Prabodhini Ekadashi 2024: जिनके यहां कन्या नहीं, उनको साल में एक दिन मिलता है कन्यादान का पूर्ण फल प्राप्त करने का अवसर
प्रबोधिनी एकादशी 12 नवंबर को मनाई जाएगी। इसे देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन तुलसी शालिग्राम विवाह का विशेष महत्व है। इस दिन तुलसी के साथ भगवान शालिग्राम का विवाह किया जाता है।
HIGHLIGHTS
- माता तुलसी के साथ होगा भगवान शालिग्राम का विवाह
- यह पूजा करने से कन्यादान का पूर्ण फल प्राप्त होता है
- देवउठनी एकादशी से शुरू हो जाएंगे मांगलिक कार्य
धर्म डेस्क, इंदौर। प्रबोधिनी एवं देवउठनी एकादशी का पर्व 12 नवंबर मंगलवार को मनाया जाएगा। वेद पुराणों में मान्यता है कि दीपावली के बाद पड़ने वाली एकादशी के दिन देव उठते हैं। यही वजह है कि देवउठनी एकादशी के बाद से ही सारे शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
इस एकादशी को छोटी दिवाली के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु छीर सागर में 4 महीने की निद्रा के बाद जागते हैं। कार्तिक मास की एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु जागते हैं। इनके जागने के बाद ही से सभी तरह के शुभ व मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
कन्यादान का पूर्ण फल प्राप्त करने का अवसर
- ग्वालियर के ज्योतिषाचार्य रवि शर्मा ने बताया कि इस दिन तुलसी के साथ भगवान शालिग्राम का विवाह किया जाता है। तुलसी शालिग्राम विवाह करने से कई जन्मों के पापों का प्रायश्चित हो जाता है और घर में संपन्नता बनी रहती है।
- जिन व्यक्तियों के घर में कन्या नहीं है, वह एकादशी के दिन तुलसी शालिग्राम विवाह करके कन्यादान का पूर्ण फल प्राप्त कर लेते हैं। भगवान के श्री विग्रह के साथ तुलसी जी का विवाह बड़ी धूमधाम से किया जाता है।
तुलसी विवाह की विधि
तुलसी जी के पौधे को गमले में रखकर सजाया जाता है और भगवान शालिग्राम जी के साथ विवाह किया जाता है।
एकादशी के दिन घरों में मंदिरों में गन्ने का मंडप बनाकर उसमें भगवान शालिग्राम विष्णु भगवान की मूर्ति रखकर उसका पूजन किया जाता है एवं भगवान को बेर, भाजी, आंवले, गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े, ज्वार के भुट्टे आदि चढ़ाए जाते हैं और भगवान का विधि पूर्वक पूजन करके भगवान सहित मंडप की परिक्रमा की जाती है।
इसी दिन हमारी महिलाएं भगवान के चरण घर में बनाती हैं और ‘उठो देव बैठो देव फावडी चटकार देव’ ऐसा कहते हुए परिक्रमा करते हैं एवं भगवान के नाम के जयकारा लगाते हैं।
मांगलिक कार्य शुरू होंगे
देवउठनी एकादशी से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। इस वर्ष देव उठने के साथ ही शहनाई की गूंज सुनाई देगी। एकादशी के दिन रात्रि जागरण का एवं भागवत कीर्तन का विशेष महत्व होता है। देवउठनी एकादशी के दिन प्रहलाद, नारद, परशुराम, पुंडरीक व्यास, अंबरीश, शुक्र, सोनक और भीष्म इत्यादि भक्तों का स्मरण करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।