छत्‍तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों का बुरा हाल, दो यूनिवर्सिटी के कुलपति बर्खास्त, दो के कार्यकाल खत्‍म होने के बाद नई नियुक्ति का इंतजार

छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद शिक्षा व्यवस्था में गंभीर चुनौतियां उभरकर सामने आई हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू किए जाने के बावजूद प्रदेश के राजकीय विश्वविद्यालयों की स्थिति बिगड़ती जा रही है। प्रदेश के दो प्रमुख विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को भ्रष्टाचार, आदेश उल्लंघन और गड़बड़ियों के कारण बर्खास्त किया जा चुका है।

HighLights

  1. राज्य के चार विश्वविद्यालयों के लिए शुरू नहीं हुई कुलपति चयन की प्रकिया
  2. सीजीपीएससी के नए अध्यक्ष की नियुक्ति भी सितंबर 2023 से अटकी

रायपुर। छत्‍तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू कर दी है और राजकीय विश्वविद्यालयों का बुरा हाल है। प्रदेश के दो राजकीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को गड़बड़ी, आदेश उल्लंघन और भ्रष्टाचार के मामले में बर्खास्त किया जा चुका है। इसी तरह दो विश्वविद्यालयाें के कुलपति का कार्यकाल अगले महीने ही खत्म हो रहा है मगर राजभवन से अब तक नियुक्ति के लिए प्रक्रिया तक शुरू नहीं हुई।

प्रदेश में 15 राजकीय विश्वविद्यालय हैं। इसी तरह सितंबर 2023 में छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीजीपीएससी) के पूर्व अध्यक्ष टामन सिंह सोनवानी का कार्यकाल खत्म होने के बाद यहां पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है। अक्टूबर 2023 में सदस्य डा. प्रवीण वर्मा को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।

राज्य में नई सरकार गठन होने के बाद भी अभी तक सीजीपीएससी का अध्यक्ष नहीं नियुक्त हो पाए हैं। संविधान के अनुच्छेद 316 के अनुसार लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि का अधिकार राज्यपाल के पास है। मामले में राजभवन के सचिव यशवंत कुमार से संपर्क किया मगर बात नहीं हो सकी है।

केस 01

भ्रष्टाचार में फंसे कुलपति बर्खास्त, नए का पता नहीं

दुर्ग के पाटन में स्थित महात्मा गांधी उद्यान एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. राम शंकर कुरील को 10 मई 2024 को बर्खास्त किया गया था। राज्यपाल ने उन्हें उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय अधिनियम, 2019 की धारा 17 के तहत सहायक प्राध्यापकों की भर्ती में गड़बड़ी के आरोप में तत्काल हटाया था। तीन महीने बीतने के बाद भी नए कुलपति के लिए प्रक्रिया शुरू नहीं हुई।

केस 02

खैरागढ़ विश्वविद्यालय का भी बुरा हाल

छत्तीसगढ़ के इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ की कुलपति पद्मश्री ममता मोक्षदा चंद्राकर को 22 जून 2024 को हटाया गया था। राजभवन के आदेश का उल्लंघन करने उन पर विश्वविद्यालय अधिनियम 1956 की धारा 17-ए के तहत कार्रवाई हुई थी। इस विश्वविद्यालय का भी बुरा हाल है। संभागीय आयुक्त को जिम्मेदारी मिली है मगर मानिटरिंग नहीं हो पा रही है।

केस 03

सितंबर में खत्म होगा सीएसवीटीयू के कुलपति का कार्यकाल

छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय (सीएसवीटीयू) के कुलपति डा. एमके वर्मा का कार्यकाल सितंबर 2024 में खत्म हो रहा है। यह उनका दूसरा कार्यकाल है। अभी तक नए कुलपति के चयन के लिए राजभवन ने प्रक्रिया शुरू नहीं की है।

केस 04

दुर्ग विश्वविद्यालय में भी नियुक्त होना है नया कुलपति

हेमचंद्र यादव विश्वविद्यालय में भी वर्तमान कुलपति डा. अरुणा पल्टा का कार्यकाल 19 सितंबर को खत्म हो रहा है। अभी तक यहां भी नए कुलपति के चयन को लेकर कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है। वहीं पं. सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय, बिलासपुर का कार्यकाल भी फरवरी 2025 में समाप्त हो रहा है।

छह महीने से पहले शुरू करनी होती है प्रक्रिया

विशेषज्ञों के मुताबिक किसी भी विश्वविद्यालय में नए कुलपति के चयन के लिए चार से छह महीने का समय लगता है। इसके लिए सबसे पहले विश्वविद्यालय से राजभवन एक विश्वविद्यालय प्रतिनिधि का नाम मांगता है। इसके बाद राजभवन से भी एक प्रतिनिधि का नाम तय होता है और कमेटी निर्धारण के बाद बैठक होती है। इस कमेटी को सर्च कमेटी कहा जाता है।

इस कमेटी के द्वारा प्रक्रिया तय की जाती है और राजभवन से विज्ञापन निकाला जाता है। विज्ञापन की प्रक्रिया में आवेदन के लिए ही करीब एक महीने का समय लग जाता है। इसके फार्म छंटाई होती है। इसमें आठ से 10 नामों को अंतक्रिया के लिए बुलाया जाता है। कई बार तीन से चार अभ्यर्थियों का नाम कमेटी दे देती है और इन्हीं नामों में से राज्यपाल किसी एक को कुलपति चयनित करते हैं।

एक्सपर्ट व्यू

पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर पूर्व कुलपति डा. एसके पांडेय ने कहा, पूर्ण कुलपति नहीं होने से विश्वविद्यालय के कई काम प्रभावित होते हैं। आमतौर पर कुलपति के नियुक्ति के लिए छह महीने से प्रक्रिया शुरू हो जानी है। कुलपति चयन के लिए राजभवन के अधिकारियों की जवाबदारी होती है। समय रहते कुलपति की नियुक्ति करना चाहिए। कुलपति नहीं होने कार्यपरिषद में बैठकें नहीं हो पाती है। विद्यार्थियों की डिग्री में हस्ताक्षर नहीं हो पाता है।

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