भारतीय वैज्ञानिकों ने मच्छरों से तेजी से फैलने वाले रिफ्ट वैली फीवर का पता लगाया
कश्मीर के रहने वाले एक वायरोलॉजिस्ट ने मानव कोशिकाओं में रिफ्ट वैली फीवर (आरवीएफ) वायरस के नवीनतम प्रकोप की खोज की है। अमेरिका में रह रहे कश्मीर के डॉ. सफदर गनी ने पाया कि मच्छरों से फैलने वाला आरवीएफ वायरस एक प्रोटीन के जरिए मानव कोशिकाओं में प्रवेश करता है।
डॉ. गनी और उनके सहयोगियों की खोज हाल ही में जर्नल सेल में प्रकाशित हुई थी। डॉ. गनी और उनकी टीम ने पाया कि मच्छरों द्वारा फैला हुआ रिफ्ट वैली फीवर वायरस मानव कोशिकाओं में एक प्रोटीन के माध्यम से प्रवेश करता है, जो आमतौर पर कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन को हटाने में शामिल होता है।
श्रीनगर से प्रकाशित एक समाचार पत्रिका कश्मीर लाइफ के अनुसार, इस खोज से उन उपचारों की ओर बढ़ने की उम्मीद है, जो रिफ्ट वैली फीवर को रोकते हैं या इसकी गंभीरता को कम करते हैं।
डब्ल्यूएचओं ने इसे गंभीर बीमारी के रूप में सूचिबद्ध किया
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रिफ्ट वैली फीवर को एक गंभीर बीमारी के रूप में सूचीबद्ध किया है, जिससे निकट भविष्य में महामारी होने की संभावना हो सकती है।
यह वायरस पालतू जानवरों के बीच मच्छरों द्वारा फैलता है, और इसके बाद यह मनुष्यों में भी फैल सकता है। कश्मीर लाइफ के अनुसार, अध्ययन पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय, टोरंटो विश्वविद्यालय, हार्वर्ड विश्वविद्यालय और एमआईटी और हार्वर्ड के ब्रॉड इंस्टीट्यूट के सहयोग से किया गया था।
दक्षिण अफ्रीका में पाया गया
रिफ्ट वैली वायरस का सबसे पहले दक्षिण अफ्रीका में पता चला था। साल 2008-2009 में रिफ्ट वैली बुखार के छोटे छिटपुट प्रकोपों के बाद, दक्षिण अफ्रीका में 2010 और 2011 में एक व्यापक महामारी हुई। इसके 250 से अधिक मामले सामने आए, जिनमें 25 लोगों की मौत हो गई थी। इसके अलावा 14,000 से अधिक पशुओं के मामले सामने आए और उसमें 8,000 जानवरों की मौत हो गई थी।
कौन हैं डॉ. गनी
डॉ. गनी अध्ययन के प्रमुख लेखक थे। आगे की पढ़ाई के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका जाने से पहले उन्होंने कश्मीर विश्वविद्यालय से मास्टर की डिग्री हासिल की। खबरों के मुताबिक, उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कंसास से वायरोलॉजी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।