Chhattisgarh Election 2023: खूबचंद बघेल ने एक दशक तक किया था धरसींवा का प्रतिनिधित्व, यह थी बड़ी वजह
HIGHLIGHTS
- छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्नदृष्टा के रूप में हैं चर्चित, वर्ष 1900 में गांव पथरी में हुआ था जन्म
- 1952 व 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के झोपड़ी चुनाव चिह्न से चुनाव लड़कर बने विधायक
सुरेन्द्र जैन, सांकरा (नईदुनिया)। धरसींवा विधानसभा को सर्वाधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का क्षेत्र होने का गौरव प्राप्त है। वहीं इसका प्रतिनिधित्व एक दशक तक पृथक छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वप्न दृष्टा डा. खूबचंद बघेल ने किया। डा. बघेल ने 1952 और 1957 में धरसींवा से विधायक चुने गए थे।
स्वतंत्रता सेनानी डा. खूबचंद बघेल गांव-गरीब तक शिक्षा की अलख जगाना चाहते थे। वह भी उस समय, जब आज की तरह गांवों से कोसों दूर एक-दो सरकारी स्कूल हुआ करते थे। ऐसे समय में साल 1962 में उन्होंने धरसींवा के सिलयारी क्षेत्र के किसानों से सहयोग लेकर एक स्कूल की स्थापना की थी, ताकि आसपास के गांवों के गरीब बच्चे भी शिक्षित होकर आगे बढ़ सकें। वह स्कूल डा. खूबचंद बघेल शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के रूप में ग्रामीण छात्र-छात्राओं का भविष्य उज्ज्वल बना रहा है।
अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की क्रांति में भी योगदान दिया
डा. खूबचंद बघेल का जन्म 19 जुलाई, 1900 को धरसींवा के सिलयारी से लगे छोटे से गांव पथरी में किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने देश की आजादी के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ जुड़कर अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की क्रांति में भी योगदान दिया और जेल भी गए। देश की आजादी के बाद उन्होंने छुआछूत जैसी कुरीतियों को मिटाने में भी बड़ी भूमिका निभाई और 1967 में राजनांदगांव में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का स्वप्न साकार करने का शंखनाद किया। 22 फरवरी, 1969 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था।
क्या कहते हैं डा. खूबचंद बघेल के पोते
ग्राम पंचायत पथरी के पूर्व सरपंच और डा. खूबचंद बघेल के रिश्ते में पोते श्रीकांत बघेल ने बताया कि मेरे दादाजी स्वतंत्रता सेनानी डा. खूबचंद बघेल का जीवन एक आदर्श है। उन्होंने अपना सारा जीवन मां भारती और छत्तीसगढ़ महतारी को समर्पित किया। वे 1952 और 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के झोपड़ी चुनाव चिह्न से चुनाव लड़कर विजयी हुए और क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। जगन्नाथ बघेल ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। पथरी गांव से डा. खूबचंद बघेल के माता-पिता, परिजन, मित्र सभी ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। समीपी गांव बंगोली से भी सौ से अधिक स्वतंत्रता सेनानी हुए।