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Rudraksha: क्यों पूजनीय माना जाता है रुद्राक्ष, जानिए कैसे हुई थी इसकी उत्पत्ति

HIGHLIGHTS

  1. ज्योतिष शास्त्र में रुद्राक्ष पहनने के अनेक फायदे बताए गए हैं।
  2. रुद्राक्ष भगवान शिव को प्रिय माना जाता है।
  3. रुद्राक्ष को लेकर कई सारी मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं।

धर्म डेस्क, इंदौर। Rudraksha: सनातन धर्म में रुद्राक्ष को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। रुद्राक्ष भगवान शिव को प्रिय है। धार्मिक मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति को सदैव महादेव की कृपा प्राप्त होती है। 1 से लेकर 14 मुखी रुद्राक्ष का अपना अलग-अलग महत्व रखते हैं। रुद्राक्ष की उत्पत्ति के संबंध में कई पौराणिक कथाएं हैं। आइए, जानते हैं कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई थी।

ऐसे हुई थी रुद्राक्ष की उत्पत्ति

एक प्राचीन कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर नाम का एक राक्षस था। उसे अपनी शक्ति पर बहुत ज्यादा घमंड था। अत: उसने पृथ्वी सहित देवलोक में भी उथल-पुथल मचा दी। कोई भी देवी, देवता और हथियार उसे हराने में सक्षम नहीं थे, इसलिए देवी-देवता अपनी प्रार्थना लेकर भगवान शिव के पास पहुंचे। जब देवी-देवता कैलाश पर्वत पर पहुंचे, तो भगवान महादेव अपनी आंखें बंद करके योग मुद्रा में ध्यान कर रहे थे। जब भगवान ने अपनी आंखें खोलीं, तो उनकी आंखों से कुछ आंसू निकलकर जमीन पर गिर पड़े। शिव के इन्हीं आंसुओं से रुद्राक्ष के वृक्ष का जन्म हुआ। ऐसा माना जाता है कि जिस स्थान पर महादेव के आंसू गिरे थे, वहां रुद्राक्ष के पेड़ उग आए थे। इसलिए रुद्राक्ष को भगवान शिव की तीसरी आंख का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है। इस प्रकार रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई।

इस तरह धारण करें रुद्राक्ष

रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को इससे जुड़े नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। अगर आप रुद्राक्ष की माला पहनना चाहते हैं, तो इसके लिए श्रावण सोमवार, शिवरात्रि, अमावस्या और पूर्णिमा शुभ दिन हैं। रुद्राक्ष धारण करने से पहले उसे सरसों के तेल और दूध से साफ करना चाहिए। इसके बाद, “ओम नमः शिवाय मंत्र” का जाप करते हुए रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।

 

डिसक्लेमर

‘इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।’

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