Mahabharat: सबसे बड़ी सहिष्णु थी माता कुंती, फिर क्यों की दी पांडवों को महाभारत युद्ध की आज्ञा, जानें कारण
HIGHLIGHTS
- महाभारत के उद्योग पर्व में इसका उल्लेख मिलता है।
- देवी कुंती ने कष्ट से बचकर कभी भी सुख, आराम और राज्य की कामना नहीं थी।
- देवी कुंती के व्यवहार में सत्ता लोलुपता नहीं थी।
धर्म डेस्क, इंदौर। रामायण व महाभारत दो ऐसे धार्मिक ग्रंथ हैं, जो हमें जीवन जीने की सीख देते हैं। इन ग्रंथों में कई ऐसे पौराणिक कहानियां दी है, जो हमें सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा देती है। ऐसा ही एक किस्सा माता कुंती से जुड़ा हुआ है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। महाभारत में जिक्र है कि माता कुंती का व्यवहार अत्यंत ही सहिष्णु था और किसी भी परिस्थिति में खुद को आसानी से ढाल लेती थी।
भगवान से मांगा विपत्ति का वरदान
पौराणिक कथाओं में हमने अक्सर पढ़ा और सुना है कि भगवान जब दर्शन देते हैं तो भक्त अपने लिए वरदान में कुछ अच्छी मांग करते हैं, लेकिन एक मात्र देवी कुंती ही ऐसी थी, जब उन्हें भगवान ने दर्शन दिए थे तो उन्होंने वरदान में विपत्ति की मांग की थी। महाभारत के उद्योग पर्व में इसका उल्लेख मिलता है। देवी कुंती ने कष्ट से बचकर कभी भी सुख, आराम और राज्य की कामना नहीं थी। देवी कुंती के व्यवहार में सत्ता लोलुपता नहीं थी।
पांडवों को इसलिए दी युद्ध की अनुमति
माता कुंती शांति प्रिय व सहिष्णु होने बाद भी महाभारत युद्ध के लिए क्यों मान गई? यह सवाल किसी के भी मन में आ सकता है। दरअसल माता कुंती को दो बातों को लेकर काफी ज्यादा दुख था। पहला राज्य के लिए कौरव व पांडव में विवाद को लेकर और दूसरा अपनी पुत्रवधू द्रौपदी को भरी सभा में दुर्योधन द्वारा अपमान करने पर। द्रौपदी का अपमान करना माता कुंती को काफी बुरा लगा। उनका मानना था कि ऐसी घृणित चेष्टा करना मनुष्यता नहीं है। यही एक प्रमुख कारण था कि माता कुंती ने युद्ध की अनुमति दे दी थी।
पांचों पांडवों के जीवन में धर्म की प्रमुखता थी। उनका भाव था कि हम चाहे जैसा भी जीवन निर्वाह कर लेंगे, लेकिन अधर्म के रास्ते पर नहीं चलेंगे। महाराज युधिष्ठिर भी युद्ध नहीं चाहते थे, लेकिन माता कुंती की ओर आज्ञा मिलने पर ही उनमें युद्ध की प्रवृत्ति जाग्रत हुई और द्रौपदी के अपमान का बदला लेने के लिए प्रेरित हुए।