‘शांति दूत’ की अमेरिकी छवि रौंद चीन ने चौंकाया, जानें- पश्चिमी एशिया में किसके संग जादू चलाया?
नई दिल्ली. पश्चिम एशिया पिछले कुछ सालों से अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी और राजनयिक होड़ के वर्चस्व का केंद्र रहा है। हाल के दिनों में पश्चिमी एशियाई देशों सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौते करवाकर चीन ने इस इलाके की भू-राजनीति में न सिर्फ अहम कदम बढ़ाया है बल्कि अमेरिका की कथित ‘शांति दूत’ की छवि धूमिल कर दुनिया को चकित कर दिया है।
TOI में लिखे एक कॉलम में मशहूर लेखक जोरावर दौलत सिंह ने लिखा है,”अतीत से भारत की शांति निर्माता भूमिका से एक सीख लेते हुए, बीजिंग ने राजनयिक दुनिया को सऊदी अरब और ईरान के बीच मध्यस्थता के साथ चकित कर दिया है और भू-राजनीति के पारम्परिक तरीकों से दूर रहकर, तात्कालिक परिधि पर संघर्ष-ग्रस्त पश्चिम एशिया में एक प्रमुख खिलाड़ी बनने के लिए चीन तैयार है। यहां तक कि शांति समझौता कराने वाले अमेरिकी शक्ति की सीमाओं को भी चीन ने सीमित कर दिया है।”
सिंह ने लिखा है कि अमेरिका स्वतंत्र विचारधारा वाले लोगों को छोड़कर, ग्राहक राज्यों के एक चुनिंदा समूह के लिए सुरक्षा गारंटर के रूप में भूमिका निभाता रहा है, जिसे उभरती बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में चीन ने एक हद तक सीमित कर दिया है।
सिंह ने लिखा है कि अतीत में युद्ध और शांति के सवालों को आकार देने वाली महाशक्ति अमेरिका था, जिसने इराक (2003), लीबिया (2011), सीरिया (2012) में सैन्य हस्तक्षेप किया था और एक हदतक ईरान की रोकथाम की थी। ये सभी एकध्रुवीय सुरक्षा संरचना बनाने के उद्देश्य से किए गए थे। उस वक्त दुनिया में अस्थिरता, छद्म युद्ध थे और अंततः एक पॉवर वैक्यूम देख अमेरिका ने इसे अपने स्तर से मैनेज कर लिया था।
अब दुनिया फिर से शक्ति और प्रभाव के बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ रही है। ईरान, सऊदी अरब और शायद इज़राइल जैसी मुख्य क्षेत्रीय शक्तियाँ भी यह मान रही हैं कि अकेले वाशिंगटन पूरी दुनिया में एक सुरक्षा संरचना को बनाए नहीं रख सकता है। सीरिया युद्ध के बाद से, रूस ने यह साबित कर दिया है कि उसके पास शासन या क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरों का सामना करने वाले राज्यों की सहायता के लिए हस्तक्षेप करने के लिए सैन्य साधन और इच्छाशक्ति दोनों है।
हालांकि, चीन की भूमिका थोड़ी लीक से हटकर है। वह किसी भी भौगोलिक क्षेत्र और उसके बाहरी परिधि में हताशा और युद्ध की थकान देख बुनियादी निर्माण पर फोकस करता रहा है। अमेरिका पश्चिमी एशिया में इस भूमिका को नहीं निभा पा रहा था। यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने भी स्वीकार किया: “उन दो देशों के साथ हमारे संबंधों को देखते हुए…हम मध्यस्थ बनने की स्थिति में नहीं थे।”
सिंह ने लिखा है कि रूस द्वारा समर्थित चीन, (जो सीरिया और ईरान के लिए एक सुरक्षा भागीदार के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है) ने सऊदी अरब जैसे प्रमुख तेल उत्पादकों के साथ भू-आर्थिक हित साझा किए हैं। इसने अब एक वैकल्पिक बहुध्रुवीय सुरक्षा ढांचे को बढ़ावा दिया है, जो अधिक संतुलित, किसी एक महान शक्ति पर कम निर्भर और महत्वपूर्ण रूप से क्षेत्रीय व्यवस्था के प्राथमिक हितधारकों के रूप में क्षेत्रीय राज्यों के साथ लगाव रखता है।
सिंह ने लिखा है कि यह यह वैश्विक कूटनीतिक घटना है, जो अन्य प्रमुख प्रवृत्तियों को भी दर्शाती है। बतौर सिंह, यह भू-आर्थिक शक्ति का यूरेशिया और एशिया में स्थानांतरण है।