International Dog Day: बस्तर के स्निफर डॉग्स, नक्सलियों के बिछाई 4 हजार किलो से अधिक विस्फोटक खोजे

बीजापुर जिले में लेब्राडोर नस्ल की श्वान रानी नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों की प्रमुख सहायक है। श्वानों की मदद से नक्सल मोर्चे पर बारूदी सुरंगों को खोजने में सफलता मिली है, जिससे सुरक्षा बलों की रक्षा हो रही है। रानी ने 200 से अधिक अभियानों में 300 किलो से अधिक विस्फोटक ढूंढे हैं।

HIGHLIGHTS

  1. नक्सल इलाकों में श्वानों की मदद से खोजी जाती हैं विस्फोटक
  2. बस्तर में 100 से अधिक श्वान बारूदी सुरंगे खोजने में माहिर
  3. रानी श्वान ने 200 अभियानों में 300 किलो विस्फोटक खोजे

 जगदलपुर: बस्तर के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में सुरक्षा बल के जवानों की अगुवाई “रानी” करती है। रानी नक्सलियों के विरुद्ध सुरक्षा बलों की लड़ाई में सम्मिलित श्वानों के दल की सदस्य है। इसकी भूमिका विस्फोटकों का पता लगाने में प्रभावी रही है। रानी बीजापुर जिला पुलिस बल की सदस्य है।

विस्फोटक ढूढ़कर बचाई जवानों की जान

दो माह पहले नक्सलियों ने गद्दामली से कडेर जाने वाले रास्ते पर सुरक्षा बल को नुकसान पहुंचाने 30-30 किलो के दो पाइप बम व एक दस किलो का प्रेशर कुकर आइईडी (इंप्रोवाइज एक्सप्लोसिव डिवाइस) बिछाए हुए थे। नक्सलियों का इरादा जवानों को बड़ा नुकसान पहुंचाने का था, पर बल की अगुवाई कर रही रानी ने इसका पता लगा लिया। इसके तुरंत बाद बम निरोधक दस्ते ने विस्फोटकों को निष्क्रिय कर दिया।

दो सौ से अधिक अभियान में ढूंढे विस्फोटक

पिछले दस वर्ष से सुरक्षा बल में तैनात लेब्राडोर नस्ल की इस श्वान रानी ने अब तक दो सौ से अधिक अभियान में 300 किलो से अधिक विस्फोटक ढूंढ निकाले हैं। बस्तर के नक्सल मोर्चे पर केंद्रीय रिजर्व बल, पुलिस बल, इंडियन तिब्बतन बार्ड पुलिस सहित अन्य बलों की टुकड़ी में 100 से अधिक श्वानों की तैनाती है।

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सुरक्षा बल के अभियान की अगुवाई करते हुए इन श्वानों ने अब तक जमीन के नीचे दबे 4000 किलो से अधिक विस्फोटक का पता लगा कर जवानों को सुरक्षित रखने का साहसिक कार्य किया है। बस्तर में नक्सलवाद के विरुद्ध जारी लड़ाई में सुरक्षा बल के साथी श्वान सारथी की भूमिका में है।

पग-पग पर है बारूदी खतरा

राज्य गठन के बाद से नक्सलियों के बारूदी सुरंग हमले में 754 जवान बलिदान व 189 नागरिक मारे गए हैं। यह आंकड़े बताते हैं कि बस्तर में पग-पग पर बारूदी खतरा है। यद्यपि पिछले कुछ वर्ष में सुरक्षा बलों को बारूदी सुरंग हमलों को असफल करने में सफलता मिली है।

सुरक्षा बल के जवान मानते हैं कि इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ नक्सल मोर्चे पर तैनात श्वानों का है। नक्सलियों के विरुद्ध अभियान में श्वानों के उपयोग से बारूदी सुरंगों को ढूंढने में क्रांतिकारी सफलता मिली है। अभियान में सुरक्षा बलों की अगुवाई श्वान करते हैं और कई घटनाओं में जवानों की जान बचाई हैं। -सुंदरराज पी., आइजीपी बस्तर

 

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कई फीट नीचे दबे बारूद का 
भी लगा लेते हैं पता

कर्नाटक के बैंगलोर स्थित तरालु श्वान प्रशिक्षण केंद्र के डीआइजी डॉ. बी. वीरालु कहते हैं कि नक्सल मोर्चे पर श्वान और डाग हैंडलर के मध्य का रिश्ता बहुत महत्वपूर्ण है। एक वर्ष के कड़े प्रशिक्षण में डाग हैंडलर के साथ ही श्वानों को प्रशिक्षित किया जाता है। लेब्राडोर, जर्मन शेफर्ड व बेल्जियम शेफर्ड नस्ल के श्वान सबसे अधिक उपयुक्त पाए गए हैं। सूंघने की तीव्र क्षमता के कारण वे जमीन के कई फीट नीचे दबे बारूद का भी पता लगा लेते हैं।

श्वान होते तो घटनाओं की संभावना होती कम

  • 06 अप्रैल 2010: दंतेवाड़ा में 75 सीआरपीएफ के जवान और एक पुलिसकर्मी बलिदान हो गए थे।
  • 18 मार्च 2011: सुकमा में 5 जवान बलिदान हो गए थे।
  • 13 मार्च 2018: सुकमा में 9 सीआरपीएफ जवान बलिदान हो गए थे।
  • 27 अक्टूबर 2018: बीजापुर में सीआरपीएफ के चार जवान जवान बलिदान हो गए थे।

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