Asrani Success Story: गाने में देखा तो मुंबई आकर वापस ले गए घर वाले, बहुत फिल्मी है असरानी की सक्सेस स्टोरी
HIGHLIGHTS
- गोवर्धन असरानी का जन्म 1 जनवरी 1941 को पंजाब के गुरदासपुर में हुआ था।
- असरानी का फिल्मी करियर काफी दिलचस्प रहा है।
- फिल्मों की दुनिया में उनकी एंट्री के पीछे काफी मजेदार कहानी है।
एंटरटेनमेंट डेस्क, इंदौर। Asrani Success Story: बॉलीवुड के बेहतरीन एक्टर माने जाने वाले असरानी ने लोगों के दिलों में अपनी एक अलग ही छाप छोड़ी है। वे एक्टर होने के साथ-साथ कॉमेडियन और निर्देशक भी हैं। गोवर्धन असरानी का जन्म 1 जनवरी 1941 को पंजाब के गुरदासपुर में हुआ था। उन्होंने पुणे के फिल्म और टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से एक्टिंग की क्लास ली। असरानी का फिल्मी करियर काफी दिलचस्प रहा है। फिल्मों की दुनिया में उनकी एंट्री के पीछे काफी मजेदार कहानी है।
फिल्मों के लिए घर से भाग गए थे असरानी
दरअसल, असरानी को शुरू से ही फिल्मों में दिलचस्पी थी। वे स्कूल से भागकर सिनेमा देखने जाया करते थे। लेकिन यह बात एक्टर के परिवार वालों को पसंद नहीं थी, उन्होंने उनके सिनेमा देखने पर रोक लगा दी थी। उनके पिता चाहते थे कि असरानी बड़े होकर कोई सरकारी नौकरी करे। लेकिन तमाम पाबंदियों के बावजूद फिल्मों के प्रति उनका प्रेम और भी बढ़ता गया।
एक दिन असरानी बिना किसी को बताए, गुरदासपुर से भागकर मुंबई आ गए। मुंबई आने के बाद फिल्मी दुनिया की राह इतनी आसान नहीं थी। उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं थी कि फिल्मों में एंट्री के लिए उन्हें पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से डिप्लोमा करना पड़ेगा।
घरवाले वापस ले गए थे गुरदासपुर
1960 में पुणे में फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट की स्थापना हुई थी। इसकी पहली बैच के लिए जब एक्टिंग कोर्स का विज्ञापन आया, तो इसे देख असरानी ने अप्लाई किया। इसके लिए उनका सिलेक्शन भी हो गया। 1964 में उन्होंने एक्टिंग से डिप्लोमा पूरा किया। इसके बाद उन्होंने फिल्मों में काम ढूंढना शुरू किया।
वे डिप्लोमा कर, मुंबई आए तो उन्हें फिल्मों में छोटे रोल मिलने लगे। लेकिन वे लोगों की नजर में तब आए, जब सीमा फिल्म के एक गाने में दिखाई दिए। गाने में जब उनके घरवालों ने असरानी को देखा, तो वे मुंबई पहुंच गए। असरानी को उनका परिवार अपने साथ वापस ले गया।
ऐसे मिला था पहला ब्रेक
इसके बाद एक्टर कुछ दिनों तक गुरदासपुर में रहे और फिर घरवालों को मनाया, फिर मुंबई लौट आए। लेकिन वे मुंबई तो लौट आए, लेकिन उन्हें कोई रोल नहीं मिल पाया। असरानी ने तय किया कि थोड़ा ब्रेक लिया जाए और वे पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट चले गए और एफटीआईआई में टीचर बन गए।
इस दौरान वे कई फिल्म डायरेक्टर्स से जुड़े। उन्हें सबसे पहला ब्रेक ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म सत्यकाम से मिला था, जो कि 1969 में रिलीज हुई थी। साल 1971 में रिलीज हुई फिल्म गुड्डी से असरानी काफी लाइमलाइट में आए। उन्हें फिल्म में कॉमिक रोल मिला था। दर्शकों ने इसे काफी पसंद किया और वे एक कॉमेडियन कहलाने लगे।
कॉमेडियन के रूप में बनाई पहचान
फिल्म अमिभान, चंदर, चुपके चुपके में उनके द्वारा निभाए गए किरदार काफी दिलचस्प रहे हैं। साल 1975 में रिलीज हुई फिल्म शोले का डायलॉग अंग्रेजों के जमाने के जेलर उनकी पहचान बन गया था। ऋषिकेश मुखर्जी और गुलजार दो ऐसे फिल्मकार रहे हैं, जिनके साथ असरानी ने सबसे ज्यादा फिल्मों में काम किया।
शोर, सीता और गीता, बावर्ची, परिचय, नमक हराम, अचानक, मेरे अपने, पिया का घर, अनहोनी जैसी फिल्मों में असरानी की बेहतरीन अदाकारी ने दर्शकों का खूब दिल जीता। फिल्म कोशिश और चैताली में एक्टर ने नेगेटिव किरदार निभाया था।