मुंबई रॉक बैंड ने बस्तर संगीत पर बनाई डॉक्यूमेंट्री, आदिवासी दिवस पर होगी रिलीज, लोक कलाकार लाखेश्वर ने दी है आवाज
आर्ट रॉक बैंड के सदस्यों ने जानकारी देते हुए बताया कि इस काम को हमने चुनौती नहीं बल्कि अवसर मानते हैं। आदिवासी कलाकारों के साथ काम करना आश्चर्यजनक रहा, क्योंकि वे भले राक कल्चर नहीं जानते लेकिन वर्ल्ड म्यूजिक की समझ है। हमने उनके गीत-संगीत से ही सीखा जिसे अब पुन: प्रस्तुत किया जा रहा है।
HIGHLIGHTS
- बस्तर संगीत पर बनी डॉक्यूमेंट्री जादू बस्तर की…की हुई स्क्रीनिंग।
- मुंबई के रॉक बैंड के कलाकारों ने बस्तर को लेकर बताएं अनुभव।
- बस्तर के गीत-संगीत और विश्व संगीत को जोड़कर तैयार किया गाने।
रायपुर। मुंबई के आर्ट रॉक बैंड ने पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में बस्तर के संगीत पर बनी डॉक्यूमेंट्री जादू बस्तर की… स्क्रीनिंग की। लगभग 55 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री में आदिवासी गीत-संगीत के अलावा आदिवासी कलाकराें के लघु साक्षात्कार और बस्तर के सुरम्य वातावरण को दिखाया गया।
स्क्रीनिंग के बाद बैंड के सिंगर पीयूष ने बताया कि कहा जाता है कि बस्तर में काम करना आसान काम नहीं है। डॉक्यूमेंट्री बनाते समय हमारे तीन साथी किसी वजह से वापस लौट गए थे। काम में थोड़ी देरी हुई तो बस्तर प्रशासन को लगा हम नहीं कर पाएंगे और भाग जाएंगे, लेकिन हमने कर दिखाया।
इस डॉक्यूमेंट्री की लॉचिंग 9 अगस्त को आदिवासी दिवस पर की जाएगी। इसे यूट्यूब पर अपलोड किया जाएगा। गीतों में बैंड टीम के साथ बस्तर के लोक कलाकार लाखेश्वर खुदराम की आवाज है। इससे पहले 5 गाने यूट्यूब पर जारी किया जा चुका है। सभी गाने बस्तर के गीत-संगीत और विश्व संगीत को जोड़कर तैयार किया गया है। इस अवसर पर बैंड ने कैसा जादू है तेरे बस्तर में … सुनाया तो सभागार तालियों से गूंज उठा।
आदिवासी जानते हैं वर्ल्ड म्यूजिक
सिंगर पीयूष ने बताया कि हमारा बैंड अफ्रीका के आर्टिस्ट रिचर्ड बोना से इंस्पायर है। इसके अलावा हम पश्चिमी अफ्रीका के देश माली के कलाकारों से बहुत प्रभावित हैं। जब माली में म्यूजिक पर बैन लगा दिया गया तब उन्होंने अमरीका जाकर अपना पैशन पूरा किया था।
टीम के सदस्यों ने जानकारी देते हुए बताया कि इस काम को हमने चुनौती नहीं बल्कि अवसर मानते हैं। आदिवासी कलाकारों के साथ काम करना आश्चर्यजनक रहा, क्योंकि वे भले रॉक कल्चर नहीं जानते लेकिन वर्ल्ड म्यूजिक की समझ है। हमने उनके गीत-संगीत से ही सीखा जिसे अब पुन: प्रस्तुत किया जा रहा है।
जैसा बताते हैं, वैसा नहीं बस्तर
पीयूष ने इस अवसर पर कहा कि देश में बस्तर को लेकर जो छवि बनाई गई है, बस्तर उससे बहुत अलग है। सांस लेना क्या होता है यह हमने बस्तर में जाना। हमें इस बात का अफसोस है कि जितना दिखाना था उसका मात्र पांच प्रतिशत ही दिखा पाए। विडंबना इस बात की है कि बंदूक और गोली के अलावा वहां की भाषा और बोली के बारे में कोई नहीं सोचता। हम खुशी है कि हमने बस्तर को जानने का अवसर प्राप्त हुआ।