शनि की शांति से समय को करें अनुकूल, भविष्य के निर्माण के लिए समय को न जाने दें व्यर्थ …

समय की शक्ति अद्भुत है. खोया हुआ मान, स्वास्थ्य, भूली हुई विद्या, छिना हुआ धन फिर आ सकता है, परंतु बीता हुआ समय कदापि नहीं लौट सकता. धन से भी महत्वपूर्ण है, समय की संपदा. इसलिए समय को व्यर्थ न जाने दीजिए. जो वर्तमान काल का लाभ उठाता है, वह अपने भविष्य का निर्माण करता है. ईश्वर ने समय रूपी धन में कोई पक्षपात नहीं किया है, यह धन सबके लिए समान है. प्रकृति हमें समय पालन का उपदेश देती है. सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी की गति, ऋतुओं का परिवर्तन, ये सभी हमें समय पालन और नियमबद्धता सिखाते हैं.

समय ही महानता के उच्चतम शिखर तक चढ़ने का सोपान है और सूर्य जैसे ग्रहों के अनुरूप नियम तथा नियमित रह कर समय का सदुपयोग करने से ही सफलता प्राप्त हो सकती है. अतः किसी की कुंडली में एकादष स्थान से उसके समय के मूल्य को आंका जा सकता है. जिस भी व्यक्ति की कुंडली में एकादष स्थान का स्वामी उच्च, शुभ तथा अनुकूल स्थान पर हो अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसा जातक अपने कार्य में नियमित होता है तथा यदि उसका तीसरा स्थान भी शुभ हो तो ऐसे जातक की एकाग्रता भी अच्छी होती है. यदि इसके साथ ही भाग्य स्थान भी अनुकूल हो तो ऐसे जातक को सफलता प्राप्ति में आसानी होती है.

अतः यदि आपका भाग्य अनुकूल हो साथ ही तीसरा स्थान एकाग्रता भी दे रहा हो तो एकादष स्थान को अनुकूल करने से आपको अवष्य ही सफलता प्राप्त हो सकती है. यदि आप अपने समय का सदुपयोग ना कर पा रहे हों तो एकादष स्थान के स्वामी ग्रह तथा उस स्थान पर उपस्थित ग्रह की स्थिति तथा उस स्थान से संबंधित ग्रह की दषा और अंतरदषा की जानकारी प्राप्त कर उससे संबंधित ग्रह शांति, मंत्रजाप तथा दान से आप अपने जीवन में समय का सदुपयोग कर अपने जीवन में सफलता प्राप्ति का रास्ता आसान कर सकते हैं. साथ ही कालपुरूष की कुंडली के अनुसार शनि की शांति, मंत्रजाप तथा काली वस्तुओं के दान करने चाहिए.

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