यह थी भारत की पहली Adult फिल्म, मधुबाला समेत इन सितारों ने निभाया था अहम किरदार
HIGHLIGHTS
- फिल्म के लिए सीबीएफसी सर्टिफिकेशन काफी आम बात हो गई है।
- ए सर्टिफिकेट यानी एडल्ट ओनली।
- यह साल 1950 में रिलीज हुई थी, जिसे निर्देशक के बी लाल ने बनाया था।
एंटरटेनमेंट डेस्क, इंदौर। Madhubala First Bollywood Adult Movie: 19वीं सदी में हिंदी सिनेमा धीरे-धीरे अपने कदम जमा रहा था। उस समय ब्रिटिश शासन काल में साल 1918 में इंडियन सिनेमैटोग्राफ एक्ट आया था, इसमें 31 साल के बाद आजाद भारत 1949 में संशोधन किए गए, मौजूदा समय में इसे चलचित्र अधिनियम 1952 के नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं, सेंसर बोर्ड समिति का भी गठन किया गया था। इसका काम फिल्मों को उसके कंटेंट के हिसाब से प्रमाण पत्र जारी करना था।
भारत की पहली एडल्ट फिल्म
जैसे आज के समय में सेंसर बोर्ड की तरफ से एनिमल जैसी A सर्टिफिकेट हासिल करने वाली फिल्म के लिए सीबीएफसी सर्टिफिकेशन काफी आम बात हो गई है। 1950 के दौर में ए सर्टिफिकेट प्रमाणपत्र पाने वाली फिल्मों को बहुत अलग नजरिए से देखा जाता था। ए सर्टिफिकेट यानी एडल्ट ओनली। आज हम आपको बताएंगे कि भारत की पहली एडल्ट फिल्म कौन-सी थी।
सेंसर बोर्ड ने दिया था ए सर्टिफिकेट
उस जमाने में एडल्ट शब्द के लिए सेंसर बोर्ड की तरफ से कुछ अलग ही मापदंड प्रक्रिया थी। भारत की पहली एडल्ट फिल्म के बारे में बात करें, जिसे सीबीएफसी की ओर से ए सर्टिफिकेट दिया गया था। वह फिल्म हंसते आंसू थी। यह साल 1950 में रिलीज हुई थी, जिसे निर्देशक के बी लाल ने बनाया था। इस फिल्म में मधुबाला, मोतीलाल, गोप और मनोरमा जैसे कलाकार अहम किरदार में नजर आए थे। सेंसर बोर्ड ने फिल्म की कहानी और टाइटल पर आपत्ति जताई थी। दरअसल, हंसते आंसू फिल्म एक रोमांटिक कॉमेडी फिल्म थी, जिसे डबल मीनिंग शीर्षक और बोल्ड कंटेंट का हवाला देते हुए, सेंसर बोर्ड की तरफ से ए सर्टिफिकेट दिया गया था।
17 साल की उम्र में मधुबाला ने निभाया था रोल
ए सर्टिफिकेट देने की वजह से सीबीएफसी की काफी आलोचना हुई थी। इस कारण हंसते आंसू बॉलीवुड की पहली एडल्ट फिल्म बनी। यह फिल्म एक महिला प्रधान कहानी पर आधारित थी। उस वक्त के समाज में पुरुष वर्चस्व को आईना दिखाने और महिलाओं के अधिकार की लड़ाई को फिल्म में दिखाया गया था। फिल्म में मधुबाला ने उषा का किरदार निभाया था, उस समय में सिर्फ 17 साल की थीं। फिल्म में पढ़ी-लिखी उषा की शादी एक शराबी से कर दी जाती है। कुमार अपनी पत्नी से काफी जलन रखता है, जिसके कारण दोनों के बीच काफी लड़ाई होती है।
यह थी फिल्म की कहानी
ऐसे में गर्भवती उषा घर छोड़कर चली जाती है। उसे अपना पेट पालने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। वह कारखाने में काम करती है, जहां पुरुष उसे गलत नजरिए से देखते हैं। फिल्म के अंत में कुमार को अपनी गलती का एहसास होता है और वह अपनी पत्नी की कद्र करने लगता है। सेंसर बोर्ड की मापदंड प्रक्रिया की बात करें, तो केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड में फिल्मों के लिए अलग-अलग तरह के सर्टिफिकेशन मौजूद है। जिस फिल्म की कहानी पारिवारिक होती है, उसे बोर्ड U सर्टिफिकेट देता है, जिसे हर कोई देख सकता है।
U/A सर्टिफिकेट में बच्चे भी ऐसी फिल्मों को देख सकते हैं, लेकिन अपनी फैमिली के साथ। A सर्टिफिकेट में सिर्फ एडल्ट लोग ही इस फिल्म को देख सकते हैं, जो कि 18 साल से ऊपर हो। ए सर्टिफिकेट वाली फिल्म में एडल्ट सीन्स के साथ-साथ हिंसक सीन, डबल मीनिंग डायलॉग्स भी शामिल होते हैं।