां इनका विसर्जन हो, वहां तुलसी के पेड़ उग जाएं।

HighLights

  1. शहर के कई कलाकार ऑनलाइन दे रहे मूर्ति बनाने की ट्रेनिंग।
  2. विदेश में रहने वाले सनातनी भी सीख रहे हैं माटी गणेश बनाना।
  3. मूर्ति में रख रहे तुलसी के बीज, विसर्जन के बाद उगेंगे वहां पौधे।

इंदौर। कला के धनी इस इंदौर शहर के कलाकारों की सीख अब देश-दुनिया अपना रही है। परंपरा को कैसे आधुनिकता से जोड़ा जाए और कैसे उसमें नवाचार लाकर उसे और भी उपयोगी बनाया जाए, यह कोई इस शहर के हुनरमंदों से सीखे। इसका सबसे सटीक उदाहरण आने वाले दिनों में सार्थक रूप लिए दिखेगा, जब मिट्टी से बने श्रीगणेश स्थापित होंगे।

शहर के कई कलाकार इन दिनों न केवल इंदौरियों को, बल्कि देश-विदेश में रहने वाले सनातनियों को मिट्टी से गणेश मूर्ति बनाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। इस प्रशिक्षण में यह भी बताया जा रहा है कि मूर्ति किस तरह पर्यावरण हितैषी हो ताकि जितना शुभ आगमन हो, विसर्जन भी उतना ही मंगलकारी भी हो।

संसार के मंगल लिए जिस तरह पार्वती ने मिट्टी से बनी मूर्ति में प्राण फूंककर विनायक दिया। उसी तरह शहर की ये ‘देवियां’ भी अपनी रचनात्मकता से कुछ बेहतर देने का प्रयास कर रही हैं। अपनी रचनात्मकता के साथ प्रकृति का हित करने के लिए शहर की कलाकार लोगों को पर्यावरण हितैषी वस्तुओं से गणेशजी की मूर्ति बनाना सिखा रही हैं।

विदेश में रहने वाले भी ऑनलाइन ले रहे ट्रेनिंग

कलाकार अर्पिता अमित मंगल बीते सात वर्षों से मिट्टी से गणेश मूर्ति बनाने का प्रशिक्षण देती आ रही हैं। कोरोना काल से उन्होंने ऑनलाइन प्रशिक्षण देना शुरू किया और परिणाम यह रहा कि अब विदेश में रह रहे भक्त भी प्रशिक्षण लेकर ईकोफ्रेंडली मूर्ति बना रहे हैं।

वे बताती हैं कि पेपरमेशी से मूर्तियां बनाई जाती हैं और मूर्ति में तुलसी के बीज रखे जाते हैं, ताकि मूर्ति जहां विसर्जित हो, वहां पौधे उग आएं और प्रकृति का दो तरह से संरक्षण हो सके। मूर्तियों को और भी आकर्षक बनाने के लिए मंडाला आर्ट का प्रयोग किया जा रहा है।

पोस्टर कलर और गेरू से निखरती है मूर्ति

कला शिक्षक प्रद्न्या दुराफे घर में तो अपने और परिचितों के लिए गणेश मूर्ति बनाती ही हैं, साथ ही विद्यार्थियों को भी इसका प्रशिक्षण देती हैं। वे बताती हैं कि यह मूर्ति बनाने के लिए वे कुम्हार द्वारा तैयार की गई मिट्टी का उपयोग करती हैं। इससे फिनिशिंग अच्छे से आती है।

मूर्ति में चिकनाहट लाने के लिए पीली मिट्टी का उपयोग किया जाता है। मूर्ति को रंगने के लिए पोस्टर कलर, गेरू, खडिया का प्रयोग करती हैं, क्योंकि यह प्रकृति को क्षति नहीं पहुंचाते। उन्होंने बताया कि कई बार मैंने गेरू-खड़िया पाउडर को मिट्टी में मिलकर मूर्ति बनाई है। इससे मूर्ति में प्राकृतिक रूप से निखार आता है।

अनाज से सजेंगी मूर्तियां, बाद में उगेंगे पौधे

कलाकार निवेदिता शुक्ला विगत कई वर्षों से शाडू मिट्टी से मूर्ति बनाना सिखा रही हैं। वे बताती हैं कि मूर्ति बनाने के लिए अव्वल तो मिट्टी या कागज की लुग्दी का उपयोग किया जाता है। उसे सजाने के लिए भी उन वस्तुओं का उपयोग होता है, जिससे प्रकृति को क्षति नहीं पहुंचे।

इसके लिए एक्रेलिक या ऑइल कलर का उपयोग करने के बजाय कोशिश यही रहती है कि कपड़े और कागज का इस्तेमाल हो। इस बार एक और प्रयोग किया, जिसमें मूर्ति को अलग-अलग रंग के अनाज से भी सजाया जाएगा, ताकि मूर्ति को जब विसर्जित किया जाए, तो जलस्रोत के जीवों को आहार मिल जाए या उन बीजों में से पौधे उग आएं।

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