बच्चों को बनाना चाहते हैं संस्कारी और सफल, तो माता-पिता चाणक्य नीति की इन बातों का रखें ध्यान

नई दिल्ली. सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे सही आदतें अपनाएं और जीवन में अच्छी राह पर चलकर आगे बढ़ें। इसके लिए वो बचपन से ही इसी कोशिश में लग जाते हैं कि उनका बच्चा कोई गलत संगत में न पड़े। आचार्य चाणक्य ने भी अपनी नीतियों में बच्चों की परवरिश से जुड़ी कुछ बातों का जिक्र किया है। तो आइए जानते हैं कि अपने बच्चों को संस्कारी और सफल बनाने के लिए मां-बाप को क्या सावधानी रखनी चाहिए…

1. चाणक्य नीति के अनुसार बचपन में बच्चे कच्ची मिट्टी जैसे होते हैं। इसलिए मां-बाप को पांच वर्ष की आयु तक बच्चे को खूब प्यार और समझदारी से पालना चाहिए, क्योंकि इस उम्र में बच्चे अबोध होते हैं। उन्हें सही-गलत की कोई समझ नहीं होती है। इसलिए अगर बच्चे कोई गलती कर भी दें तो उन्हें डांट-डपटकर न समझाएं, क्योंकि बच्चे जानबूझकर इस आयु में गलती नहीं करते।

2. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जब आपका बच्चा पांच साल का हो जाता है तो वह चीजों को थोड़ा-थोड़ा समझना शुरू कर देता है। इसलिए इस आयु में गलती करने पर आप उसे डांट सकते हैं। यानि कि बच्चों को दुलार के साथ आवश्यकता पड़ने पर थोड़ी डांट भी लगाना जरूरी है।

3. जब आपका बच्चा 10 साल से लेकर 15 साल तक की आयु का हो तो बच्चे बहुत सारी चीजों को समझने लायक हो ही जाते हैं। इसलिए उनके साथ थोड़ी सख्ती बरती जा सकती है, क्योंकि अगर बच्चे किसी गलत चीज को लेकर जिद करें और प्यार से समझने का बाद भी न मानें तो उनके साथ थोड़ा सख्त हुआ जा सकता है। लेकिन इस बात का विशेष ख्याल रखें कि मां-बाप गुस्से में कोई अमर्यादित बात अपने बच्चे न कह दें। वरना बच्चों पर उलटा असर हो सकता है।

4. चाणक्य नीति में जिक्र है कि जब बच्चा 16 साल की आयु तक पहुंच जाए तो अब कोशिश करें कि आप उसके मित्र की तरह रहे पाएं। क्योंकि यह एक नाजुक उम्र होती है और इस आयु में बच्चे डांट-फटकार का बहुत गलत मतलब निकाल सकते हैं। इसलिए एक दोस्त की तरह उसके विचारों को समझने की कोशिश करें। इसके लिए आपको परिवर्तन को स्वीकारने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

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