MP Cheetah Project: चीतों की स्थिति की समीक्षा करने केंद्रीय टीम आएगी कूनो
भोपाल (राज्य ब्यूरो), MP Cheetah Project। श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में चीतों की मौत पर केंद्र सरकार भी चिंतित है। चीतों की मौत की समीक्षा करने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के विशेषज्ञों की टीम कूनो आएगी। शनिवार को भोपाल आए केंद्रीय वन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने यह बात मीडिया से कही। उन्होंने कहा कि हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय चीता विशेषज्ञों के सतत संपर्क में हैं। वे सतत समीक्षा कर रहे हैं। चीता परियोजना ठीक से चल रही है। उसमें किसी भी तरह के बदलाव की कोई जरूरत महसूस नहीं हो रही है।
चार दिन में दो चीतों की मौत
बता दें कि चार दिन के भीतर कूनो में दो वयस्क चीतों की मौत हो गई है। भूपेन्द्र यादव ने कहा चीतों को यहां के वातावरण में ढलने में एक साल लगेगा। चीते मध्य प्रदेश से कहीं और नहीं भेजे जाएंगे। चीतों की अच्छी देखभाल के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। चीता एक्शन प्लान में जो भी संभावनाएं बताई गई हैं, उन्हें हम देख रहे हैं। हम सारी चिंताओं से वाकिफ हैं और संवेदनशील तरीके से इसके निष्पादन के लिए काम कर रहे हैं। प्रदेश की जनता, स्थानीय लोगों का सहयोग और वन विभाग का परिश्रम रंग लाएगा।
दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाकर छोड़े गए थे
दरअसल, कूनो नेशनल पार्क में बीते चार माह में पांच वयस्क और तीन चीता शावकों की मौत ने प्रबंधन की लापरवाही उजागर कर दी है। इससे भारत ही नहीं दुनिया के लिए भी अनूठे एक से दूसरे महाद्वीप में चीता पुनर्स्थापना प्रोजेक्ट को लेकर चिंता बढ़ रही है। 17 सितंबर, 2022 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कूनो में नामीबिया से लाए चीते छोड़े थे। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाकर छोड़े गए। मादा चीता दक्षा, नर चीता तेजस और सूरज की जान संघर्ष के दौरान घायल होने के बाद गई। तीन शावकों और दो वयस्क चीतों की मौत प्राकृतिक होने की बात कही गई।
कूनो में 15 चीते और एक शावक बचा है
कूनो में चीतों की 24 घंटे मानव संसाधनों के साथ हाई टेक निगरानी का दावा किया जाता है, इसके बावजूद न तो प्रबंधन उनकी लड़ाई समय रहते देख पाया न ही घायल होने के बाद तुरंत इलाज दे पाया। घायल मिलने के बाद तीन से चार घंटे में ही चीतों ने दम तोड़ दिया। अब कूनो में 15 चीते और एक शावक बचा है।
मादा चीता का नर चीता पर भारी पड़ता गले नहीं उतर रहा
पिछले दो माह में तीन चीतों की मौत न केवल देखभाल में लापरवाही से हुई है, बल्कि इसकी जवाबदेही लेने से भी अधिकारी बचते दिखे। चीता दक्षा की मौत को लेकर बताया गया कि दो नर चीतों से मेटिंग के दौरान संघर्ष में जान गई पर इसका जवाब नहीं दिया कि दो चीतों को एक साथ बाड़े में क्यों छोड़ा? संघर्ष के दौरान निगरानी दल कहां था? हाल ही में चीता तेजस की मौत को लेकर भी अधिकारियों ने स्वीकार किया कि चीता नाभा को उसके बाड़े में छोड़ा गया था, संभवत: उससे संघर्ष हुआ, हालांकि मादा चीता का नर चीते पर जानलेवा ढंग से भारी पड़ना किसी के गले नहीं उतर रहा।
चीते के घायल होने का पता नहीं चला
शुक्रवार को चीता सूरज की मौत को लेकर भी अन्य चीता या जंगली जानवर (संभवतः जंगली भैंसा) से संघर्ष की बात कही जा रही है पर संघर्ष कब हुआ, उसके बाद चीते का परीक्षण क्यों नहीं किया। इसकी जानकारी प्रबंधन नहीं दे सका। बता दें, सुरक्षाकर्मियों से लेकर चीता ट्रैकिंग टीम, डाग स्क्वायड, सीसीटीवी और ड्रोन कैमरा, वाच कैमरा व कई टीमें हैं। चीतों की कालर आइडी से लोकेशन देखी जाती है फिर भी चीते के घायल होने का पता नहीं चल पता।