सीपीआई का असर: EMI घटने की उम्मीद बढ़ी, जानें महंगाई और ब्याज दरों में क्या है नाता
दिसंबर में थोक मूल्य सूचकांक में गिरावट पिछले सप्ताह जारी खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों के अनुरूप है। सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति लगातार दूसरे महीने रिजर्व बैंक के छह प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से नीचे रही है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि रिजर्व बैंक नीतिगत दर (रेपो) में वृद्धि के रुख को थाम सकता है। इससे कर्ज की मासिक किस्त (EMI) में तेजी का सिलसिला भी थम सकता है।
दिसंबर में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) यानी खुदरा कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति घटकर 5.72 प्रतिशत पर आ गई थी। वहीं समीक्षाधीन अवधि में थोक महंगाई भी 22 माह के निचले स्तर पर पहुंच गई है। इससे पहले महंगाई में तेज उछाल को देखते हुए पिछले साल मई से रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में लगातार वृद्धि की। आरबीआई ने मई से दिसंबर के बीच रेपो दर में 2.25 का इजाफा किया। इसके बाद बैंकों ने भी अपने कर्ज की ब्याज दरों में वृद्धि की जिससे आवास और वाहन समेत सभी तरह के कर्ज महंगे हो गए। इससे लोगों की ईएमआई में भी लगातार वृद्धि होती रही।
महंगाई और ब्याज दरों में नाता
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार जब कर्ज सस्ता होता है तो ईएमआई होने की वजह से लोग कर्ज लेकर खुलकर खर्च करते हैं। सस्ता कर्ज उपभोक्ताओं की खरीदने की क्षमता बढ़ा देता है। वहीं जब कर्ज महंगा होता है तो लोग बहुत संभलकर खर्च करते हैं। साथ ही कंपनियां भी विस्तार पर ज्यादा खर्च नहीं करती हैं। इससे मांग में नरमी के साथ महंगाई भी घटती है।
खुदरा मुद्रास्फीति पर कैसे होगा असर
विशेषज्ञों के आकलन के मुताबिक थोक महंगाई का असर उपभोक्ताओं तक पहुंचने में एक से डेढ़ माह तक का समय लगता है। इसमें उत्पादन से लेकर परिवहन और भंडारण तक का समय होता है। ऐसे में यदि थोक महंगाई में नरमी आती है तो इसका मतलब है कि आने वाले डेढ़-दो माह में खुदरा महंगाई भी घटेगी। इस तरह थोक मुद्रास्फीति खुदरा महंगाई में बदलाव का पहले संकेत दे देती है।
आरबीआई कैसे करता है आकलन
रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की समीक्षा में नीतिगत दर तय करते समय देश के कई आर्थिक संकेतकों के साथ खुदरा महंगाई के आंकड़ों पर भी गौर करता है। इसमें तेजी आने पर वह दरों में वृद्धि का फैसला करता है। जबकि लगातार नरमी आने पर दरों में कमी का फैसला करता है। ऐसे में माना जा रहा है कि खुदरा महंगाई में लगातार नरमी के बाद आरबीआई दरों में वृद्धि के रुख को रोक सकता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
पीजीआईएम इंडिया म्युचुअल फंड के प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) पुनीत पाल का कहना है कि आने वाले दिनों में भी भारत में महंगाई के और नरम पड़ने की उम्मीद है। पाल का कहना है कि अमेरिका और यूरोप में भी महंगाई में गिरावट देखी गई है। ऐसे में दरों में वृद्धि का रुख थमने की संभावना बनती है तो यह तय आमदनी वाले विकल्पों में निवेश की सही समय है। इससे ऊंचा ब्याज का लाभ ले सकते हैं।