Jagannath Temple: इस गांव में भगवान जगन्नाथ को लगान लेते हैं ग्रामीण, 123 साल से निभा रहे परंपरा, जानें क्‍या है मान्‍यता"/>

Jagannath Temple: इस गांव में भगवान जगन्नाथ को लगान लेते हैं ग्रामीण, 123 साल से निभा रहे परंपरा, जानें क्‍या है मान्‍यता

HIGHLIGHTS

  1. साल 1854 में शुरू हुआ था मंदिर का निर्माण
  2. ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से किया था निर्माण
  3. फसल निकलने के बाद लगान देते हैं ग्रामीण

Jagannath Temple धर्म डेस्क, गरियाबंद। जिले के देवभोग में 84 गांव के लोग भगवान जगन्नाथ जी को आज भी लगान देते है। लगान देने की ये परंपरा पिछले 123 साल से निरंतर चली आ रही है। लगान के रूप में चावल और नगद लिया जाता है। इस लगान की राशि से मंदिर का संचालन होता है।

देवभोग में मौजूद जगन्नाथ जी के मंदिर का इतिहास 123 साल से भी ज्यादा पुराना है। मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष देवेंद्र बेहेरा ने बताया कि 18वीं शताब्दी में मिछ मूंड नामक पंडित पुरी से जगन्नाथ भगवान की प्रतिमा लेकर झराबहाल गांव पहुंचे। यहां उन्होंने प्रतिमा को बरगद पेड़ के नीचे रखा और पूजा करने लगे। इसके बाद धीरे-धीरे लोगों की आस्था इस पर बढ़ती गई।

हुआ था ये चमत्कार

लोगो ने मंदिर निर्माण के लिए जमींदार से स्थान की मांग की, लेकिन तत्कालीन जमींदारों ने प्रतिमा का शक्ति का परीक्षण कराना तय किया। इसके बाद देवभोग से लगे आसपास के 54 गांवों के प्रतिनिधि बुलाए गए। प्रतिमा की सत्यता का परीक्षण किया। पंडा ने जिस परात में मूर्ति का स्नान चंदन हल्दी पानी से कराया, उस पानी में लोहे के कछुए को पंडा ने तैरा दिया। इस चमत्कार के बाद मंदिर बनाने का ऐलान किया गया।

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जनभागीदारी से मंदिर बनाने का हुआ निर्णय

 

परीक्षण के बाद यह भी तय हुआ कि मंदिर निर्माण अकेले जमींदार नहीं कराएंगे, बल्कि जनभागीदारी से मंदिर बनाया जाएगा। बताया जाता है कि 1854 में मंदिर बनाना शुरू हुआ। इसमें 84 गांव के लोगों ने अपनी क्षमता के अनुरूप सहयोग किया। निर्माण सामग्री से लेकर आर्थिक सहयोग किया। 1901 में मंदिर बनकर तैयार हुआ।

मंदिर बनने के बाद अब इसके संचालन को भी भक्तों के आस्था के साथ जोड़ा गया। फसल कटने के बाद फसल का अंश मंदिर संचालन और भगवान के भोग के लिए देना तय हुआ और इसके लिए संकल्प भी लिया गया।

फसल कटने के बाद देते हैं लगान

मंदिर बनने के बाद अब इसके संचालन को भी भक्तों की आस्था के साथ जोड़ा गया। संचालन के लिए जो अनाज ग्रामीण देते हैं, उसी से पुजारी की सैलरी, सेवादारों की मेहनताना और मंदिर मेंटेनेंस खर्च चलाया जाता है, जिसे लगान का रूप दिया गया। मंदिर संचालन के लिए प्रति साल फसल कटाई के बाद अनाज या नकद लगान के रूप में ग्रामीण देते हैं। वहीं लगान के रूप में जो अनाज लिया जाता है, वह पुरी के विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ मंदिर जाता है। जो भगवान जगन्नाथ को भोग लगता है।

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