चावल-गेहूं नहीं अब जड़ी-बूटियों की खेती से दूर होगा छत्तीसगढ़ के किसानों के कमजोर आर्थिक स्थिति का ‘मर्ज’
किसानों को आयुर्वेद से जोड़ने और औषधीय फसल उगाने की जानकारी प्रदान करने के लिए आयुर्वेद फार वन हेल्थ अभियान शुरू किया गया है। इस नवाचारी खेती से किसानों की आर्थिकी मजबूत होगी। योजना से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि आठ जिलों के 211 किसानों ने आवेदन देकर जड़ी-बूटियों की खेती करने में रुचि दखाई है।
HighLights
- छत्तीसगढ़ के आठ जिलों के किसानों ने जड़ी-बूटियों की खेती करने में दिखाई रूचि।
- पांच वर्षों बाद आयुष ग्राम बनाने की तैयारी शुरू, आयुष विभाग उपलब्ध कराएगा पौधे।
- छत्तीसगढ़ के किसान जड़ी-बूटियों का उत्पादन कर बढ़ा सकेंगे अपनी आमदनी।
रायपुर। नवाचारी खेती से किसानों की आर्थिकी मजबूत होगी। प्रदेश के किसान अब सिर्फ गेहूं, चावल नहीं बल्कि खेतों में आयुर्वेदिक दवाओं में काम आने वाली जड़ी-बूटियों का उत्पादन कर अपनी आमदनी बढ़ा सकेंगे। वर्तमान में आठ जिलों बिलासपुर, मुंगेली, कोरिया, राजनांदगांव, जगदलपुर, बस्तर, बलरामपुर और कोरिया के किसानों ने रुचि भी दिखाई है। आयुष विभाग किसानों को औषधीय पौधों को उपलब्ध कराएगा।
दरअसल, आयुष विभाग की ओर से पांच वर्षों से अधिक समय के बाद आयुष ग्राम बनाने का प्रयास दोबारा शुरू किया गया है। पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में सभी 146 विकासखंडों में एक-एक गांव का चयन कर प्राइमरी स्तर पर काम भी होने लगा है। गांवों के चयन में पर्यटन वाले स्थलों को प्राथमिकता दी गई है।
योजना से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि आठ जिलों के 211 किसानों ने आवेदन देकर जड़ी-बूटियों की खेती करने में रुचि दखाई है। सिरपुर, मैनपाट आदि पर्यटन स्थलों के चयन के पीछे का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता लाना है।
किसानों को दी जाएगी पूरी जानकारी
किसानों को आयुर्वेद से जोड़ने और औषधीय फसल उगाने की जानकारी प्रदान करने के लिए आयुर्वेद फार वन हेल्थ अभियान शुरू किया गया है। अधिकारियों का कहना है कि किसानों को जोड़कर आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल होने वाले सतावर, कौच बीज, सर्पगंधा, आंवला, भृंगराज, सरपुंख, नागर मोथा, अश्वगंधा, ब्राह्मी, तुलसी, लेमनग्रास, मोरिंगा, मेंथा आदि पौधों के औषधीय और आर्थिक महत्व के प्रति जागरुक किया जा रहा है। आवेदन देने वाले किसानों को मेडिसिनल प्लांट बोर्ड की मदद से औषधीय पौधों की खेती में उपयोग की जाने वाली विशेष तकनीकी और बाजार में बिक्री के तरीके की पूरी जानकारी दिलाई जाएगी।
शासन की उपेक्षा से योजना ने तोड़ा दम
प्रदेश में आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए 2008-09 में पहली बार 25 आयुर्वेदिक ग्रामों के लिए एक-एक लाख रुपये जारी किया गया था। इसके बाद पूरे प्रदेश में 500 आयुर्वेदिक ग्राम बनाए गए। प्रत्येक के लिए 40-40 हजार रुपये दिए गए। 2018-19 तक यह योजना चली। इसके बाद शासन की अनदेखी की वजह से योजना बंद हो गई। अब इसे आयुष ग्राम से दोबारा शुरू किया गया है।
राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत आयुष ग्रामों में लोगों को पेड़-पौधों के औषधीय गुणों के बारे में जागरुक कर इनके पौधारोपण और संरक्षण को बढ़ावा देना है। लोगों को सामान्य रोगों के इलाज के लिए आसपास पाए जाने वाले औषधीय पौधों की पहचान व उपयोग के लिए प्रेरित किया जाएगा। -डा. गजेंद्र बघेल, राज्य कार्यक्रम प्रबंधक, राष्ट्रीय आयुष मिशन