Ram Mandir: ढांचे से गिरकर टूटा पैर और पसली, होश आया तो सिरहाने खड़े थे आडवाणी के साथ डालमिया, जानिए राम मंदिर आदोलन की अनसुनी कहानी"/> Ram Mandir: ढांचे से गिरकर टूटा पैर और पसली, होश आया तो सिरहाने खड़े थे आडवाणी के साथ डालमिया, जानिए राम मंदिर आदोलन की अनसुनी कहानी"/>

Ram Mandir: ढांचे से गिरकर टूटा पैर और पसली, होश आया तो सिरहाने खड़े थे आडवाणी के साथ डालमिया, जानिए राम मंदिर आदोलन की अनसुनी कहानी

HIGHLIGHTS

  1. कारसेवक दीनदयाल गोयल ने बताई विध्वंस की कहानी, कहा- ढांचे पर चढ़ने वाले पहले पांच लोगों में था शामिल
  2. दो दिसंबर, 1992 को दुर्ग से सारनाथ एक्सप्रेस में बैठकर एक हजार लोगों का समूह निकला था अयोध्या के लिए

रामकृष्ण डोंगरे/रायपुर। Ram Mandir Pran Pratishtha: श्रीराम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को लेकर देश-दुनिया में उत्साह का माहौल है। लगभग पांच सौ वर्षाें के बाद राम मंदिर का स्वप्न साकार हो गया है। इसके लिए हजारों लोगों ने अपना खून बहाया है। राम मंदिर आंदोलन के दौरान 1992 में हुई कारसेवा के लिए राजधानी रायपुर के अशोका रतन निवासी समाजसेवी दीनदयाल गोयल भी गए थे। वे छह दिसंबर को ढांचे पर चढ़ने वाले पहले पांच युवाओं में शामिल थे। भीड़ बढ़ने पर वे नीचे गिरे और उनका पैर व पसली टूट गई। जब उन्हें होश आया तो उनके सिरहाने पर आडवाणी व विष्णु हरि डालमिया खड़े थे। पढ़िए विवादित ढांचे के विध्वंस की कहानी, कारसेवक दीनदयाल की जुबानी…।

बात दो दिसंबर, 1992 की है। उस दिन शाम को दुर्ग से हम लोग (समाजसेवी दीनदयाल गोयल सहित) लगभग एक हजार आदमी सारनाथ एक्सप्रेस से कारसेवा के लिए अयोध्या निकले थे। तीन तारीख की रात को बनारस पहुंचे और वहां पुलिस ने कारसेवकों को गिरफ्तार करने की कोशिश की। हम केवल तीन या चार लड़के पुलिस को झांसा देकर फरार हो गए और पैदल अयोध्या जी पहुंच गए। चार तारीख को सुबह हम लोग देवरहा बाबा के आश्रम में पहुंचे और उनसे आश्रय देने की प्रार्थना की। बहुत ज्यादा भीड़ थी, इसलिए वहां मौजूद संतों ने हमें गोशाला में ठहरने के लिए कहा। रात में नींद आ नहीं रही थी तो हमने सोचा कि चलो भगवान राम के दर्शन करके आ जाते हैं। हम वहां से राम के दर्शन करने मंदिर चले गए।
 

वहां जाकर क्या देखते हैं कि हनुमानगढ़ी तक लाइन लगी है और दर्शन सुबह तक भी नहीं हो पाएंगे। हम भीड़ से बचने के लिए सीता रसोई के बाजू से जाकर पीछे, जो ढांचा था, उसके पीछे चले गए। वहां पीछे 50-60 आदमी कुछ मीटिंग कर रहे थे। उन्होंने सोचा कि हो सकता है, हम जासूस हो। हमें रोक लिया हमारे डाक्यूमेंट देखें और कहा कि हम एक विशेष कार्य के लिए यहां इकट्ठा हुए हैं। क्या आप भी इसमें शामिल होना चाहोगे, मेरे साथ दो लड़के गए थे, उन्होंने इन्कार कर दिया। मैंने तुरंत हां किया तो बोले अपने डाक्यूमेंट हमारे पास जमा कर दो। मैंने डाक्यूमेंट जमा कर दिए। यह चार-पांच दिसंबर, 1992 के बीच की रात थी। पांच तारीख की सुबह हमको एक स्थान पर बुलाया गया। फिर रात को ही फावड़ा, कुदाल, हथौड़ा सब ढांचे के पीछे छिपाकर रख दिए गए। क्योंकि ढांचे के चारों तरफ नीम के पेड़ थे।

जुलूस का नेतृत्व मुझे सौंपा गया : गोयल

छह तारीख को सुबह देवरहा बाबा के आश्रम से रामकथा कुंज जाने के लिए जुलूस निकाला तो इसका नेतृत्व मुझे सौंपा गया। रात की एक बात और बताता हूं कि हमें कसम दिलाई गई कि कितना भी खून बह जाए, हम लोग कैसे भी करके ढांचे पर ध्वज फहराएंगे। हम यह गाते हुए – निकल गई तलवार, हिंदू जागो… कहते हुए रामकथा कुंज पहुंच गए। वहां आडवाणी जी आने ही वाले थे, जैसे ही आडवाणी जी आए, भाषण चालू हो गया। उसमें साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती दीदी थी। ज्यों ही आडवाणी जी बोलने के लिए खड़े हुए जनता ने शोर मचाना शुरू कर दिया।

अशोक सिंहल जी आए और उन्होंने कहा कि सभी कार्यकर्ता लाइन से जाकर, जहां कारसेवा हो रही है, वहां एक-एक मुट्ठी मिट्टी डालकर अपने घर चले जाए। परंतु कार्यकर्ता घर जाने के बजाय वहीं इकट्ठा होने लग गए, जिसमें हम लोग भी थे। हमारा लगभग हजार लोगों का ग्रुप था। हम लोग तुरंत कार्यकर्ताओं से निकल कर ढांचे के पीछे गए। रस्सा फेंका गया। उस पर चढ़ने वाले पांच आदमी का चुनाव हुआ। उसका सौभाग्य मुझे भी मिला। चढ़कर ज्यों ही मैंने झंडा लगाया। डले हुए रस्से से बहुत अधिक भीड़ चढ़ गई और क्योंकि मैं दुबला-पतला, हल्का-फुल्का था, मुझे किसी का धक्का लगा और मैं ढांचे से नीचे गिर गया और नीम के पेड़ में अटक गया। मैं घायल हुआ था। मेरा पांव और पसली टूटी थी। मुझे तुरंत फैजाबाद अस्पताल में लेकर गए और जब वहां पांच बजे ढांचा गिर गया, तब मुझे होश आया।

एक भी कार्यकर्ता अस्पताल नहीं छोड़ेगा: सिंहल

दूसरे दिन सुबह आठ बजे के लगभग, जब मुझे होश आया तो विष्णु हरि डालमिया (प्रसिद्ध उद्योगपति और विश्व हिंदू परिषद के सदस्य रहे) और लालकृष्ण आडवाणी जी मेरे सिरहाने खड़े थे। मेरे पांव में फैक्चर था। मेरी पसली टूटी हुई थी, जिसका इलाज प्लास्टर लगाकर कर चुके थे। तुरंत अशोक सिंहल जी ने मुझसे कहा कि एक भी कार्यकर्ता अस्पताल नहीं छोड़ेगा। इसके बाद एंबुलेंस लाई गई और हमको अयोध्या में स्थित रामकथा कुंज में ठहरा दिया गया। सिंहल जी ने कहा कि 36 घंटे तक कोई भी कार्रवाई आपके ऊपर नहीं होगी। यह हमारी गारंटी है और हम फरार हो रहे हैं, क्योंकि आंदोलन चलाना है। कारसेवक ढांचे की नींव को खोज रहे हैं, उसमें जो भी सामान निकले, उसकी देखरेख तुमको करनी है।

मैं कमरे के अंदर था, अंदर से ताला बंद कर रखा था। बाहर कारसेवक सामान लाकर रख रहे थे। पूरी रात लगभग 3:45 बजे तक हम लोग सामान इकट्ठा करते रहे। उसी वक्त सेना के जवान आ गए और हमको गिरफ्तार कर लिया। जवानों ने बाहर से ताला लगा दिया। इस तरह हम सेना की हिरासत में चले गए। अशोक सिंहल जी आदि सब फरार हो चुके थे, क्योंकि पूरे अयोध्या का कंट्रोल इस कमरे से था। सिंहल जी के सख्त आदेश थे कि कोई भी ऐसी बात आप नहीं बोलेंगे, जिससे लोगों की जान पर बात आ जाए। इसके बाद एक आदमी ने मुझसे पूछा कि तुम्हारे घर में क्या स्थिति है। मैंने बताया कि घर में तो अगर मैं 15 दिन नहीं जाऊंगा तो बच्चे भूखे मर जाएंगे, तो उन्होंने कहा कि ठीक है। मैं तुम्हारी व्यवस्था करता हूं और मेरे को स्पेशल ट्रेन से कटनी तक छोड़ा गया। कटनी में मेरे दोस्त मिल गए और वहां से खुर्सीपार भिलाई आ गया।

आरएसएस से जुड़े हैं समाजसेवी दीनदयाल

समाजसेवी दीनदयाल गोयल का जन्म और शिक्षा-दीक्षा हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में हुई। वे कालेज के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ रहे। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। वे रोजी-रोटी की तलाश में पहले गोरखपुर गए। वहां योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ के सान्निध्य में रहे। इसके बाद छत्तीसगढ़ आ गए। यहां वे परिवार सहित खुर्सीपार भिलाई में बस गए। उनका शुरुआती जीवन संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने कबाड़ खरीदने से लेकर फेरीवाले तक का काम किया। फिर रायपुर आकर बस गए। छोटे-छोटे काम करते हुए वे व्यवसाय में सफल हो गए। वे समाज सेवी के क्षेत्र में भी सक्रिय है। उन्हें कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं।

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