MP Culture & Tradition : रील्स का कमाल… तकनीक के जरिये आदिवासी कला और परंपरा बचा रहीं युवतियां

आधुनिकता की दौड़ में आदिवासी परंपरा और संस्कृति कहीं लुप्त सी हो रही थी। मगर, आदिवासी कला, परंपरा और बोली को इंटरनेट मीडिया के माध्यम से संरक्षित और प्रसारित करने का महत्वपूर्ण काम हो रहा है। मध्य प्रदेश में समाज की युवतियां इसे बचाने का काम कर रही हैं। साथ ही इसे देश और दुनिया में पहचान दिलाने का प्रयास भी कर रही हैं।

 इंदौर। आज के डिजिटल युग में तकनीक का सही उपयोग व्यक्तिगत जीवन को तो आसान बना ही रहा है। साथ ही समाज और सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने में भी सहायक सिद्ध हो रहा है। मध्य प्रदेश में आदिवासी जनसंख्या काफी अधिक है।

ऐसे में इस संस्कृति को बचाने का कार्य समाज की युवतियां कर रही हैं। आदिवासी कला, परंपरा और बोली को इंटरनेट मीडिया के माध्यम से संरक्षित और प्रसारित करने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं। इसके माध्यम से यह देश और दुनिया में पहचान दिलाने का प्रयास भी कर रही हैं।

इंटरनेट मीडिया पर अपने इनके बनाए गए वीडियो को देखने वाले लाखों लोग हैं। यह सांस्कृतिक धरोहर, पारंपरिक गीत, नृत्य, हस्तशिल्प और लोककथाएं, नवाई, जल, जंगल, जमीन, मिट्टी के बर्तन आदि को वीडियो के माध्यम से साझा करते हैं।

आदिवासी गानों को मिली नई पहचान

इन युवतियों ने अपनी अद्वितीय आवाज और पारंपरिक संगीत के माध्यम से आदिवासी गानों को नई पहचान दी है। वे आधुनिक तकनीकों जैसे रिकार्डिंग स्टूडियो, साउंड मिक्सिंग और डिजिटल वितरण का उपयोग कर पारंपरिक गानों को पेश कर रही हैं।

इन गानों को अब देश के विभिन्न हिस्सों में सराहा जा रहा है। इससे न केवल आदिवासी कलाकारों को मंच मिला है, बल्कि उनकी संस्कृति को भी लोग समझ और अपनाने लगे हैं। कई युवतियों ने यूट्यूब चैनल बनाए हैं, जहां वे नियमित रूप से वीडियो अपलोड करती हैं। इनमें पारंपरिक नृत्य, संगीत और कला के विभिन्न रूप होते हैं।

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आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देना जिम्मेदारी

आलीराजपुर की रहने वाली हर्षिता गुथरिया इंदौर में मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं। इसके साथ ही वह वह आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी भी निभा रही हैं। हर्षिता बताती हैं कि आदिवासी संस्कृति काफी पुरानी है।

आज युवतियां वेस्टर्न कल्चर को पसंद करती हैं। मगर, हमें हमारा आदिवासी परिवेश ही पसंद है। हम वीडियो के माध्यम से भगोरिया मेला, शादी, पहनावा, बोली आदि को बढ़ावा देते हैं। बता दें कि हर्षिता वर्तमान में ट्राइबल यूनिवर्स प्रोडक्शन के साथ कार्य कर रही हैं।

हमारी संस्कृति को लोग कभी न भूलें

खरगोन जिले की रहने वाली आयुषी पटेल यहां रहकर गेट की तैयार कर रही हैं, लेकिन वे रोज थोड़ा समय निकालकर अपनी संस्कृति को बढ़ावा दे रही हैं। इसी संस्कृति से इन्होंने बड़ी पहचान हासिल भी की है।

आयुषी बताती हैं कि हम चाहते हैं कि चाहे कोई भी संस्कृति आए, लेकिन हमारी समाज के लोग हमारी संस्कृति को कभी न भूलें। हम गांव में फसल के समय होने वाली पूजा नवाई, मिट्टी के बर्तन आदि को इंटरनेट मीडिया के माध्यम से प्रमोट करते हैं।

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गांव की छोटी-छोटी चीजों को करते हैं साझा

देवास जिले के उदय नगर की रहने वाली गरिमा कन्नौजे इंदौर में एमपीपीएससी की तैयारी के साथ इंग्लिश लिटरेचर की पढ़ाई कर रही हैं। गरिमा बताती हैं कि आज भी आदिवासी लोगों को अलग नजरिये से देखा जाता है।

वह बताती हैं कि इसलिए हम लोगों के नजरिये को बदलने का प्रयास इन वीडियो के माध्यम से कर रहे हैं। जल, जंगल, जमीन आदिवासी की पहचान होती है। हम इन्हीं विषयों पर वीडियो बनाते हैं। गांव की छोटी-छोटी चीजों को हम साझा करते हैं। गरिमा आदिवासी मूल निवासी प्रोडक्शन के साथ कार्य कर रही हैं।

देशभर में दिखाते हैं भगोरिया को

बड़वानी की रहने वाली प्रिया सोलंकी इंदौर में नेट की तैयारी कर रही हैं। कोरोना के समय इन्होंने वीडियो बनाना शुरू किया था, जो अब इनकी पहचान बन गया है। प्रिया बताती हैं कि हमने लॉकडाउन के समय घर पर रहने के दौरान वीडियो बनाए थे।

इसके बाद हमें प्रसिद्धि मिलने लगी तो हमने आदिवासी गाने बनाना शुरू किए। जंगल का रखवाला गाना सबसे हिट रहा है। हम भगोरिया, ईकोफ्रेंडली बर्तन आदि संस्कृति के वीडियो बनाते हैं। बता दें कि प्रिया आदिवुड चैनल के साथ काम करती हैं। वहीं खुद का ब्लॉग भी है।

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