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Korba News: जंगल की पाठशाला में किंग कोबरा के जीवनी का अध्ययन

जैव विविधता की दृष्टि से जिले के वन क्षेत्र का अध्ययन किया जाए तो विलुप्ति के कगार पर आ रहे जीवों का भी पता चलेगा। हाल ही में पाली के जंगल में दुर्लभ प्रजाति का कैगो छिपकली देखा गया था।

HIGHLIGHTS

  1. बाटनी व जीयोलाजी के विद्यार्थी ले रहे विशेषज्ञों से मार्गदर्शन
  2. नोवानेचर के सर्प विशेष जुटा रहे है कोबरा के रहवास संरक्षण की जानकारी
  3. बताती में मिल चुका है 15 फीट लंबा किंग कोबरा
 
 कोरबा। ग्रीष्म अवकाश में महाविद्यालयीन छात्र-छात्राओं के लिए इन दिनों वन क्षेत्र प्राकृतिक प्रयोगशाला बना हुआ है। दरअसल कोरबा के जंगल में पाए जाने वाले दुर्लभ प्रजाति के जीव खासकर किंग कोबरा के संरक्षण व संवर्धन के लिए रायपुर की नोवा नेचर सर्प विशेषज्ञों की टीम को सर्वे के लिए उतारा गया है। जिनके साथ जिले के विभिन्न महाविद्यालय में अध्ययनरत बाटनी व जीयोलाजी के छात्र जंगल में किंग कोबरा के रहवास, भोजन व उनकी उपस्थिति सेे जंगल के संरक्षण के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहे हैं।

किंग कोबरा समेत ऐसे अनेक दुर्लभ जीव हैं, जिनके लिए कोरबा के जंगल वर्षों से पसंदीदा ठिकाना रहे हैं। उड़न गिलहरी, खूबसूरत तितलियां व पैंगोलीन जैसे कई छुपे हुए जीव हैं, जिन्होंने समय-समय पर अपनी झलक दिखाकर यह भी बताया कि कोरबा की डायवर्सिटी कितनी अनोखी है और इसे सेहजकर रखने की जरूरत है। जरूरत समझते हुए किंग कोबरा ही नहीं, सर्प समेत वन में पाए जाने वाले अन्य सरीसृपों पर एक व्यापक अध्ययन किया जा रहा है।

इसके लिए विशेषज्ञ जुगत में जुट गए हैं, जो स्थानीय विवरण और संरक्षण सम्बंधित समस्याओं पर अध्ययन कर वह डाटा जुटा रहे हैं। नोवा नेचर टीम के साथ विद्यार्थियों को जोड़ने का उद्देश्य योग्य विशेष तैयार करना है। जिन पौधों को विद्यार्थी अब तक केवल किताबों के चित्रों में देखते थे, उसे प्रत्यक्ष रूप से देखा। जिले के कोरबा वनमंडल अंतर्गत किंग कोबरा व अन्य सरीसृपों के स्थानिक वितरण और संरक्षण संबंधित समस्याओं के बारे में भी विशेषज्ञ टीम ने विद्यार्थियांे को अवगत कराया।

विद्यार्थियों ने जाना कि कोरबा के वन्य क्षेत्र में कुदरती खूबसूरती के साथ अनेक दुर्लभ वन्य जीवों को रहवास है। यहां विभिन्न् प्रकार के जीवों के अलावा सांपों के लिए भी काफी अनुकूल वातावरण है। कोरबा जिले की बात करें, तो जशपुर के बाद इसे दूसरा नागलोक कहा जाने लगा है। हमारे जंगल में सर्पों के राजा, यानि किंग का भी घर है, जो समय-समय पर देखने को मिलते रहे हैं। इसे संरक्षित जीवों की श्रेणी में रखा गया है, जिसकी सुरक्षा की व्यवस्था और भी जरूरी हो जाता है।

एक दशक पहले तक पश्चिमी घाटी और तराई क्षेत्रों में पाए जाने वाले किंग कोबरा की कोरबा में भी मौजूदगी देखी गई। वर्ष 2014 में सबसे पहले कोरबा जिले के केराकछार में किंग कोबरा देखा गया। इसके बाद पसरखेत व बताती के आस-पास घरों में घुसते व खेतों में घूमते कई बार इस विशालकाय सर्प को देखा जा चुका है। गांव में इस सांप को पहरचित्ती सांप के नाम से जाना जाता है। करतला वन परिक्षेत्र में दुर्लभ प्रजाति के इस सर्प की होने की जानकारी के कारण तस्करों की भी क्षेत्र में नजर हैं। वन्य जीव संरक्षण लिए विशेषज्ञों की टीम गठित की गई है, ताकि सर्पों को संरक्षित करने के साथ उन्हे सुरक्षा प्रदान किया जा सके।

बताती में मिल चुका है 15 फीट लंबा किंग कोबरा

वन विभाग की ओर से कराए गए सर्वे में यह पुष्ट हुआ है कि लेमरू व पसरखेत वन परिक्षेत्र में किंग कोबरा की संख्या सर्वाधिक है। बताती में 15 फीट लंबा कोबरा मिल चुका है। इस क्षेत्र को किंग कोबरा का सुरक्षित व संरक्षित आवास (रहवास क्षेत्र) के रूप में विकसित करने की दिशा में भी वन विभाग योजना बना चुका है। वन विभाग के अधिकारी किंग कोबरा की उपस्थिति के मिल रहे संकेत को गंभीरता से लेते हुए उसके रहवासी क्षेत्र को चिन्हांकित करने एक सर्वे कराया था। इस दौरान लेमरू व पसरखेत वन परिक्षेत्र में ही ढाई सौ से अधिक किंग कोबरा मिले। इस क्षेत्र को उत्खनन व उद्योग के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। वन विभाग ने किंग कोबरा के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर राज्य शासन को सौंपा था।

उत्खनन व उद्योग के लिए किया जा चुका है प्रतिबंधित

वन विभाग की ओर से कराए गए सर्वे में यह पुष्ट हुआ है कि लेमरू व पसरखेत वन परिक्षेत्र में किंग कोबरा की संख्या सर्वाधिक है। बताती में 15 फीट लंबा कोबरा मिल चुका है। इस क्षेत्र को किंग कोबरा का सुरक्षित व संरक्षित आवास (रहवास क्षेत्र) के रूप में विकसित करने की दिशा में भी वन विभाग योजना बना चुका है। वन विभाग के अधिकारी किंग कोबरा की उपस्थिति के मिल रहे संकेत को गंभीरता से लेते हुए उसके रहवासी क्षेत्र को चिन्हांकित करने एक सर्वे कराया था।

इस दौरान लेमरू व पसरखेत वन परिक्षेत्र में ही ढाई सौ से अधिक किंग कोबरा मिले। इस क्षेत्र को उत्खनन व उद्योग के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। वन विभाग ने किंग कोबरा के संरक्षण व संवर्द्धन के लिए विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार कर राज्य शासन को सौंपा था।

कैगो छिपकली की उपस्थिति ने बढ़ाया वनकर्मियों का उत्साह

जैव विविधता की दृष्टि से जिले के वन क्षेत्र का अध्ययन किया जाए तो विलुप्ति के कगार पर आ रहे जीवों का भी पता चलेगा। हाल ही में पाली के जंगल में दुर्लभ प्रजाति का कैगो छिपकली देखा गया था। किंग कोबरा (सांप प्रजाति) व अन्य सरीसृपों के संरक्षण व संवर्धन हेतु विस्तृत अध्ययन के पश्चात उद्देश्य कारगर बनाने विशेष प्रशिक्षण भी शुरू किया जाएगा। इस तरह संबंधित क्षेत्र में जन जागरूकता लाने का प्रयास किया जाएगा।

विषय विशेषज्ञों का चयन वन विभाग ने किया है। किंग कोबरा एक ऐसा सांप है जिससे अन्य सांपों की प्रजातियां भी नियंत्रित होती है, जिसके कारण खाद्य श्रृंखला में किंग कोबरा की उपस्थिति बेहद जरूरी है। जल्द ही कोरबा में किंग कोबरा के निवास को विकसित करने महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएंगे। इससे कोरबा की जैव विविधतता और समृद्ध होगी।

वर्जन

कोरबा वन मंडल के अंतर्गत कोबरा व अन्य दुर्लभ जीवों के संरक्षण के लिए विशेषज्ञ टीम से निरीक्षण कराया जा रहा है। रायपुर की नोवा नेचर टीम को दायित्व दिया गया है। विशेषज्ञ टीम के साथ महाविद्यालय में बाटनी व जीयोलाजी विषय लेकर अध्ययन करने वाले विद्यार्थी भी रहवासी स्थल, भोजन व संवर्धन के संबंध में जानकारी ले रहे हैं। आशीष खेलवार, एसडीओ, कोरबा वन मंडल

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