Janmashtami 2024: क्या है होती है रासलीला… कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने बताया महत्व
हर साल कृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर रासलीला का आयोजन किया जाता है। रासलीला का संबंध द्वापरयुग से है। भगवान श्रीकृष्ण की आराधना के लिए रास का आयोजन किया जाता है। कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने भी धार्मिक दृष्टि से रास का महत्व बताया है।
HIGHLIGHTS
- द्वापरयुग में किया जाता था रास
- गोपियों द्वारा किया जाता था रास
- रासलीला कृष्ण भक्ति का मार्ग है
धर्म डेस्क, इंदौर (Janmashtami Kab Hai)। हिंदू धर्म में रासलीला को श्रीकृष्ण की भक्ति से जोड़कर देखा जाता है। माना जाता है कि द्वापर युग में गोपियों द्वारा रासलीला की जाती थी। रासलीला के जरिए श्रीकृष्ण की आराधना की जाती है और इसमें नृत्य किया जाता है। रासलीला में कृष्ण की बाल और युवावस्था का मंचन होता है। द्वापरयुग की यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है और हर साल जन्माष्टमी पर इसका मंचन होता है।
रासलीला का वर्णन हिंदू ग्रंथों में भी मिलता है। कई कथावाचकों ने अपनी कथाओं में रासलीला का महत्व बताया है। इसी कड़ी में प्रसिद्ध कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय ने भी धार्मिक दृष्टिकोण से रासलीला की व्याख्या की है।
क्या कहते हैं इंद्रेश उपाध्याय
कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय के अनुसार, रास का मतलब सिर्फ नाचना नहीं होता है। रास के माध्यम से हम श्रीकृष्ण की भक्ति करते हैं और ठाकुर जी को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। रास का अर्थ यही है कि इसके जरिए प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण हमसे मिलने आ जाए।
कब मनेगी जन्माष्टमी
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल 26 अगस्त (सोमवार) को मनाया जाएगा। सुबह 3 बजकर 40 मिनट से अष्टमी तिथि शुरू होगी और अगले दिन यानी 27 अगस्त को सुबह 2 बजकर 19 मिनट पर इसका समापन होगा। पूजा का शुभ समय मध्य रात्रि 12:02 से रात्रि 12:45 तक रहेगा। व्रत का पारण 27 अगस्त को सुबह 6:36 तक किया जा सकता है।
ज्योतिषियों के अनुसार, इस साल जन्माष्टमी पर चंद्रमा, वृषभ राशि में विराजित रहेंगे, जिससे जयंती योग का निर्माण होगा। इस योग में पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है।
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