Rakshabandhan 2024: रक्षाबंधन से जुड़ी हैं पांच प्रचलित कथाएं, यहीं से शुरू हुई थी रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा

रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई अपनी बहनों को रक्षा का वचन देते हैं। इस त्योहार को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। आज हम आपको रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाओं की जानकारी दे रहे हैं। इसमें महाभारत से जुड़ी कथाएं भी शामिल हैं।

HIGHLIGHTS

  1. इस साल रक्षाबंधन पर्व 19 अगस्त को मनाया जाएगा।
  2. भाई-बहन के इस पावन पर्व का बहुत अधिक महत्व है।
  3. रक्षाबंधन पर्व का महत्व प्राचीन काल से चला आ रहा है।

धर्म डेस्क, इंदौर। Raksha Bandhan 2024: भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक त्योहार रक्षाबंधन जल्द ही आ रहा है। इस दिन देशभर में इस त्योहार की खूब धूम देखने को मिलती है। कई दिनों पहले से ही इस त्योहार को लेकर तैयारियां शुरू हो जाती है।

इस दिन बहनें अपने भाईयों को रक्षासूत्र बांधती हैं और उसके सफल भविष्य की कामना करती हैं। वहीं, भाई भी अपनी बहनों को हमेशा रक्षा करने का वचन देते हैं। इस साल रक्षाबंधन का त्योहार 19 अगस्त, सोमवार को मनाया जाने वाला है। रक्षाबंधन को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।

 

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राजा बलि और माता लक्ष्मी की कथा

रक्षाबंधन की कथा का उल्लेख स्कंद पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में मिलता है। दानवेंद्र राजा बलि के अहंकार को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण का वेश बनाकर राजा बलि से भिक्षा मांगने गए। भगवान ने भिक्षा में बलि से तीन पग भूमि मांगी।

भगवान ने तीन पग में सारा स्वर्ग, पाताल और धरती नाप लिया और राजा बलि को रसातल में भेज दिया। बलि ने अपनी भक्ति के बल पर भगवान से दिन-रात अपने सामने रहने का वचन ले लिया। नारद ने लक्ष्मी जी को भगवान को वापस लाने का उपाय बताया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। वह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी।

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इंद्राणी ने पति को बांधा था रक्षा सूत्र

रक्षा बंधन का उल्लेख भविष्य पुराण में मिलता है। मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में वृत्रासुर नाम का एक राक्षस था, जिसने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था। उसके पास एक ऐसा वरदान था कि उस पर किसी भी हथियार का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

 

तब महर्षि दधीचि ने देवताओं की जीत में मदद करने के लिए अपने शरीर का त्याग कर दिया और उनकी हड्डियों से हथियार बनाए गए। इसके अलावा, वज्र नामक एक हथियार बनाया गया और इंद्र को दिया गया। युद्ध से पहले इन्द्र अपने गुरु बृहस्पति के पास गए।

युद्ध में जाने से पहले इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने अपने पति को मंत्रों की शक्ति से शुद्ध करके रेशम का धागा बांधा था। संयोगवश वह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। युद्ध में वृत्रासुर की पराजय हुई और देवताओं ने पुनः स्वर्ग पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।

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महाभारत की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया, तो उनकी उंगली में चोट लग गई। अपनी उंगली से बहते खून को देखकर द्रौपदी बहुत दुखी हुई और उसने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया।

कहा जाता है कि तभी से कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन मान लिया। वर्षों बाद, जब पांडव द्रौपदी को जुए में हार गए और भरी सभा में उनका वस्त्रहरण किया गया, तब द्रौपदी को वासुदेव श्रीकृष्ण की याद आई और उन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई।

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महाभारत काल की दूसरी कथा

महाभारत काल में कृष्ण और द्रौपदी की कहानी तो सभी लोग जानते हैं, लेकिन युधिष्ठिर और उनके सैनिकों की कहानी बहुत कम लोग जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि रक्षा सूत्र ने पांडवों को महाभारत युद्ध में जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

महाभारत युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने सभी सैनिकों को रक्षा सूत्र बांधा था। ताकि उनकी जीत सुनिश्चित हो सके। युधिष्ठिर ने वैसा ही किया और विजयी हुए। यह घटना भी सावन माह की पूर्णिमा के दिन घटित हुई मानी जाती है।

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रानी कर्णावती और हुमायूं की कहानी

एक समय था जब राजपूतों ने देश में मुस्लिम आक्रमण के विरुद्ध लड़ाई की थी। अपने पति राणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ की कमान रानी कर्णावती के हाथों में थी। उस समय गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ पर दूसरी बार आक्रमण किया था। तब कर्णावती ने मदद मांगने के लिए हुमायूं को राखी भेजी।

हुमायूं उस समय युद्ध के बीच में था, लेकिन रानी के इस भाव ने उसे भावुक कर दिया। हुमायूं ने तुरंत अपनी सेना मेवाड़ भेज दी। दुर्भाग्य से उसके सैनिक समय पर नहीं पहुंच सके और चित्तौड़ में राजपूत सेना हार गई। रानी ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर कर लिया। लेकिन हुमायूं की सेना ने शाह को चित्तौड़ से खदेड़ दिया और रानी के बेटे विक्रमजीत को राजगद्दी सौंप दी और राखी का सम्मान बरकरार रखा।

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