बिलासपुर तहसील कार्यालय में हितग्राही परेशान, सालों से भटक रहे पर अधिकारी नदारद, उनकी कोई सुनवाई नहीं
तहसील कार्यालय कुछ अधिकारी अगर समय पर आ भी रहे हैं तो उसका लाभ पीडि़त को नहीं मिल रहा है क्योंकि महीने या अधिकतम दो-तीन महीनों में जिन मामलों को निपटाए जा सकते थे, उनके लिए हितग्राही सालों से भटक रहे हैं।
HIGHLIGHTS
- तहसील कार्यालय के अधिकारियों के आने का कोई टाइम टेबल ही नहीं।
- चार साल से चक्कर काट रहे बुजुर्ग, अधिकारियों के इंतजार में बेबस हितग्राही।
- कई हितग्राही सीमांकन और बंटवारे के लिए सालों से भटक रहे, समाधान नहीं।
बिलासपुर। तहसील कार्यालय जिले की सबसे महत्वपूर्ण जगहों में से एक है। सुबह 10 बजे जैसे ही कार्यालय खुलता है, लोग अपनी समस्याएं लेकर यहां पहुंच जाते हैं। लेकिन यहां के अधिकारियों के आने का कोई टाइम टेबल ही नहीं है।
सोमवार सुबह 10 बजे तहसील कार्यालय पहुंची। धीरे-धीरे अधिकारियों व कर्मचारियों का आने का सिलसिला शुरू हो गया। अपनी समस्याएं लेकर हितग्राही भी पहुंचने लगे थे। टीम सबसे पहले तहसीलदार मुकेश देवांगन के कक्ष में पहुंची। यहां कर्मचारी तो बैठे हुए थे, लेकिन तहसीलदार की कुर्सी खाली थी। कर्मचारी से बात की, तो पता चला कि तहसीलदार जल्द ही आने वाले हैं। लेकिन 12 से 12.30 बजने के बाद भी तहसीलदार कार्यालय नहीं पहुंचे।
कर्मचारियों का कहना था कि कई बार ड्यूटी होने की वजह से साहब देर से आते हैं। इसी दौरान टीम की मुलाकात एक 75 वर्षीय बुजुर्ग से हुई। बुजुर्ग ने बताया, मैं सुबह 10.30 बजे से तहसीलदार मुकेश देवांगन का इंतजार कर रहा हूं। पटवारी की गलती से मेरी सात डिसमिल जमीन विवादित हो गई है। चार डिसमिल जमीन पर किसी और का नाम दर्ज कर दिया गया है और बाकी की तीन डिसमिल जमीन अधिकारियों के रिकार्ड से गायब हो गई है। मैं पिछले चार साल से यहां आ रहा हूं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सुबह 11.40 बज गए, लेकिन मंगला और सरकंडा क्षेत्र की प्रभारी नायब तहसीलदार नेहा विश्वकर्मा भी अपने कार्यालय नहीं पहुंची थीं। 12 बज गए, लेकिन उनकी कुर्सी भी खाली ही रही। कर्मचारियों ने बताया कि कई बार ड्यूटी पर होने की वजह से वह देर से आती हैं।
वह हितग्राही जो वर्षों से काट रहे हैं चक्कर
अधिकारी कह रहे हैं, मेरी जमीन चोरी हो गई
राधेश्याम साहू पिता शिवदत्त (75), निवासी मोपका, ने बताया कि वर्ष 1982 तक उनकी जमीन सही-सलामत थी। उनके घर के पास स्थित कोठार की सात डिसमिल जमीन में से चार डिसमिल जमीन पटवारी ने किसी और के नाम पर दर्ज कर दी और बची हुई 3 डिसमिल जमीन के बारे में अधिकारियों का कहना है कि उसका कोई रिकार्ड उनके पास नहीं है। अपनी जमीन के दस्तावेज लेकर वह पटवारी द्वारा की गई गलती को सुधरवाने के लिए राधेश्याम पिछले 4 साल से तहसीलदार कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं।राधेश्याम का कहना है कि उनकी जमीन किसी ने चोरी कर ली है जिसे अधिकारी नहीं खोज रहे है।
5-6 साल से भटक रहा हूं, सीमांकन नहीं हो रहा
65 वर्षीय युधिष्ठिर कुमार, निवासी तारबाहर ने बताया कि वह पिछले पांच-छह साल से अपनी जमीन का सीमांकन कराने के लिए भटक रहे हैं। आरआइ और पटवारी का नाम तक उन्हें याद नहीं है। अपने वकील के कहने पर आज फिर से तहसील कार्यालय पहुंचे हैं और अब वकील के आने का इंतजार कर रहे हैं।
वसीयतनामा के बाद हो रही परेशानी
गोंड़पारा निवासी शारदा प्रसाद तिवारी ने बताया कि वह 15 साल से तहसील न्यायालय के चक्कर काट रहे हैं। उनका जमीन बंटवारे का विवाद अपनी भाभी के साथ चल रहा है। शारदा प्रसाद ने कहा कि मेरी दादी फुलवारा बाई तिवारी ने वर्ष 1980-85 में वसीयत बनाकर तीनों भाई विजय तिवारी, विनोद तिवारी और मेरे नाम पर जमीन दर्ज की थी। लेकिन वसीयत में मिली जमीन को बड़े भाई विजय तिवारी और विनोद तिवारी ने बेच दिया है। अब मेरे हिस्से की जमीन खमतराई में बची है, जिसे लेकर बड़े भाई की पत्नी पार्वती तिवारी बंटवारे की मांग कर रही हैं। 15 साल से इस विवाद को लेकर मैं परेशान हूं और लगातार तहसील न्यायालय के चक्कर काट रहा हूं।
बंटवारे के लिए भटक रहा हूं चार साल
सेमस्तूरी निवासी जगराम केंवट अपनी जमीन का बंटवारा करना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि कानूनी दांव-पेंच और फौती उठाने में काफी समय लग गया। अब चार साल से वह अपनी जमीन के बंटवारे के लिए तहसील न्यायालय के चक्कर काट रहे हैं।
परिवार के पांच सदस्यों के बीच होना है बंटवारा
मस्तूरी निवासी सुशीला केंवट ने बताया कि उनके पिता के पांच बच्चे हैं, जिनके बीच जमीन का बंटवारा होना है। बंटवारे और कानूनी प्रक्रिया को पूरा करने के लिए वह पिछले तीन साल से तहसील कार्यालय के चक्कर काट रही हैं, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं हो पाया है।