इस वर्ष इस तारीख को पड़ रहा है जितिया व्रत इस व्रत को रखने से भगवान होते हैं प्रसन्न जाने इसकी पूजा विधि
नई दिल्ली/रायपुर: हिंदू धर्म में त्योहारों, पर्वों और व्रतों का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि व्रत करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और भक्तों को विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है. कई तरह के व्रतों में एक व्रत है जीवित्पुत्रिका व्रत। ये व्रत महिलाओं के लिए बेहद कठिन माना जाता है, क्योंकि इस व्रत को महिलाएं निर्जला रहकर करती हैं।
हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत करने का विधान है। इस पर्व को जीवित्पुत्रिका, जिउतपुत्रिका, जितिया, जिउतिया और ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है। माताएं ये व्रत पुत्र प्राप्ति, संतान के दीर्घायु होने एवं उनकी सुख-समृद्धि में वृद्धि के लिए करती हैं। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखकर व्रत का अनुष्ठान करती हैं। लेकिन इस बार जितिया व्रत की सही तिथि को लेकर संशय बना हुआ है।
कुछ पंचांग के अनुसार, जितिया का व्रत 17 सितंबर को रखे जाने की बात की जा रही है, वहीं कुछ लोग उदया तिथि को मानते हुए 18 सितंबर को जीवित्पुत्रिका व्रत रखने की बात कर रहे हैं। ऐसे में आइए जानते हैं जितिया व्रत की सही तिथि और मुहूर्त…
जीवित्पुत्रिका व्रत तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है। इस बार ये व्रत 18 सितंबर की रात से शुरू होगा और 19 सितंबर तक चलेगा। 18 सितंबर को व्रत रखा जाएगा और व्रत का पारण 19 सितंबर को किया जाएगा।
जीवित्पुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 17 सितंबर को दोपहर 2 बजकर 14 मिनट पर होगी और 18 सितंबर दोपहर 4 बजकर 32 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। उदया तिथि के अनुसार, जितिया का व्रत 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा और इसका पारण 19 सितंबर 2022 को किया जाएगा। 19 सितंबर की सुबह 6 बजकर 10 मिनट के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
धर्म शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को संतान प्राप्ति, उनकी लंबी आयु और सुखी निरोग जीवन की कामना के साथ किया जाता है। इस व्रत को करने से संतान के ऊपर आने वाले कष्ट दूर होते हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के युद्ध में जब द्रोणाचार्य का वध कर दिया गया तो उनके पुत्र आश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्राह्रास्त्र चल दिया, जिसकी वजह से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहा शिशु नष्ट हो गया। तब भगवान कृष्ण ने इसे पुनः जीवित किया। इस कारण इसका नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तभी से माताएं इस व्रत को पुत्र के लंबी उम्र की कामना से करने लगीं।