Lord Ram: कैसा था भगवान श्रीराम का स्त्री के प्रति दृष्टिकोण? यहां पढ़ें उनके जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण बातें

जहां माता कौशल्या को स्वयं श्रीराम (Lord Ram) की जननी होने का गौरव प्राप्त हुआ वहीं माता कैकेयी के साथ रघुकुल की सुरक्षा के साथ-साथ मानव समाज के कल्याण की भावना भी है। यही नहीं माता सुमित्रा पारिवारिक मर्यादा का पालन करते हुए अपने दोनों पुत्रों को राजभवन के सत्ता संघर्ष से दूर रखकर पारिवारिक एकता का आदर्श प्रस्तुत करती हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। प्रभु श्रीराम ने हमेशा नारी शक्ति को यथोचित सम्मान व स्थान दिलवाया। यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता… श्रीरामायण का सार देखते हैं तो अपने जीवनकाल में भगवान श्रीराम ने इस श्लोक के सम्यक ही व्यवहार किया। इसके लिए प्रभु श्रीराम ने अपने आचरण से उदाहरण भी प्रस्तुत किए। माता कैकेयी ने भले ही उनके लिए वनवास मांगा, लेकिन उन्होंने उनकी लाज रखी। इसके साथ ही माता कैकेयी के सम्मान में आजीवन कोई कमी नहीं आने दी। स्त्री के प्रति भगवान श्रीराम का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता डा. श्रीरामजी भाई का आलेख..

स्त्री की प्रकृति में सृजनता की जो विलक्षण व अतुलनीय क्षमता है उस क्षमता के कारण स्त्री समाज को अधिक आदरणीय भाव से देखना भगवान श्रीराम का महत्वपूर्ण वैशिष्टय रहा है। ऋग्वेद के दशम मंडल के अनुसार स्त्री के कारण ही जगत का निर्माण हुआ। स्त्री शक्ति स्वरूपा है। केवल सनातन समाज में ही स्त्री के इस प्रकार आदरणीय होने का सौभाग्य प्राप्त है।

माता सुमित्रा ने किया था पारिवारिक मर्यादा का पालन

जहां माता कौशल्या को स्वयं श्रीराम की जननी होने का गौरव प्राप्त हुआ, वहीं माता कैकेयी के साथ रघुकुल की सुरक्षा के साथ-साथ मानव समाज के कल्याण की भावना भी है। यही नहीं माता सुमित्रा पारिवारिक मर्यादा का पालन करते हुए अपने दोनों पुत्रों को राजभवन के सत्ता संघर्ष से दूर रखकर पारिवारिक एकता का आदर्श प्रस्तुत करती हैं। भगवान श्रीराम ने विवाह के पश्चात अयोध्या वापस आने पर सीताजी से कहा कि यद्यपि राजकुलो में एक से अधिक पत्नियों को रखने की परंपरा है, लेकिन मैं श्रीराम आपको वचन देता हूं कि आपके अतिरिक्त किसी और स्त्री पर दृष्टि भी नहीं डालूंगा।

महर्षि विश्वामित्र के साथ अल्पायु में ही प्रजा कल्याण के लिए निकलने पर राक्षसी ताड़का के भयंकर उत्पात को देखकर भी श्रीराम कहते हैं कि लक्ष्मण! यह स्त्री होने के कारण अभी तक रक्षित है। इसे मारने के लिए मेरे अंदर जरा सा भी उत्साह नहीं है। मेरा विचार है कि मैं इसके बल-पराक्रम तथा गमन शक्ति को नष्ट करके ही इसे छोड़ दूं।

प्रभु श्रीराम माता ने अहिल्या से कही ये बात

अदृश्य रूप में रहकर तपस्या कर रही माता अहिल्या के सम्मुख पहुंचकर भगवान श्रीराम ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण स्पर्श किए। इसके बाद उन्होंने शास्त्रीय विधि के अनुसार जिस समय माता अहिल्या का आतिथ्य ग्रहण किया, उसी समय देवताओं की दुंदुभि बज उठी, साथ ही आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। गंधर्वों और अप्सराओं द्वारा उत्साह मनाया जाने लगा। भगवान श्रीराम की कृपा शक्ति से माता अहिल्या पत्थर से पुनः अपने विशुद्ध स्वरूप को प्राप्त हुईं। यह देख सभी देवता उन्हें साधुवाद देते हुए भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगे, तदंतर माता अहिल्या ने भगवान श्रीराम से निवेदन किया कि मैं चाहती हूं कि मेरे स्वामी मुझे क्षमा करके अपने जीवन में पहले जैसा स्थान दें। प्रभु श्रीराम माता अहल्या से कहते हैं देवी! आप लेशमात्र भी चिंता न करें, महर्षि आपसे क्रोधित नहीं हैं। आप पुनः अपना स्थान प्राप्त करेंगी।

श्रीराम ने छोड़ा राज्याभिषेक

पिता महाराज दशरथ की आज्ञा मानकर भगवान श्रीराम द्वारा राज्याभिषेक छोड़कर वन चले जाने के पश्चात दासी मंथरा अपने किए हुए कर्म से पश्चाताप की अग्नि में जलने लगी, वह चौदह वर्ष तक एक अंधेरी काल कोठरी में अपने दिन व्यतीत करती रही। उसकी अपेक्षा थी कि चौदह वर्ष बाद जब भगवान श्रीराम आएंगे तो उसे बहुत कठोर दंड मिलेगा, लेकिन जब भगवान श्रीराम चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात वापस अयोध्या लौटे तो वे स्वयं मंथरा से मिलने उसकी कोठरी में गए। भगवान श्रीराम को अपने सामने देखकर मंथरा उनके चरणों में गिरकर, उनसे अपने कर्मों के लिए कठोर दंड की याचना करने लगी। मंथरा की बात सुनकर भगवान श्रीराम उसे क्षमा करते हुए बोले माता! यह प्रजा कल्याण के लिए सभी देवताओं सहित माता सरस्वती की योजना थी, इसमें आपका कोई दोष नहीं है।

वनवास के दौरान माता शबरी से हुई श्रीराम की भेंट

वनगमन के समय जब भगवान श्रीराम की भेंट माता शबरी से हुई तब माता शबरी ने कहा कि हमारे गुरु ने कहा था कि भगवान श्रीराम स्वयं तुम्हारे पास आएंगे। इसलिए हमें विश्वास था कि प्रभु आप अवश्य आएंगे। शबरी के लिए यह अलौकिक आनंद की बात थी कि भगवान स्वयं चलकर भक्त के घर आए। माता शबरी कहती हैं कि प्रभु! कहां सुदूर उत्तर के आप और कहां दक्षिण की मैं। कहां आप रघुकुल के भविष्य और कहां मैं वन में रहने वाली वनवासिनी। अगर लंका के राजा आततायी रावण का वध नहीं करना होता तो क्या आप यहां आते? माता शबरी के ये वचन सुनकर भगवान श्रीराम बोले माता! दुष्ट रावण का वध तो मेरा छोटा भाई लक्ष्मण अपने पैरों के अंगूठे से बाण चलाकर कर सकता था। राम तो केवल अपनी वनवासिनी माता शबरी से मिलने आया है ताकि जब धर्मराज्य की स्थापना का इतिहास लिखा जाये तो लोगों को ध्यान में रहे कि ये क्षत्रिय राम और उसकी वनवासिनी मां ने मिलकर किया था। यह सुनकर शबरी उन्हें देखते हुए बोली प्रभु! तभी तो आप श्रीराम हो।

रावण के पुत्र मेघनाद की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी देवी सुलोचना के रामदल में आने का समाचार सुनते ही भगवान श्रीराम स्वयं चलकर सुलोचना के पास आकर बोले- देवी! तुम्हारे पति विश्व के अन्यतम योद्धा थे। उनमें बहुत से सद्गुण थे, किंतु विधि का विधान कौन बदल सकता है। आज तुम्हें इस तरह देखकर मेरे मन में बहुत पीड़ा हो रही है। इस पर देवी सुलोचना भगवान श्रीराम की स्तुति करते हुए बोलीं यदि श्रीराम दया के सागर हैं तो आज एक भिखारिन की लाज अवश्य रखेंगे।

श्रीराम ने मंगवाया मेघनाद का शीश

इस प्रकार की बातें सुनकर भगवान श्रीराम सुलोचना को बीच में ही टोकते हुए बोले-देवी! मुझे और लज्जित न करो। मैं जानता हूं कि पतिव्रता की महिमा कितनी अपार है। तुम्हारे सतीत्व से विश्व थर्राता है। तुम्हारी आंखों में आंसू देखकर मैं भी अंदर से रो रहा हूं। देवी आप यहां आने का कारण बताओ। इस पर देवी सुलोचना ने अश्रुपूरित नयनों से भगवान श्रीराम की ओर देखा और बोली-हे राघवेंद्र! मैं सती होने के लिए अपने पति का मस्तक लेने के लिए यहां आयी हूं। इस पर भगवान श्रीराम ने शीघ्र ही ससम्मान मेघनाद का शीश मंगवाया और सुलोचना को दे दिया।

देवी सुलोचना की बात सुनकर सुग्रीव ने कही ये बात

यह दृश्य देखकर सभी योद्धा यह नहीं समझ पा रहे थे कि देवी सुलोचना को यह कैसे पता चला कि उसके पति का शीश भगवान श्रीराम के पास है। सबकी जिज्ञासा शांत करने के लिए सुग्रीव ने देवी सुलोचना से पूछ ही लिया कि यह बात आपको कैसे ज्ञात हुई कि मेघनाद का शीश भगवान श्रीराम के शिविर में है। इस पर देवी सुलोचना ने कहा-मेरे पति की भुजा युद्धभूमि से उड़ती हुई मेरे पास आई थी, उसी ने लिखकर मुझे बताया। देवी सुलोचना की बात सुनकर व्यंग्य भरे शब्दों में सुग्रीव बोल उठे-निष्प्राण भुजा यदि लिख सकती है तो फिर यह कटा हुआ सिर हंस भी सकता है। सुग्रीव की बात सुनकर भगवान श्रीराम ने कहा-व्यर्थ बातें मत करो मित्र, पतिव्रता स्त्री के माहात्म्य को तुम नहीं जानते, यदि वह चाहे तो यह कटा हुआ सिर भी हंस सकता है। भगवान श्रीराम के शिविर से चलते समय देवी सुलोचना ने प्रभु से प्रार्थना की-भगवन! आज मेरे पति की अंत्येष्टि क्रिया है और मैं उनकी सहचरी उनसे मिलने जा रही हूं। अत: मैं चाहती हूं कि आज युद्ध बंद रहे, भगवान श्रीराम ने देवी सुलोचना की प्रार्थना स्वीकार करते हुए कहा देवी! जैसा आप चाहती हैं वैसा ही होगा, आज युद्ध नहीं होगा।

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