Lok Sabha Election 2024: छत्‍तीसगढ़ के औद्योगिक क्षेत्रों में वायु प्रदूषण मानक से ज्यादा, चुनाव में जनहित के ये मुद्दे गायब"/>

Lok Sabha Election 2024: छत्‍तीसगढ़ के औद्योगिक क्षेत्रों में वायु प्रदूषण मानक से ज्यादा, चुनाव में जनहित के ये मुद्दे गायब

HIGHLIGHTS

  1. – शहर के भीतर आ गए उद्योग, औद्योगिक क्षेत्रों में वायु प्रदूषण मानक से ज्यादा
  2. – लोकसभा चुनाव में गौण होते जा रहे हैं जनहित के यह मुद्दे
  3. – 70 प्रतिशत उद्योगों में मशीनें 20 से 30 वर्ष पुरानी

अजय रघुवंशी/रायपुर। Lok Sabha Election 2024: छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था में उद्योगों का बड़ा योगदान है, लेकिन वायु और जल प्रदूषण के लिए भी यह जिम्मेदार है। प्रदेश के बड़े शहरों में औद्योगिक प्रदूषण चिंता का सबब बना हुआ है। लोकसभा चुनाव में केंद्रीय घोषणाओं के बीच जनहित के यह मुद्दे गायब नजर आ रहे हैं। सांसदों ने भी इस मुद्दे पर गंभीरता नहीं बरती। कई बड़े शहरों में उद्योग शहर के भीतर आ चुके हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नियमों के मुताबिक उद्योगों के आस-पास कम से कम एक से डेढ़ किमी. के दायरे में हरित क्षेत्र होना चाहिए, लेकिन रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़, जांजगीर-चांपा, दुर्ग आदि शहरों में उद्योगों के आस-पास ही बड़ी आबादी निवास कर रही है। इन क्षेत्रों में ग्रीन बेल्ट की भारी कमी है।

पर्यावरण विभाग से लेकर अन्य विभागों की लापरवाही की वजह से वायु व जल प्रदूषण में लगातार इजाफा हो रहा है। इन उद्योगों में मशीनें भी 20 से 25 साल पुरानी बताई जा रही है, जिसकी वजह से भी वायु प्रदूषण में इजाफा दर्ज किया गया है।

पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक वायु प्रदूषण की आदर्श स्थिति पर गौर करें तो पीएम 2.5 की आदर्श स्थिति 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कम होना चाहिए, लेकिन प्रदेश के अलग-अलग शहरों में 60 से लेकर 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की स्थिति है। धूल के बड़े कण यानि पीएम-10 की स्थिति 100 से 200 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है।

कोरबा, रायगढ़ में सबसे ज्यादा कोयला आधारित उद्योग

कोरबा,रायगढ़ में सबसे ज्यादा कोयला आधारित उद्योग स्थापित है।।कोरबा जिले में 12 से अधिक कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से 8,400 मेगावाट से अधिक विद्युत उत्पादन होता है। 14 से अधिक कोल इंडिया से संबद्ध साउथ इस्टर्न कोलफिल्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) की खदानें से सालाना 1250 लाख टन कोयला उत्पादन हो रहा है। 2022 को कोरबा में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) 227 तो दिल्ली का 43 रहा। दो वर्ष पहले रायगढ़ देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित चौथे शहर में शामिल हो चुका है।

45 से 53 प्रतिशत प्रदूषण वाहनों से

प्रदेश में वाहनों की संख्या पर गौर करें तो छोटे-बड़े मिलाकर कुल डेढ़ करोड़ से अधिक वाहन पंजीकृत है। विशेषज्ञों के मुताबिक इनमें 45 से 53 प्रतिशत प्रदूषण डीजल व पेट्रोल चलित वाहनों से फैल रहा है। प्रदेश में ई-रिक्शा की संख्या तेजी से बढ़ी है, जिसकी वजह से प्रदूषण पर थोड़ी रोकथाम जरूर है। 15 वर्ष से अधिक पुरानी डीजल वाहनों को बाहर करने के नियमों के बाद भी अभी तक इसी कड़ाई नहीं बरती जा रही है।

नहीं शिफ्ट हो पाए उद्योग

जनवरी 2015 में पर्यावरण संरक्षण मंडल की एक महत्वपूर्ण बैठक में उरला, सिलतरा क्षेत्र में स्थित उद्योगों को शहरों से बाहर करने पर निर्णय लिया गया था। इस संबंध में उद्योगपतियों से बात कर कार्ययोजना बनाने के लिए कहा था,लेकिन आठ वर्ष बाद भी इस पर किसी प्रकार का ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका है। औद्योगिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने नए औद्योगिक क्षेत्र की मांग की है, लेकिन सरकार ने इस दिशा में अभी तक ठोस निर्णय नहीं लिया है।

2020 में एमओयू, चार वर्ष में नहीं लग पाए एथेनाल प्लांट

पूर्ववर्ती सरकार के समय प्रदेश में एथेनाल प्लांट लगाने के लिए करोड़ों रुपये के एमओयू किए गए थे, लेकिन करीब 22 उद्योगों में अभी भी उत्पादन शुरू नहीं हो सका है। इनमें ज्यादातार उद्योग निर्माणाधीन हैं,वहीं कुछ उद्योगों में स्थल चयन की प्रक्रिया जारी है। वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के अनुभाग विभाग अधिकारी से मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस सरकार ने 34 एमओयू किए थे, जिसमें से सिर्फ एक उद्योग में ही उत्पादन प्रारंभ हो सका है।

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संचार विभाग प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कहा, कांग्रेस सरकार ने पांच वर्षों में पर्यावरण के लिए काफी कुछ काम किया। पौधे लगाएं इसकी सोशल आडिटिंग की। वन अभ्यारण्य बनाएं। हसदेव में हमने पेड़ों की कटाई रोकी, लेकिन वर्तमान सरकार ने पर्यावरण संबंधित महत्वपूर्ण योजनाओं को बंद कर दिया है।

भाजपा के प्रवक्‍ता केदार गुप्‍ता ने कहा, भाजपा सरकार ने 15 वर्षों के कार्यकाल में पर्यावरण संरक्षण के कई कार्य किए हैं। केंद्रीय और राज्‍य की जनहितकारी परियोजनाओं से पर्यावरण में सुधार आ रहा है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में पांच वर्षों में प्रदेश में प्रदूषण बढ़ा है। भाजपा सरकार इसमें सुधार करेगी।

प्रदूषण के बीच जीने की मजबूरी

पर्यावरणविद व प्रो. पं. रविशंकर शुक्ल विवि शम्ज परवेज ने कहा, प्रदेश के अलग-अलग शहरों में प्रदूषणकारी उद्योगों के बीच लोगों को रहने की मजबूरी बन चुकी है। प्रदेश में कोविड-19 के बाद वायु प्रदूषण में कमी आई है, लेकिन अभी भी पीएम 2.5 की स्थिति रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़, जांजगीर-चांपा में औसत से अधिक है। राज्य सरकार को उद्योगों में भौतिक निरीक्षण के साथ-साथ तकनीक आधारित निगरानी प्रणाली को मजबूत करना होगा। वायु प्रदूषण के साथ जल प्रदूषण भी चिंता का विषय है।

यहां विभागीय कमजोर

1. इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर सिस्टम (ईएसपी) की लगातार मानिटिरंग नहीं।

2. फ्लाईएश के निस्तारण का अभाव।

3. औद्योगिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य के मानकों का पालन नहीं।

4. वायु व जल प्रदूषण के बाद भी उद्योगों पर कार्रवाई नहीं।

फैक्ट फाइल

प्रदेश के इन औद्योगिक क्षेत्रों में सबसे ज्यादा प्रदूषण

रायपुर- उरला, सिलतरा, बिरगांव

बिलासपुर-तिफरा, सिरगिट्टी, दगोरी, सिलफहरी, बिरकोनी

रायगढ़-लारा, तमनार, तराईमाल, जामगांव, चुनचुना

कोरबा-कोरबा औद्योगिक क्षेत्र, गेवरा माइंस, एसईसीएल

फैक्ट फाइल

मानक वायु गुणवत्ता- 30 से 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर

प्रदेश के औद्योगिक शहरों में स्थिति में 60 से 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर

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