Lok Sabha Election CG: छत्तीसगढ़ में सियासी बिसात वही पर शतरंज के मोहरों की तरह बदली नेताओं की चाल"/>

Lok Sabha Election CG: छत्तीसगढ़ में सियासी बिसात वही पर शतरंज के मोहरों की तरह बदली नेताओं की चाल

HIGHLIGHTS

  1. सियासी बिसात वही पर शतरंज के मोहरों की तरह बदली नेताओं की चाल
  2. विष्णुदेव, रमन, सरोज, भूपेश, सिंहदेव और महंत की बदल गई भूमिका
  3. पूर्व सीएम से अब विधानसभा अध्यक्ष

 रायपुर : पांच साल के भीतर छत्तीसगढ़ की राजनीतिक बिसात तो वही है पर यहां शतरंज के मोहरों की तरह नेताओं की चाल बदल गई है। पिछले चुनाव में वर्तमान के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय अपने क्षेत्र रायगढ़ से चार बार (1999-2014) सांसद बनने के बाद लोकसभा चुनाव में भी प्रत्याशी न होकर पूर्व सांसद की भूमिका में प्रचार करते दिखे थे, तब यहां से आदिवासी नेत्री गोमती साय को टिकट मिला था।

अभी मुख्यमंत्री के रूप में साय का विस्तार पूरे प्रदेश में है। प्रदेश में पिछली बार के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार थी, तब बतौर पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह चुनावी मैदान में सक्रिय रहे। वह इस बार विधानसभा अध्यक्ष होने के नाते प्रत्यक्ष राजनीति से दूर हैं। वहीं पिछली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल थे वह इस बार प्रत्याशी होने के कारण लोकसभा क्षेत्र राजनांदगांव में सिमटते दिखे।

 

 

कहते हैं कि राजनीति में न स्थायी शत्रु होता है और न मित्र। अस्थायी का यह फार्मूला दिग्गजों की भूमिका और क्षेत्र पर भी लागू होता दिख रहा है। पिछले चुनाव तक कांग्रेस की तरफदारी कर रहे सरगुजा के चिंतामणि महराज अभी भाजपा की ओर से सरगुजा के प्रत्याशी हैं।

सांसद से अब सीएम की भूमिका

 

विष्णुदेव साय: कुनकुरी से आने वाले वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय आदिवासी समाज से आते हैं। वह 2019 के चुनाव में पूर्व सांसद की ही भूमिका में क्षेत्र में प्रचार करते दिखे। साय चार बार सांसद, दो बार विधायक, केंद्रीय राज्य मंत्री और तीन बार प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं। इसके अलावा उन्हें संगठन में काम करने का अच्छा खासा अनुभव है। इस वर्ष 20 मार्च 2024 से अब तक छत्तीसगढ़ में करीब 50 जनसभाएं मुख्यमंत्री ने की हैं। जबकि छत्तीसगढ़ के बाहर मध्यप्रदेश और ओडिशा में छह आमसभाएं और रोड शो की कमान संभाली है। साय ने छत्तीसगढ़ में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है। आत्मविश्वास से भरपूर मुख्यमंत्री सभी 11 लोकसभा सीट जीतने के पार्टी आश्वस्त लगते हैं।

 

पूर्व सीएम से अब विधानसभा अध्यक्ष

 

डा. रमन सिंह: पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह पिछले चुनाव के दौरान बतौर पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रचार-प्रसार करते दिखे। पिछली बार भाजपा को प्रदेश की 11 में से नौ सीटें मिली थी। इसके पहले 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 15 सीट में सिमट गई थी और कांग्रेस को 68 सीटें मिली थी। इस बार के चुनाव में रमन विधानसभा अध्यक्ष होने के नाते प्रत्यक्ष राजनीति से दूर हैं।

राज्यसभा सदस्य रहीं अब लड़ रहीं लोकसभा चुनाव

 

सरोज पांडेय: पिछली बार लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की तेजतर्रार नेत्री सरोज पांडेय राज्यसभा सदस्य होने के नाते भाजपा का प्रचार करती दिखीं थी। इस बार उन्हें पार्टी ने कोरबा लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया है। इसके चलते वह अपनी सीट पर ही सिमट गईं हैं। वह भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं।

अब सिमटे राजनांदगांव तक

 

भूपेश बघेल: पिछली बार लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने आक्रामक तेवर के साथ लोकसभा में जमकर चुनाव प्रचार किया थे। हालांकि पिछली बार कांग्रेस को 11 में से महज दो ही सीट मिल पाई थी। इस बार भूपेश स्वयं राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनकर चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए वह अपने ही लोकसभा क्षेत्र तक सिमटे हुए दिखे। हालांकि अब उनके क्षेत्र में चुनाव हो चुका है और अब उनका जोर दूसरी अन्य लोकसभा सीटों पर होगा।

मंत्री, उपमुख्यमंत्री अब विधायकी छिनी

 

टीएस सिंहदेव: सरगुजा संभाग के कद्दावर कांग्रेस नेता व पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव की भी भूमिका बदल गई। पिछली बार सिंहदेव भूपेश कैबिनेट के मंत्री होने के नाते अपने सरगुजा संभाग में बड़ी ताकत बनकर उभरे थे और उन्होंने लोकसभा चुनाव में ताकत झोंकी थी। इस बार वह विधायक तक नहीं रहे। वह विधानसभा चुनाव 2023 में हार चुके हैं। हालांकि कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सिंहदेव को घोषणा पत्र समिति के लिए राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त करके बड़ी जिम्मेदारी दी है।

विधानसभा अध्यक्ष से अब नेता प्रतिपक्ष

डा. चरणदास महंत : पिछले चुनाव में कांग्रेस के कद्दावर नेता डा. चरणदास महंत विधानसभा अध्यक्ष होने के नाते सक्रिय चुनावी राजनीति में तो नहीं दिखे मगर उनके प्रभाव का असर यह हुआ कि मोदी की लहर में भी कोरबा से उनकी धर्मपत्नी ज्योत्सना चुनाव जीत गई थीं। इस बार भी कोरबा से ज्योत्सना दूसरी बार चुनावी मैदान में हैं। अभी महंत नेता प्रतिपक्ष होने के नाते यहां खुलकर प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं।

 

 

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