Kevda Swami Temple: रहस्यमयी है केवड़ा स्वामी मंदिर की कहानी, यहां जंजीरों से बंधे हैं भगवान भैरव
कालाष्टमी का त्योहार भगवान भैरव को समर्पित माना जाता है। यह पर्व हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है।
HIGHLIGHTS
- देश में भगवान भैरव को समर्पित एक मंदिर है।
- इस मंदिर में भगवान की मूर्ति जंजीरों से बंधी हुई है।
- इस मंदिर में 600 वर्षों से भगवान भैरव की पूजा की जा रही है।
धर्म डेस्क, इंदौर। Kevda Swami Temple: सनातन धर्म में भगवान भैरव को तंत्र-मंत्र का देवता माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान भैरव की पूजा करने से शिव जी प्रसन्न होते हैं। कालाष्टमी का त्योहार भगवान भैरव को समर्पित माना जाता है। यह पर्व हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ अवसर पर भगवान भैरव की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। विशेष कार्यों में सिद्धि के लिए इस दिन व्रत भी रखा जाता है। इस दिन भगवान भैरव के मंदिरों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है। देश में भगवान भैरव को समर्पित एक मंदिर है, जहां भगवान की मूर्ति जंजीरों से बंधी हुई है। आइए, जानते हैं कि इसका क्या रहस्य है।
600 वर्षों से हो रही है पूजा
मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले में केवड़ा स्वामी मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भगवान भैरव की मूर्ति कई सालों से स्थापित है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में 600 वर्षों से भगवान भैरव की पूजा की जा रही है। भक्त यहां भगवान भैरव की विधि-विधान से पूजा करते हैं। भगवान भैरव की कृपा से घर में व्याप्त नकारात्मक शक्तियों से छुटकारा मिलता है। साथ ही शत्रु भी परास्त होते हैं।
दाल-बाटी का जाता है भोग
केवड़ा स्वामी मंदिर में भगवान भैरव की मूर्ति को जंजीरों से बांधकर रखा गया है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि भगवान भैरव बच्चों के साथ खेलने के लिए अपने मंदिर से निकल जाते थे। काफी देर तक खेलने के बाद वह ऊब गए, तो भैरव जी ने बच्चों को तालाब में फेंक दिया। इसी वजह से केवड़ा स्वामी मंदिर में स्थापित भगवान भैरव की मूर्ति को जंजीरों से बांध दिया गया था। हर साल भैरव पूर्णिमा और अष्टमी के अवसर पर बड़ी संख्या में भक्त मंदिर में आते हैं और भगवान के दर्शन करने के बाद दाल बाटी का भोग लगाते हैं।
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