इतिहास की दास्तां सुनाते पुराने सिक्के, शहर के युवाओं के पास है बेहतरीन कलेक्शन

प्राचीन मुद्राओं का अपना विशेष महत्व है। यह केवल मुद्रा ही नहीं, बल्कि इतिहास जानने का जरिया और उसे वक्त की परिस्थितियों को बताने का रोचक माध्यम भी है। वर्तमान में जहां डिजिटल भुगतान का चलन तेजी से बढ़ रहा है। वहीं, शहर में कुछ ऐसे लोग भी है जो पुराने मुद्रा को संरक्षित करने में लगे हुए हैं।

HIGHLIGHTS

  1. महाजनपद काल से लेकर आधुनिक भारत तक के सिक्कों का संग्रह।
  2. अतीत की ये मुद्राएं इतिहास और व्यापार को समझने का हैं जरिया।
  3. पुराने सिक्कों के नाम पर ठगी रोकने को बनाई मुद्रा संग्राहक समिति।

 इंदौर। आज के नौजवान जहां डिजिटल मुद्रा और क्रिप्टो क्वाइन को एकत्र करने में लगे हैं। वहीं, ये लोग महाजनपद काल की मुद्रा को भी संरक्षित कर रहे हैं। हाल ही में शहर में एक मुद्रा प्रदर्शनी लगी थी। शहर में कुछ मुद्राओं की नीलामी भी लाखों में हुई।

मगर, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने संग्रह को दर्शाने में तो यकीन रखते हैं, बेचने में नहीं। इनका मानना है कि अतीत की ये मुद्राएं वर्तमान को खास और भविष्य को बेहतर बनाने का जरिया है। शहर के इन मुद्रा संग्राहकों के पास कई दुर्लभ सिक्के हैं जिनके माध्यम से प्राचीन भारत को जाना जा सकता है। इनमें भारतीय के साथ विदेशी मुद्रा भी हैं।

दादी के पास सिक्के देख लगा शौक

असिस्टेंट प्रोफेसर शिवम चतुर्वेदी बताते हैं कि वे पांच-छह साल की उम्र से पुराने सिक्के इकट्ठा कर रहे हैं। पहली बार दादी के पास एक डिब्बे में सिक्के देखे थे। तब से यह शौक उन्हें लगा। उनके पास महाजनपद काल की मुद्रा से लेकर आजाद भारत तक सिक्कों का संग्रह है।

शिवम बताते हैं कि पुरानी मुद्रा से हमें इतिहास के साथ तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के बारे में भी जानकारी मिलती है। सिक्कों में सोने, चांदी और अन्य धातु की स्थिति उस समय के समाज की आर्थिक स्थिति बताती है।

उन्होंने बताया कि पुरानी मुद्रा के बारे में अध्ययन और जानकारी आवश्यक होती है। इसके लिए ब्राह्मी लिपि के साथ उर्दू भाषा भी सीखी। शिवम कहते हैं कि वह इनसे जुड़ी किताबों का संग्रह भी करते हैं।

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व्यापार के बारे में जानकारी देते हैं सिक्के

आशीष सोनी बताते है कि कालेज के समय दुर्लभ मुद्राओं और नोटों के संग्रह के प्रति रुचि बढ़ी। पिता की ज्वेलरी की दुकान थी। एक बार दुकान पर सोने-चांदी के पुराने सिक्के खरीदने के लिए एक सज्जन आए। उन सिक्कों के लिए वो धातु के मूल्य से अधिक रुपये देने को तैयार थे।

मैंने सोचा ऐसा क्या है इन सिक्कों में। यहीं से पुरानी मुद्रा के संग्रह का शौक लगा। वर्तमान में मेरे पास दो हजार साल से ज्यादा पुराने सिक्कों का कलेक्शन है। इन मुद्राओं में 1921-22 और द्वितीय विश्वयुद्ध के साथ 1970 में जारी एक रुपये का चांदी का सिक्का भी है।

ग्वालियर में झाबुआ क्षेत्र के सिक्के मिलने से हमें जानकारी मिलती है कि किस क्षेत्र का कहां तक व्यापार होता था। सिक्कों पर देवी-देवताओं की आकृति से पता चलता था कि उस समय के राजा किन देवताओं की पूजा करते थे। कौनसी भाषा बोली जाती थी।

इसके साथ ही दुर्लभ मुद्राओं के नाम पर ठगी के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। मुद्राओं के संग्रह और इससे जुड़ी ठगी के प्रति जागरूकता के लिए इस क्षेत्र में काम करने वाले अन्य लोगों के साथ इंदौर मुद्रा संग्राहक समिति भी बनाई।

2500 साल पुराने सिक्कों का भी कलेक्शन

गिरीश शर्मा बताते हैं कि वे 1970 के समय कॉलेज में थे, तब से पुरानी मुद्रा का संग्रह कर रहे हैं। शुरुआत घर में लक्ष्मी पूजन के दौरान दादी द्वारा पुराने सिक्कों की पूजा देखकर हुई थी। मैंने उन सिक्कों के फोटो खींचकर उनके बारे पुस्तकों में खोजना शुरू किया।

तब पता चला कि ये सिक्के तो बहुत पुराने है। तब से मैंने भी संग्रह करना शुरू कर दिया। पुरानी मुद्रा और सिक्कों से संबंधित पांच हजार से ज्यादा पुस्तकों का संग्रह भी है। करीब डेढ़ लाख से अधिक प्राचीन सिक्कों का संग्रह है। इनमें 2500 साल पुराने सिक्कों से लेकर आजादी तक के सिक्के हैं।

विशेष रूप से गुप्त काल के सिक्के महत्वपूर्ण हैं। अपने मुद्रा संग्रह के जुनून के लिए देश-विदेश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें व्याख्यान के लिए बुला चुके हैं। पुराने सिक्के उस समय की संस्कृति और आर्थिक स्थिति के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं।

गिरीश शर्मा बताते हैं कि सिक्कों पर अंकित चिह्न राजा के धार्मिक झुकाव को बताते हैं। इन सिक्कों पर अंकित भगवान के चित्र भी उस समय की मुद्रा की स्वीकार्यता को बताते हैं।

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