चुनावी रणनीति में माहिर PM नरेंद्र मोदी कैसे बन गए BJP की जीत की ‘गारंटी’?
मोदी सरकार के 9 साल पूरे होने पर NDTV खास डॉक्यूमेंट्री सीरीज (PM Modi Documentary Series Episode 6) लेकर आया है. आज सीरीज के छठें एपिसोड में जानें आखिर चुनाव में मोदी फैक्टर (#BJPpollmachinery) इतना मजबूत क्यों है? ऐसा क्या है कि विपक्ष मोदी फैक्टर का कोई तोड़ नहीं ढूंढ पा रहा है?
मैं नरेंद्र दामोदर दास मोदी ईश्वर की शपथ लेता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा. मैं भारत की प्रभुता और अखंडा का अक्षुण्ण रखूंगा. मैं संघ के प्रधानमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूंगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेश के बिना सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा.
2014 में 17 करोड़ मतदाताओं ने बीजेपी को चुना
26 मई 2014 को जो शुरुआत हुई थी, वो आज तक जारी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदार दास मोदी सबसे कामयाब राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी को 9 साल तक लगातार जीत दिलाते आए हैं. ये सफर अभी थमा नहीं है. 2014 में भारत में 82 करोड़ मतदाता थे. यूरोप, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया को मिला दे तो, ये संख्या उनकी पूरी आबादी है. इनमें से करीब 55 करोड़ ने वोट डाले. इनमें से 17 करोड़ मतदाताओं ने बीजेपी को चुना. इतने लोग अगर उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक खड़े हो जाए, तो इससे चार सीधी कतारें बन जाएंगी.
2019 में बीजेपी को मिले 23 करोड़ वोट
2019 में भारत में 91 करोड़ मतदाता थे. यानी यूरोप, रूस और ऑस्ट्रेलिया की कुल आबादी के बराबर मतदाता. 2019 के चुनाव में बीजेपी को अगले 23 करोड़ वोट मिले, जो उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक लोगों की छह कतारों के बराबर है. मोदी के राजनीतिक दल बीजेपी ने आखिर ये कैसे किया? क्या ये अकेले मोदी का जादू है?
निश्चित रूप से ये पीएम मोदी का नेतृत्व बीजेपी की जीत में एक बड़ा और महत्वपूर्ण पड़ाव है.
भूपेंद्र यादव
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री
किताब ‘द आर्किटेक्ट ऑफ द न्यू बीजेपी’ के लेखक अजय सिंह कहते हैं, “मोदी फैक्टर महत्वपूर्ण है, इसमें तो कोई दोराय नहीं है. हमने जो किताब लिखी-‘द आर्किटेक्ट ऑफ द न्यू बीजेपी’… उसमें हमने जिक्र किया है कि ऑर्गनाइजेशन की अहमियत को भी कम करके नहीं देखा जा सकता, क्योंकि ये भी एक बड़ा फैक्टर है. जहां एक इंडिविजुअल चार्म है,वहीं ऑर्गनाइजेशन का प्रभाव भी एक बड़ा फैक्टर है.”
लेखक, राजनयिक और पूर्व राज्यसभा सांसद पवन के वर्मा कहते हैं, “बीजेपी के पास एक मजबूत नेता, एक करिश्माई नेता और हर ऐतबार से एक लोकप्रिय नेता है. लोग उनसे सहमत हों या न हों… लेकिन वो अपनी पार्टी के निर्णायक नेता हैं.”
लोकनीति-सीएसडीएस के सह निदेशक संजय कुमार कहते हैं, “2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह की जीत बीजेपी को मिली. साथ ही अन्य राज्यों के चुनाव में जो जीत बीजेपी को मिली… इसका श्रेय तो पीएम मोदी को जाता है. ऐसे राज्य हैं, जहां ऐसा लगता नहीं था कि बीजेपी जीत पाएगी… पार्टी वहां कमजोर दिखाई पड़ती थी, लेकिन पार्टी को जीत मिल गई. कई राज्यों के चुनाव ऐसे हैं जहां पीएम मोदी के कारण ही बीजेपी को जीत हासिल हुई.”
नई दिल्ली में बीजेपी का मुख्यालय, जहां सभी बड़े निर्णय लिए जाते हैं. जीत चाहे जितनी छोटी हो या जितनी बड़ी… जश्न यहीं मनाया जाता है. जब-जब चुनाव के नतीजे आते हैं, तब-तब शाम को बीजेपी के नेता यहां जमा होते हैं.
लोकनीति-सीएसडीएस के सह निदेशक संजय कुमार कहते हैं, “ये एक मौका होता है, जब पीएम मोदी अपने कार्यकर्ताओं के साथ बात करते हैं. वो अपने कार्यकर्ताओं तक संदेश पहुंचाते हैं. उन्हें धन्यवाद देते हैं. पीएम मोदी यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि बीजेपी के लिए हर जीत अहम है. आपने ध्यान दिया होगा कि जब पीएम मोदी ऐसे संदेश देते हैं, तो वो आने वाले चुनावों का भी जिक्र करते हैं. ये एक तरह से संगठन को मजबूत रखने का एक जरिया है.”
चुनाव दर चुनाव बीजेपी का स्ट्राइक रेट विपक्षी दलों के मुकाबले अच्छा रहा है. पिछले 4 दशकों में बीजेपी की सफलता की तस्वीर देश के नक्शे में देखी जा सकती है. इसीलिए सन 1984 में बीजेपी के पास 2 सांसद थे. 2019 में पार्टी अपने दम पर 300 के पार (303) पहुंच गई.
लोकतंत्र में पहली बात तो हार भी कोई बुरी बात नहीं है. लेकिन हां… हर पार्टी जीतने के लिए चुनाव लड़ती है. बीजेपी में अमित शाह जब राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, तो उन्होंने पार्टी की सदस्यता के विस्तार के लिए एक बहुत बड़ा कैंपेन चलाया. पार्टी अध्यक्ष के नाते उन्होंने अपने कार्यकाल में लगभग तीन बार पूरे हिंदुस्तान का दौरा किया. देश के जिलों में रात गुजारी. कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें कीं. जब शीर्ष नेतृत्व इतनी सहजता के साथ जिलास्तर पर उपलब्ध होता है,तो कार्यकर्ताओं में नैतिक बल भी खड़ा होता है और लड़ने की ताकत भी खड़ी होती है.
भूपेंद्र यादव
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री
मोदी की पार्टी का दावा है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है.पार्टी को अपने संगठनात्मक ढांचे और कार्यकर्ताओं पर गर्व है. लेकिन अगर मोदी को इससे अलग कर दें, तो क्या भारी जीत का ये सिलसिला जारी रहेगा?
अजय सिंह कहते हैं, “मोदी जी हैं तो जीत है या ऑर्गनाइजेशन है तो जीत है… ये सवाल वैसा ही है कि पहले मुर्गी आई या अंडा. राजनीति में ऐसे सवाल का जवाब देना मुश्किल हो जाता है, लेकिन ज़ाहिर है दोनों की बराबर की महत्ता है. लेकिन, मेरे विचार में अगर आपका संगठन मज़बूत है, तो वो व्यक्तियों से अधिक लंबा चलता है. संगठन अपने समय के आदर्श खुद ईजाद करते हैं.”
लोकनीति-सीएसडीएस के सह निदेशक संजय कुमार बताते हैं, “मेरी राय में अब इस मशीन को मोदी के बिना कुछ करने में बड़ी मुश्किल आएगी. हमने विधानसभा और लोकसभा चुनावों का सर्वेक्षण किया. इस बारे में बहुत चर्चा होती रहती है कि प्रधानमंत्री मोदी बीजेपी के लिए कितने बेशक़ीमती हैं. हमने उसको परिमाणित करने की कोशिश की. हमने ये पाया कि 2019 लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मिलने वाले हर 100 वोटों में से 36 प्रधानमंत्री मोदी की वजह से आए. ये मोदी का बीजेपी को तोहफ़ा था. मशीनरी की अहमियत है, गाड़ी की ज़रूरत होती है एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए, लेकिन गाड़ी चलाने के लिए एक अच्छा ड्राइवर चाहिए. मेरे विचार में प्रधानमंत्री मोदी इस मशीन को आगे ले जाने के लिए बहुत अच्छे चालक साबित हुए हैं.”
बीजेपी अपनी संगठनात्मक शक्ति और आरएसएस के अलावा संघ परिवार के दूसरे संगठनों की मदद से भी सत्ता में है. मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं, जाति की जटिलताओं की समझ और सबसे अहम बीजेपी की प्रमुख विचारधारा हिंदुत्व के बल पर आई. यही कारण है कि इस दल को राम मंदिर आंदोलन के दौरान जो समर्थन मिला, उसके बाद इसने पीछे मुड़कर नहीं देखा. ज़ाहिर है पार्टी अपनी इस ताक़त को और मज़बूत कर रही है.
क्यों जीतते हैं मोदी- जातिगत गणित
दो साल पहले नलिन मेहता की किताब ‘द न्यू बीजेपी’ बताती है कि मोदी की चुनावी जीत सिर्फ़ प्रचार और उत्साह के बल पर नहीं बल्कि, जातिगत गणित की गहरी और वैज्ञानिक समझ के हिसाब से उसके प्रबंधन का नतीजा है. इन अध्यायों में राज्य और ज़िले के स्तर पर अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के प्रतिनिधित्व की कुल संख्या की चर्चा है. ये हैरानी की बात नहीं कि बीजेपी गैर-जाटव दलितों को लुभाने की कोशिश करती है, जो बीएसपी के पारपंरिक वोटर हैं या यदुवंशियों के एक हिस्से को, जो पारंपरिक तौर पर सपा के वोटर रहे हैं। 2014 में, भारत के सबसे घनी आबादी वाले राज्य यूपी में बीजेपी को 80 में 70 से ज़्यादा सीटें मिलीं. और 2019 में जब सपा-बसपा एक होकर लड़े थे, तब भी बीजेपी 60 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. यही कहानी राज्य दर राज्य दोहराई जा रही है. कुछ राज्यों में पार्टी कामयाब है, कुछ में नहीं.
संजय कुमार कहते हैं, “ये बीजेपी ने कोई नई बात नहीं की है, लेकिन उसने कई दूसरे दलों से इसे बेहतर तरह से किया है. आंकड़े देखें कि कैसे अलग अलग चुनावों में OBC ने वोट दिए. 2009 चुनावों में बीजेपी को मिलने वाले लगभग 12-14% वोट में से 20% वोट ओबीसी के थे. लेकिन 2019 लोकसभा चुनावों में 44% ओबीसी वोट बीजेपी को मिले, यानी दोगुने. अगर देखें कि ये कौन से ओबीसी हैं जो अब बीजेपी को वोट दे रहे हैं तो ये ज़्यादातर निम्न ओबीसी में से हैं.”
संजय कुमार आगे कहते हैं, “बीजेपी को एहसास हुआ कि ओबीसी के साथ जातिगत तालमेल बनाना होगा. दलित भी अब बीजेपी को समर्थन देने लगे हैं, आदिवासी भी बीजेपी को वोट दे रहे हैं. देखिए जब द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनीं, तो उन्होंने इसका बड़े ज़ोरशोर से प्रचार किया कि बीजेपी सरकार ने ये काम किया है. तो बीजेपी को ये पता था कि स्थिर समर्थकों का आधार बनाने के लिए जाति गठबंधन बनाना पड़ेगा और ये वो पिछले 10 साल से सफलतापूर्वक करते रहे हैं.”
क्या यही वजह है कि विपक्ष अब चाहता है कि सरकार जाति आधारित जनगणना करवाए? ताकि ये पता चल जाए कि ओबीसी और दूसरी जातियों की असल संख्या कितनी है? ये काम पिछली बार 1930 में अंग्रेज़ों के राज में हुआ था…2011 में सुगबुगाहट थी लेकिन कुछ हुआ नहीं. बीजेपी इस मामले पर खुल कर कुछ भी नहीं कह रही.
मोदी अपने उपलब्धियों को रोज़ाना कई कई बार दोहराते हैं…सड़कों से लेकर हवाई अड्डों और बंदरगाहों का ज़िक्र करते हैं. विकास अहम है, लेकिन बीजेपी ये नहीं भूली है कि कामयाबी के इस नुस्ख़े में उसकी विचारधारा का सबसे बड़ा योगदान है.
संजय कुमार कहते हैं, “मेरी इस बारे में ज़रा अलग राय है. बीजेपी को इतनी ऊंचाई पर हिंदुत्व ने नहीं पहुंचाया है. हिंदुत्व ने बीजेपी का आधार मज़बूत किया, लेकिव हिंदुत्व से ज़्यादा राष्ट्रवाद है. राष्ट्रवाद बीजेपी को नई ऊंचाइयों पर ले गया है. राष्ट्रवाद एक शब्द है और हिंदुत्व राष्ट्रवाद के साथ जुड़ जाता है. जब हम विश्व में भारत की छवि की बात करते हैं, तो वो भी राष्ट्रवाद के दायरे में आता है. तो हिंदुत्व से ज़्यादा, हिंदुत्व तो बीजेपी का वोट प्रतिशत 30%- 32% तक ले गया, लेकिन जब बीजेपी ने राष्ट्रीय गौरव की बात शुरू की तो उसने पार्टी को उन बुलंदियों पर पहुंचाया जो बीजेपी को हासिल हुई है, 2019 लोकसभा चुनावों में 37% वोट.
मोदी के सामने विपक्ष कैसा है? और अगर वो एकजुट हो गया तो क्या 2024 में उन्हें हरा पाएगा? इस सवाल के जवाब में संजय कुमार कहते हैं, “बीजेपी को तो एकजुट विपक्ष हरा सकता है, लेकिन मोदी को एकजुट विपक्ष नहीं हरा सकता. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि अगर आप लोकप्रियता के पैमाने पर प्रधानमंत्री मोदी का क़द देखें, तो विपक्ष में ऐसा कोई नेता नहीं है, जो प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का मुक़ाबला कर सके.”
संजय कुमार कहते हैं, “अब ये सवाल है कि क्या विपक्ष एक होता है, तो बीजेपी को हराया जा सकता है? अगर आप इस आधार पर ये हिसाब लगाएं कि सभी राजनीतिक दलों को उतने ही वोट मिलेंगे जितने 2019 में मिले थे. और अगर सारी ग़ैर बीजेपी पार्टियां एक साथ आ जाती हैं, तो ये संभावना है कि बीजेपी 220-230 सीटों तक सिमट जाए. स्थानीय दल 300 का आंकड़ा पार कर सकती हैं, लेकिन क्या ये व्यवहारिक लगता है? मुझे तो ऐसा नहीं लगता.”