Pradosh Vrat 2024: कार्तिक माह का अंतिम प्रदोष व्रत कब मनाएं? जानिए महत्व, शुभ मुहूर्त व पूजन विधि
प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रिय है और हर महीने दो बार मनाया जाता है। इस साल 13 नवंबर को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। ज्योतिष के अनुसार इस दिन उपवास और शिव परिवार की आराधना से अक्षय पुण्य मिलता है, जिससे जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
HIGHLIGHTS
- प्रदोष व्रत सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण उपवास है।
- भगवान शिव की पूजा से सभी समस्याओं का समाधान।
- शिव पूजा भक्तों के जीवन में सुख और शांति लाती है।
धर्म डेस्क, इंदौर। Pradosh Vrat in Kartik Maas: प्रदोष व्रत हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण उपवास है, जो हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित होता है। प्रदोष व्रत के दौरान व्रति उपवासी रहकर पूजा, उपासना और मंत्र जाप करते हैं, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कार्तिक प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है। ऐसे में क्या आप जानते हैं कि कार्तिक माह का आखिरी प्रदोष व्रत कब पड़ने वाला है। इस व्रत के महत्व के बारे में हम इस आर्टिकल में आपको बताएंगे।
प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat)
कार्तिक महीने का प्रदोष महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि 4 महीने के लिए योग निद्रा में जाने से पहले भगवान विष्णु सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी महादेव को देते हैं। ऐसे में कार्तिक शुक्ल एकादशी पर यह भार महादेव फिर से भगवान विष्णु पर डाल देते हैं। ऐसे में यह पहला और कार्तिक माह का आखिरी प्रदोष व्रत होता है।
कार्तिक महीने के आखिरी प्रदोष व्रत की तारीख (Pradosh Vrat 2024 Kartik Mah)
हिंदू पंचाग की मानें तो कार्तिक माह का आखिरी प्रदोष व्रत 13 नवंबर को मना जाएगा। इसका समापन 14 नवंबर को हो जाएगा। ऐसे में आप प्रदोष व्रत का उपवास बुधवार के दिन रख सकते हैं।
शुभ मुहूर्त (Pradosh Vrat 2024 Shubh Muhurat)
कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी का आरंभः 13 नवंबर दोपहर 01 बजकर 01 मिनट
कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी का समापनः 14 नवंबर सुबह 09 बजकर 43 मिनट
प्रदोष व्रतः 13 नवंबर 2024 दिन बुधवार
बुध प्रदोष व्रत पूजा मुहूर्तः शाम 05 बजकर 49 मिनट से रात 08 बजकर 25 मिनट बजे तक
त्रयोदशी यानी प्रदोष पूजा मुहूर्तः कुल 02 घंटे 36 मिनट का है।चाक्षर मंत्र नमः शिवाय
महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
शिव स्तुति मंत्र
द: स्वप्नदु: शकुन दुर्गतिदौर्मनस्य, दुर्भिक्षदुर्व्यसन दुस्सहदुर्यशांसि।
उत्पाततापविषभीतिमसद्रहार्ति, व्याधीश्चनाशयतुमे जगतातमीशः।।