भगवान शिव ने देवी सती को दिया था विधवा होने का श्राप, पढ़ें पौराणिक कथा
HIGHLIGHTS
- रोग, पीड़ा और शोक की देवी हैं मां धूमावती।
- विधवा देवी के रूप में होती है माता की पूजा।
- रोगों से पीड़ित लोगों को करनी चाहिए देवी धूमावती की पूजा।
धर्म डेस्क, इंदौर। Dhumavati Jayanti 2024: धार्मिक ग्रंथों में सती-स्वरूपा देवी धूमावती का उल्लेख मिलता है। देवी धूमावती दस महाविद्याओं में सातवीं देवी मानी जाती हैं। इन्हें विधवा देवी के नाम से जाना जाता है। हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को धूमावती जयंती मनाई जाती है। इस साल यह 14 जून, 2024 को मनाई जाएगी। यह दिन देवी धूमावती को समर्पित माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता के घर में हवन कुंड में खुद को भस्म कर लिया था, तब उनके शरीर से निकले धुएं से माता धूमावती प्रकट हुईं। मां धूमावती को रोग, पीड़ा और शोक को नियंत्रित करने वाली महाविद्या कहा गया है।
विवाहित महिलाएं देवी धूमावती की पूजा नहीं करती हैं, क्योंकि यह देवी विधवा स्वरूप में हैं। किसी भयानक रोग से पीड़ित लोगों को इनकी पूजा करनी चाहिए। देवी धूमावती से जुड़ी एक और पौराणिक कथा प्रचलित है।
देवी धूमावती से जुड़ी पौराणिक कथा
एक बार देवी सती के साथ कुछ ऐसा हुआ कि उन्हें बहुत भूख लगने लगी। अत्यधिक भूख के कारण देवी सती ने देखते ही देखते सब कुछ निगल लिया, लेकिन फिर भी उनकी भूख शांत नहीं हुई। अत्यधिक भूख से पीड़ित होकर देवी इधर-उधर भटक रही थी, तभी भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए। तब देवी सती ने बिना कुछ देखे या समझे भगवान शिव को निगल लिया। इससे हर तरफ हड़कंप मच गया।
सभी देवता मिलकर माता सती के पास गए और देवी सती से भगवान शिव को मुक्त करने की प्रार्थना की। देवी सती को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव को रिहा कर दिया। तब भगवान शिव क्रोधित हो गए और देवी सती को वृद्ध विधवा होने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से देवी सती वृद्ध विधवा हो गईं। देवी सती के इस वृद्ध विधवा रूप को धूमावती कहा गया। देवी सती के धूमावती रूप को एक विधवा देवी के रूप में पूजा जाने लगा।
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