उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग अपने आठ साल के सफर में कुल 10 हजार युवाओं को ही रोजगार
देहरादून. साल 2014 में गठित उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग अपने आठ साल के सफर में कुल 10 हजार युवाओं को ही रोजगार दे पाया है, जबकि आयोग की नाकामी से इस दौरान करीब सात हजार पदों की भर्ती अब तक खारिज हो चुकी है या होने के कगार पर है। इसमें ऐसे मामले में भी शामिल है, जिसमें अंतिम चयन के बाद परीक्षा रद की गई।
राज्य सरकार ने साल 2014 में इस भर्ती आयोग का गठन किया था, इसके बाद आयोग ने 2015 में पहली परीक्षा कराई। तब से अब तक आयोग कुल 88 परीक्षाएं आयोजित करवा चुका है। जिसमें कुल 19390 पद शामिल हैं। लेकिन इसमें से सिर्फ 10045 का ही अंतिम चयन हो पाया। जबकि आयोग अब तक 6957 पदों की परीक्षा या तो खारिज कर चुका है या खारिज करने की संस्तुति की जा चुकी है। इस तरह कुल विज्ञापित पदों के मुकाबले रद्द पदों का आंकड़ा 35 फीसदी तक पहुंच रहा है। इसमें वीपीडीओ 2016 के 196 पद शामिल नहीं हैं, जिसमें दोबारा परीक्षा के बाद चयन पूरा हो चुका है। इसके अलावा अभी स्नातक स्तरीय परीक्षा, सचिवालय सुरक्षा दल और वन दरोगा के भी करीब 1300 पदों का निरस्त होना तकरीबन तय माना जा रहा है। लगातार विवादों के कारण उत्तराखंड में एक परीक्षा को सम्पन्न होने में औसत दो से तीन साल का भी समय लग जाता है। अंतिम समय पर भर्ती रद होने की दोहरी मार पड़ रही है।
भर्ती निरस्त होने से गुस्साए युवाओं का प्रदर्शन..
- उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा आठ भर्ती परीक्षाओं को रद किए जाने की सिफारिश से आक्रोशित युवाओं ने शनिवार को आयोग मुख्यालय पर प्रदर्शन किया। युवाओं ने आयोग पर अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए, युवाओं का भविष्य अंधकार में डालने का आरोप लगाया। युवाओं ने इस फैसले के खिलाफ 17 अक्तूबर को सीएम आवास कूच की भी घोषणा की है। आयोग ने परीक्षा की गोपनीयता पर संदेह व्यक्त करते हुए, एलटी, पीए, कनिष्ठ सहायक, पुलिस रैंकर्स के साथ ही वाहन चालक, अनुदेशक, मत्स्य निरीक्षक, मुख्य आरक्षी दूरसंचार परीक्षाओं को रद करने की सिफारिश शासन से की है। इसमें से पहली चार का परिणाम भी जारी हो चुका है, जबकि अन्य में परीक्षा हो चुकी है। इसमें कुल 3115 पद शामिल हैं। इस मौके पर मनोज भंडारी, आंनद सिंह, हम्जा, अंकित डंगवाल, विजय जमलोकी, नवीन बिष्ट, गुडमोहन आदि मौजूद रहे।