छत्‍तीसगढ़ का अद्भुत शिव मंदिर, जहां दर्शन मात्र से संतान कामना होती है पूरी

 रायपुर: छत्‍तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के रिंगरोड नंबर-1 में पचपेड़ी नाका से टाटीबंध जाने वाले मार्ग पर रायपुरा चौक से कुछ ही दूरी पर सरोना गांव में शिव मंदिर की महिमा अपरंपार है। यह कछुआ वाले तालाब के शिव मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि कुछ साल पहले तक तालाब में 100 साल से अधिक की उम्र के कछुए थे, जिन्हें देखने के लिए श्रद्धालु तालाब के किनारे जुटते थे। अब वहां छोटे-छोटे कछुए हैं, जो शिव मंदिर में आकर्षण का केंद्र है!

मंदिर का इतिहास

कहा जाता है कि सरोना गांव में लगभग 250 साल पहले जूनागढ़ से नागा साधुओं का दल पहुंचा हुआ था। 14 गांवों के मालगुजार स्व. गुलाब सिंह ठाकुर के कोई संतान नहीं थी। वे साधुओं से आशीर्वाद लेने पहुंचे तो नागा साधुओं ने कहा कि गांव के तालाब के बीच शिव मंदिर बनवाने से उन पर भोलेनाथ की कृपा होगी। नागा साधुओं के आदेश पर मालगुजार ठाकुर ने तालाब के बीचो-बीच शिव मंदिर बनवाया। इसके बाद उन्हें दो पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।

मंदिर की विशेषता

शिव मंदिर की विशेषता यह है कि यह दो तालाबों के बीच बना है। मंदिर के नीचे से दोनों तालाब आपस में जुड़े हैं। इस तालाब में अनेक कछुए हैं। गर्भगृह की दीवार पर भगवान शंकर की प्रतिमा के सिर पर पांच नाग नजर आते हैं। खास बात यह है कि भगवान शंकर की गोद में नवजात श्रीगणेश लेटे हुए हैं। इसके नीचे पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है। साथ ही भक्त त्रिख मुखा देव का सिर भी स्थापित है।जिसे शिव का अनन्य भक्त माना जाता है। शिवजी के साथ भक्त की भी पूजा की जाती है।

क्‍या है मान्यता

मंदिर का निर्माण कराने वाले मालगुजार स्व. गुलाब सिंह ठाकुर को दो पुत्र की प्राप्ति हुई थी। इसके पश्चात आसपास के गांवों में यह बात फैल गई और नि:संतान दंपत्ती मन्नत मांगने आने लगे। वर्तमान में भी पति-पत्नी एक साथ दर्शन करने आते हैं और संतान प्राप्त होने की कामना करते हैं।

फूलों से श्रृंगार, भजन-कीर्तन

प्रधान पुजारी शंकर गोस्वामी ने कहा, मंदिर में शिवलिंग का श्रृंगार प्रतिदिन फूलों, बेलपत्र से किया जाता है। साथ ही सुबह-शाम भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक सोमवार को सुबह से शाम तक जलाभिषेक और फिर श्रृंगार करके महाआरती की जाती है।

संत तुलसीदास का मंदिर

यह राजधानी का एकमात्र शिव मंदिर है जहां श्रीरामचरितमानस के रचियता संत गोस्वामी तुलसीदास की प्रतिमा प्रतिष्ठापित है। हर साल श्रावण शुक्ल सप्तमी तिथि को संत तुलसीदास जयंती मनाई जाती है।

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